कोरोना संक्रमण ने न ही कोई उम्र वर्ग को छोड़ा है और न ही देश के किसी भौगोलिक भाग को ही वह अपनी जद में लेने सो छोड़ रहा है। शहरों के अस्पतालों और संक्रमित मरीजों ने गांव की स्थितियों से ध्यान हटा दिया है। गांवों में भी कोरोना संक्रमण की रफ्तार काफी तेज है। वहां उनका कोई खस्ताहाल लेने वाला नहीं है। न ही गांवों में स्वास्थ्य सेवाएं ही मुकम्मल हैं। डाउन टू अर्थ ने बीते वर्ष एक विश्लेषण में इस बात की तरफ ध्यान खींचा था कि संक्रमण के मामलों में ग्रामीण जिलों की हिस्सेदारी 50 फीसदी से ज्यादा थी। डीटीई की रिपोर्ट में बताया गया कि अकेले अगस्त महीने में ग्रामीण जिलों में रिकॉर्ड 11 लाख कोविड मामले सामने आए थे जो कि कुल मामलों का 56 फीसदी था। वहीं, सितंबर के पहले 27 दिनों में 12 लाख नए मामले ग्रामीण जिले में दर्ज किए गए जो कि देशभर के कोरोना संक्रमण मामलों का कुल 53 फीसदी था। अब कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में यहां हम ऐसे गांवों की कहानी सिलिसलेवार ला रहे हैं, पढ़िए पहला भाग : हरियाणा के गुरुग्राम के एक गांव का हाल :
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च, 2021 को मुख्यमंत्रियों के साथ हुई बैठक में गांवों में कोरोना संक्रमण को गांवों तक पहुंचने से रोकने की बात कही है, लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय से महज 50 किलोमीटर दूर गुरुग्राम जिले का गांव ताजनगर में हालत खराब है। जिले के फर्रूखनगर खंड के इस गांव को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गोद लिया था। अब उनकी फाउंडेशन गांव की देखरेख कर रही है। पानी, बिजली, स्वच्छता और नाली के मामले में स्थिति में सुधार तो हुआ है, लेकिन स्वास्थ्य के मामले में कोई सुधार नहीं हुआ है।
जिला प्रशासन के मुताबिक, तत्कालीन राष्ट्रपति ने गांवों की स्थिति सुधारने के लिए जुलाई 2016 में स्मार्ट ग्राम मुहिम की शुरुआत करते हुए पहले चरण में गुरुग्राम के चार गांव अलीपुर, दौला, हरचंदपुर, ताजनगर और मेवात (नूंह) के रोजकामेव गांव को गोद लिया था। इसके बाद हरियाणा के 95 और गांवों को गोद लिया था।
गांव ताजनगर में एक उपस्वास्थ्य केंद्र है। जिसमें एक डॉक्टर और एक नर्स की तैनाती की हुई है। स्वास्थ्य केंद्र में केवल दो बेड है और यहां पर स्वास्थ्य उपकरण के नाम पर केवल बीपी नापने की मशीन है। इस अस्पताल में न तो कोई पल्स मीटर है और न ही कोई और आधुनिक उपकरण। कोरोना संक्रमण काल में भी यहां पर ऑक्सीजन सिलेंडर या बेड का इंतजाम नहीं किया गया है।
गांव के सरपंच ललित कुमार ने डाउन टू अर्थ को बताया कि गांव की आबादी करीब 4000 है। इस गांव में अब तक दस मरीज कोरोना संक्रमित के सामने आ चुके है। सभी अब स्वस्थ्य हो चुके है। उपस्वास्थ्य केंद्र पर दो और गांव जौनियावास और फाजिलपुर का भी जिम्मा है। उनका कहना है कि प्रणब मुखर्जी फाउंडेशन द्वारा गांव को गोद लेने के बाद कई बदलाव आए है। लोगों की सुविधा के लिए ई-क्लिनिक की शुरुआत की गई है। जिस पर जाकर मरीज दूर बैठे डॉक्टर से बातकर इलाज कराते है। दवाई बाहर से लेनी पड़ती है।
स्थानीय निवासी हरकेश कुमार बताते है, इस गांव में स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर कुछ नहीं है। यहां डिलीवरी तक नहीं होती है। यहां हफ्ते में दो दिन केवल दो से तीन घंटे ही सेवाएं मिलती है। खांसी, बुखार के अलावा यहां किसी और बीमारी का इलाज नहीं होता है। चोट लगने पर दवाई नहीं मिलती है। मरीजों को यहां से गुरुग्राम रेफर कर दिया जाता है।
गांव के पंचायत सदस्य अभय सिंह कहते है, गांव में डॉक्टर की कमी को लेकर कई बार पंचायत की ओर से जिला प्रशासन से गुहार लगाई गई है, लेकिन कुछ नहीं हुआ। यहां एक जनाना डॉक्टर नहीं है। महिलाओं की किसी तरह की बीमारी हो या किसी बीमारी को लेकर मशविरा लेना हो तो यहां से 20 किमी दूर गुड़गांव जाना पड़ता है। स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं होने के कारण कई अप्रिय घटनाएं भी हो चुकी है।
जिला उपायुक्त डॉ. यश गर्ग का कहना है कि इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड के अनुसार हर 50,000 की आबादी में एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का नियम है। फर्रूखनगर क्षेत्र में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है। चूंकि गांव को पूर्व राष्ट्रपति के फाउंडेशन ने गोद लिया हुआ है, वहां पर फाउंडेशन द्वारा कोरोना काल में विशेष क्लिनिक चलाई जा रही है। आयुष केंद्र भी बनाए गए है। जिससे लोगों को आयुर्वेदिक इलाज मिल रहा है।