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चार धाम परियोजना: सुप्रीम कोर्ट ने 10 मीटर तक चौड़ा करने की अनुमति दी

सुप्रीम कोर्ट ने रक्षा मंत्रालय और सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय को हाई पावर्ड कमेटी की पर्यावरण संबंधी सिफारिशों को लागू करने का निर्देश दिया

DTE Staff

राजेश डोबरियाल 

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में 899 किलोमीटर लंबी चार धाम परियोजना का हिस्सा बनने वाली सड़कों को 10 मीटर तक चौड़ा करने की अनुमति दे दी है। इसके साथ ही कोर्ट ने इस मामले पर गठित हाई पावर्ड कमेटी (एचपीसी) द्वारा उठाई गई पर्यावरण संबंधी चिंताओं को देखते हुए रक्षा मंत्रालय के साथ ही सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय को एचपीसी की सिफारिशों को लागू करने का निर्देश दिया।

एचपीसी की सिफारिशों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एके सीकरी की अध्यक्षता में एक निगरानी समिति का भी गठन किया है। यह समिति सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट करेगी।

कोर्ट ने कहा कि अगर सड़कें रणनीतिक और सीमावर्ती महत्व की हैं तो सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय का सर्कुलर पहाड़ी इलाकों में इन्हें डबल-लेन करने से मना नहीं करता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि रक्षा आवश्यकताओं की न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती है। अदालत ने इस मामले में याचिककर्ता एनजीओ "सिटीज़न्स फॉर ग्रीन दून" द्वारा उठाए गए तर्कों को खारिज कर दिया कि रक्षा मंत्रालय का आवेदन "दुर्भावनापूर्ण" है और जिन मुद्दों पर पहले ही फ़ैसला आ चुका है उन पर फिर से मुकदमा चलाने का प्रयास है। 

बता दें कि चारधाम परियोजना उत्तराखंड के चार प्रमुख तीर्थों यमुनोत्री, गंगोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ को सड़क मार्ग से जोड़ने वाली महत्वाकांक्षी परियोजना है। पहले इसका नाम ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट था जिसे बदलकर चारधाम परियोजना कर दिया गया. 899 किलोमीटर की इस परियोजना की लागत 12 हजार करोड़ रुपये है।

वर्ष 2016 में शुरु इस परियोजना के तहत दो सुरंगें, 15 पुल, 25 बड़े पुल, 18 यात्री सेवा केंद्र और 13 बाइपास बनने हैं. चीन के साथ बढ़ते तनाव के बीच यह सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण परियोजना है। 

साल 2018 में गैर सरकारी संस्था 'सिटीजन्स फॉर ग्रीन दून' ने इस परियोजना को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। संस्था का कहना था कि सड़क चौड़ीकरण के लिए पेड़ काटे जाएंगे, पहाड़ तोड़ने के लिए विस्फोट किया जाएगा और पहाड़ का मलबा फेंका जाएगा। इससे हिमालय की पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचेगा, भूस्खलन-बाढ़ का खतरा बढ़ जाएगा और वन्य व जलीय जीवों को नुक़सान पहुंचेगा। 

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने परियोजना के पर्यावरण पर संभावित प्रभावों की जांच के लिए अगस्त 2018 में पर्यावरणविद रवि चोपड़ा के नेतृत्व में एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) का गठन किया, लेकिन समिति के सदस्यों के बीच सड़क की चौड़ाई को लेकर सहमति नहीं बन पाई और एचपीसी ने जुलाई 2020 में दो रिपोर्ट सौंपीं।

समिति अध्यक्ष रवि चोपड़ा समेत चार सदस्यों ने सड़क की चौड़ाई 5.5 मीटर चौड़ी रखने की सिफ़ारिश की थी। दूसरी तरफ 21 सदस्यों वाले दूसरे पक्ष ने सड़क की चौड़ाई 12 मीटर रखने की सलाह दी थी। सितंबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने कम सदस्यों वाली रिपोर्ट की सिफारिशों को मानते हुए सड़क की चौड़ाई 5.5 मीटर रखने का आदेश दिया था।

2 दिसंबर, 2020 को रक्षा मंत्रालय ने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चौड़ी सड़कों की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा कि तीन राष्ट्रीय राजमार्ग- ऋषिकेश से माणा, ऋषिकेश से गंगोत्री और टनकपुर से पिथौरागढ़- चीन के साथ उत्तरी सीमा तक जाते हैं और फीडर सड़कों की तरह काम करते हैं।

केंद्र सरकार ने कहा कि रणनीतिक और सामरिक दृष्टि के मद्देनजर सड़कों का चौड़ीकरण ज़रूरी है ताकि सहयक सड़कों को सीमा पर बनी सड़कों के लिए इस्तेमाल किया जा सके। सरकार ने अदालत से पांच मीटर की तय सीमा को बढ़ाकर 10 मीटर करने की मांग की थी।  

उधर गंगा आह्वान संस्था से जुड़ी एक्टिविस्ट मलिका भनोट कहती हैं कि पर्यावरणीय दृष्टि से यह बहुत संवेदनशील क्षेत्र है। इस फ़ैसले के बाद अब इतनी चौड़ी सड़कें बनेंगीं तो इस क्षेत्र की संवेदनशीलता कई गुना बढ़ जाएगी और पर्यावरण पर होने वाला असर भी उसी गति से बढ़ेगा। वह आशंका जताती हैं कि आने वाले समय में इस क्षेत्र में आने वाली आपदाओं का विकराल रूप देखने को मिलेगा।