कांदाड़ी से खेरीपदा तक का सफर नालों और जंगलों से गुजरते हुए आदिवासी क्षेत्रों की बदहाल स्थिति दिखाता है।
अधूरे सरकारी निर्माण, एक कमरे के घर की योजना और बैंकिंग व्यवस्था में पारदर्शिता की कमी से ग्रामीण परेशान हैं।
मवेशियों व अनाज के भंडारण के लिए अलग जगह की जरूरत सरकार की योजना में नजरअंदाज हुई है।
कहने के लिए छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के कांदाड़ी गांव से खैरीपदा गांव बिल्कुल सटा हुआ है लेकिन कांदाड़ी गांव के एक घर से खैरीपदा गांव के घर तक पहुंचने में एक से सवा घंटा लग गए। जंगल की पगडंडियों से चलते हुए कम से कम 11 नाले पार करने पड़े। कहने के लिए ये नाले बहुत छोटे थे, लेकिन पानी कमर तक भरा हुआ था।
ऐसे में हर बार या तो तैर कर कर या लकड़ी के बड़े टुकड़े के सहारे पार करना पड़ता है।
हालांकि, साथ चलने वाले इसी गांव के निवासी सोमा ने कई नालों को तो झट से कूद कर पार कर लिया। सोमा ने कहा, इतने नाले हैं। ऐसे में यदि इस पर सड़क निर्माण किया जाएगा तो स्वाभाविक रूप से इतनी पुलिया भी बनाने की जरूरत होगी। सरकार ने पास के गांव में सड़क बनाने के नाम पर खानापूर्ति भर की है।
एकबारगी गांव के मुहाने से दूर तक गांव को निहारने पर सरकारी विकास का कोई निशान नहीं दिखता है। सरकार आदिवासी क्षेत्रों में विकास की बड़ी-बड़ी योजनाओं की घोषणा करते थकती नहीं है। लेकिन इन गांवों की हालत देख कर लगता है कि ये अभी भी प्राचीन काल में हैं।᷉ꍘ븫
खेरीपदा गांव में कुल 33 आदिवासी परिवार रहते हैं और जनसंख्या लगभग 200 है। कहने के लिए इस गांव के लोग पास के हाट जाते हैं। लेकिन इनकी दुनिया अभी भी अपने गांवों तक ही सीमित है। उनके लिए विकास खंड, तहसील, जिला, राज्य और देश जैसी किसी तरह की भौगोलिक सीमा मायने नहीं रखती है।
इसी गांव के मंगू से जब पूछा कि देश का सबसे बड़ा आदमी कौन है, तो उसका उत्तर था, सरपंच। वह मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति जैसे शब्दों से अनजान है। हालांकि वे कहते हैं कि बहुत बरस पहले एक और बड़ा आदमी आया था, उनका नाम जोगी था (राज्य के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी)।
वे नदी के पार पखांजुर आए थे। हमें वहां ले जाया गया था। जब पूछा गया कि कौन थे तो उसने कहा कि ये तो नहीं मालूम। बताया गया था कि वो बहुत बड़ा आदमी है और हम सबका भला करने आया है।
मंगू के रिश्तेदार सोमू ने बताया कि खेती तो हम केवल एक बार ही करते हैं, जो जून से शुरू होती है और अक्टूबर-नवंबर तक चलती है। इस इलाके के ज्यादातरआदिवासी धान की बुआई करते हैं। मंगू ने कहा कि खेती से इतना हो जाता है कि साल भर चल जाए। वे कहते हैं कि सिंचाई नहीं होने के कारण इसके बाद खेत ऐसे ही खाली पड़े रहते हैं।
उन्होंने बताया कि हमारी कमाई का एक बड़ा हिस्सा मई माह में तेंदुपत्ता से आता है। हालांकि काम तो दस दिन का ही होता है लेकिन पैसे ठीक मिल जाते हैं। उन्होंने शिकायत भरे लहजे में कहा कि अब ठेकेदार पैसा हमें तुरंत न देकर हमारे खाते में डलवा देते हैं। यह पैसा हमें कई हफ्तों बाद ही मिल पाता है।
ऊपर से बैंक वाले पता नहीं कितना देते हैं, हम तो अनपढ़ हैं हमें तो पता ही नहीं चलता कि हमारे खाते में कितन पैसा आया है और हमें कितना बैंक वाला दे रहा है। बैंक संबंधी शिकायत लगभग हर आदिवासी की है कि वे पढ़े-लिखे नहीं है तो उन्हें नकदी ही मिलनी चाहिए।
मंगू के घर में कई गायें व बकरियां हैं, लेकिन वे इनका दूध नहीं निकालते हैं। इस बारे में मंगू ने बताया कि उनका दूध हम कभी नहीं निकालते बस कभी किसी दवा आदि बनाने के लिए उपयोग कर लेते हैं। वे कहते हैं कि आखिर गाय या बकरी के दूध पर उसके बछड़े का हक है, हम कैसे निकाल सकते हैं।
फिर आपको लाभ क्या होता है इन्हें पालने पर? इस सवाल के जवाब में उन्होंनेकहा कि इनके जो बछड़े पैदा होते हैं, उन्हें बेचकर हम लाभ कमाते हैं।
मंगू के घर के आंगन में चार घर हैं, लेकिन इन कच्चे घरों के बीच ईंट की आधी-अधूरी बनी हुई एक काली दीवार दिखाई पड़ी। इसके बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि सरकारी लोग आए थे और कहा कि हम आपके लिए घर बनाएंगे। सरकारी लोगों ने ही ये दीवारें बनाईं लेकिन उसके बाद अब तक नहीं आए।
यहां प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आधा-अधूरा निर्माण कार्य किया गया है। कई आदिवासी ग्रामीणों ने बताया कि इस गांव के सात घरों को चुना गया था कि एक कमरे के पक्के घर बनाए जाएंगे, लेकिन इस आधे-अधूरे घर के निर्माण के बाद अब तक वे नहीं लौटे हैं।
सोमू ने सवाल किया कि सरकार हमें एक कमरे का घर क्या सोच कर दे रही है? क्या सरकार को पता नहीं है कि हम आदिवासी परिवारों का गुजारा एक कमरे के घर से नहीं होने वाला। हमारे दर्जनों मवेशी होते हैं और अनाज आदि रखने के लिए अलग से घर बनाना होता है।
खुद के रहने के लिए अलग से कमरे बनाते हैं। ऐस में यह एक कमरे का घर किसलिए?
वह कहते हैं कि यह ठीक है कि इस गांव के तमाम घरों को चुना गया था पक्का घर देने के लिए लेकिन यह क्या किसी काम का होगा? इसमें जब टूट-फूट होगी तो मरम्मत के लिए हम कहां से ईंटगारा या लोहा ला पाएंगे? अभी हमारा जो घर है उसकी मरम्मत हम खुद ही जंगल से पूरी कर लेते हैं।
मंगू के अबूझ सवालों का जवाब तो सरकार ही दे सकती है। मंगू को भरोसा है, सरकार सब जानती होगी।