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विकास

शहरों से प्राकृतिक प्रकाश छीन रहे बादल और ऊंची इमारतें, शहरी नियोजन पर ध्यान देना जरूरी

Lalit Maurya

70 के दशक से देखें तो बढ़ता शहरीकरण पूरी दुनिया पर हावी होता जा रहा है। इसके चलते छोटे-छोटे घरों की जगह अब तेजी से ऊंची गगनचुंबी इमारतें ले रही हैं। यह इमारतें देखने में आकर्षक और सुविधाजनक लग सकती हैं लेकिन साथ ही ये प्राकृतिक प्रकाश और धूप के लिए अवरोध का काम भी करती हैं।

इनकी वजह से इमारतों से सटे क्षेत्र में रहने वाले लोगों, पेड़-पौधों को पर्याप्त मात्रा में धूप और प्रकाश नहीं मिल पाता। जो कहीं न कहीं उनके विकास और स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है।

सूर्य का यह प्रकाश और धूप स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि जहां एक तरफ यह शरीर में विटामिन डी की कमी को पूरा करते हैं, वहीं मानसिक स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाते हैं। इतना ही नहीं यदि शरीर को हर दिन पर्याप्त मात्रा में धूप न मिले तो हृदय रोग, मेटाबॉलिक सिंड्रोम, अवसाद निकट दृष्टिदोष और मानसिक विकार जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

इसकी वजह से खासकर बच्चों और बुजुर्गों में विटामिन डी की कमी और निकट दृष्टिदोष जैसी समस्याओं का सामने आना एक बड़ी समस्या को उजागर करता है।

शहरों को कितनी धूप और प्रकाश मिल रहा है यह मापने के लिए द यूनिवर्सिटी ऑफ हांगकांग से जुड़े शोधकर्ताओं ने एक नया फ्रेमवर्क विकसित किया है। उन्होंने पाया है कि बादल और ऊंची इमारतें सूर्य की रोशनी को काफी हद तक कम कर देती हैं।

ऐसे में जर्नल नेचर सिटीज में प्रकाशित इस अध्ययन में बेहतर शहरी नियोजन की आवश्यकता पर जोर दिया है, ताकि लोगों को पर्याप्त धूप मिल सके।

अपने अध्ययन में शोधकर्ताओं ने किसी स्थान पर मिलने वाले आदर्श सूर्य के प्रकाश को परिभाषित करते हुए लिखा है कि यह सूर्य के प्रकाश की वह अधिकतम मात्रा है जो किसी क्षेत्र में बिना बादलों या इमारतों के हर साल मिल सकती है। शोधकर्ताओं ने साल में 4,460 घंटे मिलने वाले सूर्य के प्रकाश को आदर्श माना है।

शोधकर्ताओं ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा कि शहरी विकास, विशेषकर गगनचुंबी इमारतें, सूर्य के प्राकृतिक प्रकाश को अवरुद्ध कर सकती हैं। इनकी वजह से हांगकांग जैसे शहरों में जहां ऊंचीं इमारतों का मेला है, सूर्य की रोशनी 90 फीसदी तक कम हो जाती है।

यह इस बात की ओर भी इशारा है कि लोगों को पर्याप्त धूप मिले, इसके लिए शहरों का बेहतर नियोजन आवश्यकता है। 

देखा जाए तो शोधों में अक्सर इस बात को नजरअंदाज कर दिया गया है कि ऊंची इमारतें और बादल सूर्य की रोशनी को कैसे प्रभावित करते हैं। ऐसे में इसे उजागर करने के लिए इस नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों और मॉडल की मदद ली है।

क्या कुछ निकलकर आया है अध्ययन में सामने

अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने 1,353 अमेरिकी शहरों में सूर्य के मिलने वाले प्रकाश का आंकलन किया है। इससे पता चला कि 2020 में अमेरिकी शहरों को मिल सकने वाली धूप और सूर्य के प्रकाश में 2,896 घंटों यानी 121 दिनों के बराबर कमी आई थी। इस कमी के सबसे बड़े कसूरवार बादल थे, जिनकी वजह से सूर्य की रोशनी 2,448 घंटे (102 दिन) कम हो गई, जबकि ऊंची इमारतों और अन्य संरचनाओं ने इस नुकसान में 448 घंटे (19 दिन) का योगदान दिया।

नतीजे दर्शाते हैं कि बादल और ऊंची इमारतें सूर्य के प्रकाश को काफी कम कर देते हैं। इनमें से अकेले बादलों के छाए रहने की वजह से सूर्य के प्रकाश में 55 फीसदी की कमी आ जाती है, जो साल में करीब 102 दिनों के बराबर है। वहीं इमारतें की वजह से प्रकाश में 19 दिनों की कमी आती है।

रिसर्च में यह भी सामने आया है कि मेन और न्यूयॉर्क जैसे पूर्वोत्तर के शहरों में और वाशिंगटन जैसे उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में बादलों का प्रभाव अधिक स्पष्ट होता है, जहां सूर्य का प्रकाश सालाना 4,460 से घटकर 1,500 घंटे रह जाता है। इसके साथ ही शहरों का साया भी स्थान के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है, हालांकि तटीय शहर इससे कहीं अधिक प्रभावित होते हैं।

यूनिवर्सिटी ऑफ हांगकांग और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता प्रोफेसर बिन चेन ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से बताया है कि, मॉडल में सूर्य के प्रकाश को मापने के लिए अक्षांश, बादल, मौसमी बदलाव और इमारतों जैसे कारकों को ध्यान में रखा गया है। इससे यह समझने में मदद मिलती है, कि भीड़भाड़ वाले शहरों में वहां की भौगोलिक स्थिति, जलवायु और इमारतें सूर्य के प्रकाश को कैसे प्रभावित करते हैं।

प्रोफेसर चेन के मुताबिक बादलों के साथ-साथ बढ़ते शहरीकरण की वजह से सूर्य से मिलने वाले प्रकाश और धूप में आने वाले समय में और कमी आ सकती है। ऐसे में उन्होंने शहरों के बेहतर नियोजन पर जोर दिया है, ताकि वहां रहने वाले लोगों को पर्याप्त रौशनी और धूप मिल सके।

शोधकर्ताओं के मुताबिक ऊंची इमारतें और तेजी से होता शहरी विकास ऊर्जा उपयोग और स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रहा है। सूर्य के प्रकाश में कमी से जहां ऊर्जा की मांग बढ़ जाती है, वहीं साथ ही इसका असर कार्बन उत्सर्जन पर भी पड़ता है। खासकर ठंडे क्षेत्रों में और सर्दियों के दौरान यह प्रभाव कहीं ज्यादा स्पष्ट होता है।

ऐसे में स्थानीय नियमों में इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि सभी को पर्याप्त मात्रा में धूप और सूर्य का प्रकाश मिल सके।