देशभर में खुलेआम घूम रहे कुत्ते गंभीर जन स्वास्थ्य संकट बन गए हैं। ये हर साल लाखों लोगों पर हमले कर रहे हैं और चिंताजनक रफ्तार से देश के नागरिकों को मार रहे हैं। वे वन्यजीवों को तबाह करते हैं, सड़क हादसों का कारण (बीमा आंकड़ों के मुताबिक, सड़क हादसों की दूसरी सबसे बड़ी वजह कुत्ते हैं) बनते हैं और भारत को दुनिया का रेबीज कैपिटल बनाते हैं।
कुत्तों व मनुष्यों की सुरक्षा के लिए प्रीवेंशन ऑफ क्रूअल्टी टु एनिमल्स एक्ट–1960 व स्टेट म्युनिसिपल कानून हैं। ये कानून सार्वजनिक स्थलों से आवारा व लावारिस कुत्तों को हटाने के आदेश और मानवीय तरीके से उनकी दया मृत्यु की इजाजत देते हैं।
लेकिन, केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय का एनिमल बर्थ कंट्रोल (डॉग्स) रूल्स-2001 और साल 2023 में संशोधित हुए पशुपालन विभाग के एनिमल बर्थ कंट्रोल (एबीसी) रूल्स-2023 केंद्रीय व राज्य के अधिनियमों का उल्लंघन करते हैं।
भारत के एबीसी मॉड्यूल के पशु कल्याण बोर्ड में चीजों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करना चौंकाने वाला है। यह भ्रामक तरीके से पालतू कुत्तों के फायदे को लावारिस कुत्तों के फायदे में मिला देता है, मानव और पर्यावरण पर आवारा कुत्तों के नकारात्मक प्रभावों को कमतर बताता है, अंतरराष्ट्रीय शोध और कुत्तों से जुड़ी नीति को गलत तरीके प्रस्तुत करता है और कुत्तों के हमलों के लिए आम नागरिक को दोष देता है।
पशु अधिकार समूह आवारा कुत्तों को मूसक (रोडेंट) नियंत्रण तंत्र के रूप में प्रचारित करते हैं, जबकि कुत्ते भी उन्हीं बीमारियों के वाहक हैं, जिन बीमारियों के वाहक चूहे हैं, जो भारी संख्या में इंसानों की मौत का कारण बनते हैं। वैश्विक स्तर पर खाद्य स्रोत को खत्म करना आवारा जानवरों व कीड़ों को नियंत्रित करने की दिशा में पहला अहम कदम है।
लेकिन, एबीसी नीति ने शहरी क्षेत्रों को आवारा कुत्तों का क्षेत्र बनाकर व सार्वजनिक स्थलों पर आवारा कुत्तों को खिलाने को वैध करार देकर मानव स्वास्थ्य व सुरक्षा के मुद्दे को बहुत ही प्रभावी तरीके से आवारा कुत्ते को बढ़ावा देने की नीति में बदल दिया है, जिसके विध्वंसक परिणाम होंगे। पशु अधिकार लॉबी ने आवारा जानवर आबादी प्रबंधन को लेकर फर्जी उम्मीदें बंधा दी हैं और आवारा पशुओं की आबादी को नियंत्रित करने या पशु कल्याण का लक्ष्य हासिल करने के लिए किसी भी व्यावहारिक प्रस्ताव के बरक्स ये लॉबी “हत्या नहीं” व “जानवरों की आजादी” के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए बेईमानी भरा शोध तैयार करते हैं।
एक प्रजाति के तौर पर कुत्तों को बेघर नहीं होना चाहिए। उनका जन्म इसलिए हुआ है कि उन्हें पालतू के तौर पर घर में रखा जाए और इसलिए उसका लैटिन नाम कैनिस लुपुस फैमिलियराइज है, जिसका अर्थ है, घरों का कुत्ता। अगर हम एबीसी रूल्स को परिणाम नहीं बल्कि सिर्फ इरादे के स्तर पर भी देखें, तो पाते हैं कि इसका कोई बड़ा उद्देश्य नहीं है सिवाय इसके कि यह अपरिष्कृत व पशु-अधिकार से प्रेरित आदर्शवाद है, जिसे अपरिष्कृत अभिजात्यवाद के जरिए प्रदर्शित किया जाता है, जो तकलीफ व टकराव, लोगों, वन्यजीव व कुत्तों की मौत का कारण बनता है।
(मेघना उनियाल ह्युमैन फाउंडेशन फॉर पीपल एंड एनिमल्स की डायरेक्टर हैं)