विकास

मनरेगा से बदले श्मशान घाट के दिन, बना पिकनिट स्थल

भीलवाड़ा की धौली ग्राम पंचायत में अतिक्रमण से मुक्त करके विकसित किया गया है श्मशान घाट

Anil Ashwani Sharma

क्या आप कभी श्मशान घाट में जलपान करने या सुबह-शाम की सैर करने गए हैं? सवाल अटपता जरूर है लेकिन भीलवाड़ा की ग्राम पंचायत धौली के ग्रामीणों के लिए यह सामान्य बात है। यहां के लोगों के लिए श्मशान घाट किसी पर्यटन या पिकनिक स्थल के कम नहीं है। दरअसल गांव में मनरेगा के हुए काम की बदौलत श्मशान घाट की काया पलट गई है।

धौली गांव निवासी विनय पंचोली बताते हैं कि यहां लगभग 18 बीघा जमीन पर अतिक्रमण था और हम सभी को अंतिम संस्कर के लिए भटकना पड़ता था। कोई भी अपनी जमीन पर अपने परिवार को छोड़कर किसी और को दाह संस्कार की इजाजत नहीं देता था। गांव में जितने समुदाय होते हैं, उनके अपने-अपने श्मशान घाट होते हैं। लेकिन अब पूरा गांव इस विकसित श्मशान का इस्तेमाल करता है।

इस संबंध में मनरेगा की क्षेत्रीय अधिकारी किरण शर्मा ने डाउन टू अर्थ को बताया कि हमने ग्राम पंचायत के सदस्यों से बातचीत की है। आने वाले समय में इस बगीचे का ठीक से रख-रखाव हो, उसके लिए प्रवेश शुल्क या दानपेटी रखने पर भी विचार किया जा रहा है। जल्द इस प्रस्ताव को ग्रामपंचायत की बैठक में रखा जाएगा। उन्होंने बताया कि यहां अकेले इस श्मशान घाट के लिए ही ग्रामीणों ने जमीन अतिक्रमण से मुक्त नहीं कराई, बल्कि इसके आसपास की लगभग 25 बीघा जमीन को भी चारागाह के रूप में विकसित करने की तैयारी चल रही है। यह सब मनरेगा के तहत किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इस प्रकार से खूबसूरत बागनुमा श्मशान घाट पूरे भीलवाड़ा जिले में कुल छह हैं। यह पूर्णरूपेण से विकसित हो चुका है जबकि बाकी पांच पर अभी काम चल रहा है।

गांव में दाह संस्कर को लेकर होने वाली तू-तू, मैं-मैं पूरी तरह से बंद हो चुकी है। यही नहीं, चूंकि इसके निर्माण में सभी ग्रामीणों ने हाथ बंटाया है, ऐसे में यह यूनिटी स्थल भी बन गया है, जहां सभी आकर एक हो जाते हैं। इस संबंध में गांव के रामशरण ने बताया कि इसके बन जाने से अब किसी प्रकार की तू-तू मैं नहीं होती है। सभी अपने हिसाब से इसकी साफ-सफाई का ध्यान रखते हैं। अभी तो हम आपस में ही इसके लिए सहयोग कर रहे हैं लेकिन उम्मीद है कि भविष्य में ग्राम पंचायत की तरफ से यहां एक चौकीदार रखा जाएगा।

इसके अलावा आसपास की ग्राम पंचायतों से भी बड़ी संख्या में लोग यहां घूमने आते हैंद। ऐसे में इस बाग की देखभाल पर नजर रखना जरूरी है। श्मघाट के चबूतरे पर ही नाश्ता करते बुजुर्ग विश्राम कहते हैं कि पहले यहां पानी तक नहीं पीते थे, अब खाना खा रहे हैं। वह कहते हैं कि मनरेगा ने हमारे गांव को काम तो दिया ही लेकिन केवल वह काम नहीं दिया जो अब तक होता आया है। गड्ढा खोदने के बजाय अब अब नए-नए काम हो रहे हैं। पहले ऐसे कामों के बारे में सोचना भी मुश्किल था।