हरित नियमों का उल्लंघन करने वालों को रोकने के लिए, केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के नए नियम-निर्देश
पर्यावरण प्रभाव आकलन की व्यवस्था को कमजोर करने की दिशा में एक और प्रयास दिखता हैं।
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने मंत्रालय से कहा है कि वह ऐसी मानक आपॅरेटिंग प्रक्रिया (एसओपी) तैयार करे, जिसमें ‘नियमों को तोड़ने वालों पर जुर्माना’ और ‘अनुरूपता के सिद्धांत ’का पालन हो। हरित पीठ बुनियादी ढांचे और औद्वोगिक परियोजनाओं द्वारा पर्यावरण के नियमों का लगातार उल्लंघन किए जाने से चिंतित है।
मंत्रालय के कार्यालय द्वारा 7 जुलाई 2021 को जारी मेमोरेंडम में, केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर नियमों का पालन करने वाली संस्थाओं को मजबूत करने के प्रयास किए गए हैं। इसमें नीचे दिए गए प्रावधान शामिल हैं -
- नियमों का उल्लंघन करने वालों की पहचान और उनकी रिपोर्ट करना।
- किसी परियोजना को बंद करने या उसे तोड़ने के मामलों में उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करना और
- परियोजना के आकार के मुताबिक, उनसे जुर्माना वसूल करना
केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने इससे पहले पर्यावरण प्रभाव आकलन की व्यवस्था को कमजोर करने का कई बार प्रयास किया है। पर्यावरण प्रभाव आकलन, 2020 मसौदे की अधिसूचना इस मामले में ताबूत में आखिरी कील थी, जिसकी सिविल सोसाइटी, शिक्षाविदों और पर्यावरणविदों ने कड़ी आलोचना की थी। लोगों के कड़े विरोध के चलते फिलहाल इस मसौदे की समीक्षा की जा रही है।
हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि पर्यावरण प्रभाव आकलन, 2020 के प्रस्तावित मसौदे को नए मेमोरेंडम द्वारा लागू कराना बेकार है। नया मेमोरेंडम प्रस्तावित मसौदे का ही एक नया प्रयोग जान पड़ता है, जिसे जनता की सलाह के बगैर पिछले दरवाजे से लागू किया जा रहा है।
मंत्रालय का नया मेमोरेंडम राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण को पिछले कई सालों से मिल रही उन शिकायतों का नतीजा है, जिनमें तमाम परियोजनाओं को पर्यावरण मंत्रालय की विधिवत अनुमति के बगैर पूरा किया जा रहा था। इन मामलों में राज्यों का पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण भी नियमों का पालन नहीं करा पा रहा था, चाहे वह किसी ढांचे को ढहाने का मामला हो या फिर मुआवजे के आकलन और भुगतान का ।
अब नियमों को उल्लंघन को तीन श्रेणियों में बांटा जाएगा। पहला - पर्यावरण मंत्रालय की विधिवत अनुमति के बिना घटनास्थल पर निर्माण, और खुदाई आदि, दूसरा - परियोजना की क्षमता अथवा उसके क्षेत्र को उस सीमा से आगे बढ़ाना, जिसका उल्लेख पर्यावरण मं़़त्रालय को दिए गए स्वीकृति पत्र में किया गया हो और तीसरा - पर्यावरण मं़़त्रालय या राज्यों के पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण की अनुमति के बिना परियोजना का विस्तार जैसे कि उसमें बदलाव करना आदि। अनुपालन न करने का मतलब उन नियमों और स्थितियों से है, जो परियोजना को लेकर पर्यावरण मंत्रालय या राज्यों के पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण ने तय किए हैं।
नए मानक - उल्लंघन करने वाले मामले और उनकी सूचना
मंत्रालय के मेमोरेंडम के उपखंड 13 के तहत नियमों का उल्लंघन करने वाली परियोजनाओं की पहचान, उनकी पड़ताल और उनसे होने वाले नुकसान की कीमत तय करना जिससे वह पर्यावरण को आगे नुकसान न पहुंचाए, और उससे होने वाले नुकसान की भरपाई भी की जा सके।
इस व्यवस्था के तहत केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निर्देश दिया गया है कि नियमों का उल्लंघन करने वाली परियोजनाओं की पहचान करें और आगे की कार्रवाई के लिए ए श्रेणी परियोजनाओं के मामले में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और बी श्रेणी की परियोजनाओं के मामलों में राज्यों के पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण को सूचित करें। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को यह भी निर्देश दिए गए हैं कि ऐसी परियोजनाओं को अनुमति पत्र न जारी करें या उनके अनुमति पत्र का नवीनीकरण न करें, जिन्हें पहले से पर्यावरण मंत्रालय की स्वीकृति न मिली हो।
उल्लंघन की सूचना प्रस्तावक के स्वतः संज्ञान द्वारा भी दी जा सकती है। मेमोरेंडम के एक सहायक निर्देश में कहा गया है - ‘ अगर जनता किसी परियोजना को लेकर नियमों के उल्लंघन की शिकायत करती है तो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अविलंब उस पर कार्रवाई करेंगे।’ पर्यावरण प्रभाव आकलन, 2020 के प्रस्तावित मसौदे में यह निर्देश शामिल नहीं था, जिसका देश के पर्यावरणविदों ने कड़ा विरोध किया था। उन्होंने मांग की थी कि लोगों को पर्यावरण के नियमों का उल्लंघन करने की शिकायत दर्ज करने का अधिकार मिले।
नए मेमोरेंडम में इसे शामिल किया है हालांकि इसमें यह परिभाषित नहीं किया गया है कि अधिकारियों से शिकायत करने के लिए लोगों को क्या दस्तावेज पेश करने होंगे। इसकी भी कोई व्यवस्था नहीं बनाई गई है कि लोगों की शिकायतें दर्ज कैसे होंगी।
इसके अलावा इसका भी कोई प्रावधान नहीं किया गया है कि लोगों की शिकायतों को सुना बिना ही उन्हें खारिज न कर दिया जाए। मेमोरेंडम की इस अस्पष्टता से एक बार फिर इस सारी कवायद में नियमों का उल्लंघन करने वालों के लिए रास्ता निकल सकता है।
उल्लंघन के मामलों का प्रबंधन
मंत्रालय के मेमोरेंडम के उपखंड 11 में नियमों का उल्लंघन करने वाली परियोजनाओं के खिलाफ तीन तरह की कार्रवाईयां तय की गई हैं। यह इस पर निर्भर करेगा कि उन्होंने पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति ली है अथवा नहीं। अगर किसी परियोजना के लिए अनुमति नहीं ली गई है तो इसे बंद करना पड़ेगा। वहीं अगर किसी परियोजना के लिए अनुमति ली गई है लेकिन बिना जानकारी दिए इसका विस्तार किया जा रहा है तो पर्यावरण मंत्रालय की अनुमति के बगैर जितना भी विस्तार किया गया है, उसे ढहाना पड़ेगा।
कुछ ऐसी परियोजनाएं भी हो सकती हैं, जिन्हें अपने पहले चरण के लिए मंत्रालय की अनुमति की जरूरत न हो लेकिन विस्तार के बाद उन्हें इसकी जरूरत पड़े। ऐसे मामलों में उन्हें अपना काम रोकना होगा और अनुमति के बाद ही वे अपना विस्तार कर सकेंगी। सभी परियोजनाओं के लिए कार्रवाई
पर्यावरण संरक्षण कानून, 1986 के अंतर्गत की जाएगी।
यह उपखंड केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के पर्यावरण की सुरक्षा के उपायों को खासतौर से प्रदर्शित करता है। परियोजनाओं के लिए ये सभी तरह की कार्रवाईयां अस्थायी तौर पर होंगी, जब तक कि वे पर्यावरण मत्रांलय से जरूरी अनुमित पत्र हासिल नहीं कर लेतीं। इसका मतलब यह है कि ए श्रेणी की परियोजनाओं के लिए केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और बी श्रेणी की परियोजनाओं के लिए राज्यों के पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण की अनुमति लेनी होगी।
उल्लंघन के मामलों की सुनवाई करते समय आकलन समिति, पर्यावरण की संवहन क्षमता के आधार पर फैसला लेगी और तय करेगी कि वह आगे जारी रह सकती है या नहीं।
अगर यह पाया जाता है कि अनुमति के बावजूद कोई परियोजना अपनी शुरूआत से नियमों के अनुकूल नहीं थी, तो उसे स्थायी तौर पर बंद करना पड़ेगा या ढहाना पड़ेगा। हालांकि अगर यह पाया जाता है कि कोई परियोजना पर्यावरण के मानकों के अलावा अन्य पैमानों पर ठीक है तो उसे पर्यावरण के मानकों के अनुरूप करने के लिए उसमें सुधार की गुंजाइश रहेगी।
ऐसी परियोजनाएं जो पर्यावरण की संवहन क्षमता के अनुकूल होंगी और अन्य मानकों को भी पूरा करेंगी, उन्हें पर्यावरण प्रभाव आकलन और पर्यावरण प्रबंधन को सूचना देने के लिए कहा जाएगा। इन परियोजनाओं को सामाजिक संदर्भों का ध्यान रखते हुए उनसे होने वाले नुकसान का आकलन करना होगा और उनकी वजह से विस्थापित होने वाले समुदाय की तरक्की के उपाय करने होंगे। परियोजना के प्रस्तावक को इसमें खर्च होने वाली राशि की बैंक गारंटी जमा करनी होगी, इस राशि का निर्धारण परियोजना की आकलन समिति करेगी।
परियोजनाओं द्वारा नियमों के उल्लंघन की छानबीन का तरीका
मंत्रालय से अनुमति पाने वाली और पर्यावरण के अनुकूल परियोजनाओं के बारे में वर्तमान मेमोरेंडम में विस्तार से जो प्रक्रिया समझाई गई है, उसमें कुछ नया नहीं है। यह बिल्कुल वही है जो पर्यावरण प्रभाव आकलन, 2020 के प्रस्तावित मसौदे में थी। हालांकि मेमोरेंडम में इसका कोई तं़त्र नहीं बनाया गया है, जिससे बंद की जाने या ढहाने वाली परियोजनाओं से पर्यावरण को होने वाली नुकसान की भरपाई सुनिश्चित की जा सके। हालांकि ऐसी परियोजनाओं को आगे नहीं बढ़ाया जाएगा, फिर भी नियमों का उ्ल्लंघन करने वालों ने अब तक निर्माण कर पर्यावरण और समाज का जो नुकसान किया, उसके लिए उन्हें जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
उल्लंघन के मामलों में जुर्माना
उल्लंघन करने वालों को हतोत्साहित करने के लिए मेमोरेंडम के उपखंड 12 में अधिकारियों को प्रस्तावक पर जुर्माना लगाने का अधिकार दिया गया है। इसके तहत उन्हें बैंक गारंटी देनी होगी। परियोजना के आधार पर जुर्माने को ग्रीनफील्ड और ब्राउनफील्ड, दो भागों में बांटा गया है।
ग्रीनफील्ड परियोजना के मामले में जहां काम अभी शुरू नहीं हुआ है, जुर्माना परियोजना की कुल राशि का एक फीसदी होगा, जैसा कि पर्यावरण प्रभाव आकलन और पर्यावरण प्रबंधन को दी गई सूचना में बताया गया है। ऐसे मामलों में जहां काम शुरू हो चुका है, परियोजना की कुल लागत के एक फीसदी के साथ कुल टर्नओवर की 0.25 फीसदी राशि भी जुर्माने के तौर पर देनी होगी।
हालांकि दोनों तरह के मामलों में अगर प्रस्तावक नियमों के उल्लंघन का स्वतः संज्ञान लेकर इसकी सूचना देता है तो जुर्माने की राशि आधी हो जाएगी। इस तरह की व्यवस्था इसलिए की गई है ताकि प्रस्तावक गलती होने पर ख्ुाद आगे आकर इसकी सूचना दें।
मेमोरेंडम में जुर्माने को लेकर जो व्यवस्था की गई है, उसमें नियमों का उल्लंघन करने को वैधानिकता देने का प्रयास दिखता है। एक तो यह समझ से परे है कि सौ करोड़ की कंपनी को पर्यावरण के नियमों और निर्देशों की जानकारी नहीं होगी। इससे साबित होता है कि जानबूझकर नियमों का मजाक बनाया गया है। दूसरे, यह जुर्माना बहुत कम है। उदाहरण के लिए, सौ करोड़ की ग्रीनफील्ड परियोजना के लिए जुर्माना एक करोड़ होगा, जो प्रस्तावक के स्वयं सूचना देने पर 50 लाख हो जाएगा। इस तरह के उपाय उल्लंघन करने वालों को कभी नहीं रोक पाएंगे। इससे, वे परियोजना शुरू करेंगे, जुर्माना अदा करेंगे और उसे आगे बढ़ाएंगे।
ऐसे नहीं आएंगे मनचाहे नतीजे
केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने मार्च 2017 में उल्लंघन करने वाले मामलों के आकलन के लिए प्रणाली तैयार की थी। इसके तहत उसने नियमों का उल्लंघन करने वाली परियोजनाओं को पर्यावरण के नियमों के अनुकूल बनाने के लिए छह महीने यानी सितंबर 2017 तक का समय दिया। बाद में 2018 में कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद इस समय सीमा को मार्च 2018 से बढ़ाकर सितंबर 2018 कर दिया गया। परियोजनाओं के प्रस्तावकों के लिए यह रास्ता अब तक हो रहे नियमों के उल्लंघनों को नियमित करने के लिए तैयार किया गया था। हालांकि वर्तमान मेमोरेंडम में आज और भविष्य में होने वाले उल्लंघनों को ध्यान में रखकर एक मानक ऑपरेटिंग प्रक्रिया तैयार की गई है। इस तरह बजाय इसके कि उल्लंघन करने वालों को रोका जा सके, इस तरह की व्यवस्था बनाई जा रही है कि वे जुर्माना अदा कर आगे नियमों का उल्लंघन करते रह सकें।
इसके साथ ही उल्लंघनों के मामलों की पहचान की प्रक्रिया भी अस्पष्ट और गलत है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में कर्मचारियों की बड़ी तादाद में कमी को देखते हुए समझा जा सकता है कि वे उल्लंघनों के मामलों को लेकर कितने गंभीर होंगे। इस तरह के प्रयास पर्यावरण के नियमों को लागू कराने और उल्लंघन करने वालों को रोकने में सक्षम नहीं हो पाते।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के निदेशक निवित कुमार यादव कहते हैं, ‘ पर्यावरण मंत्रालय और राज्यों के पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरणों में आज की तारीख में उल्लंघन के मामलों को देखिए। क्या यह बहुत जरूरी नहीं है कि हम पर्यावरण के नियमों को लेकर समझौता करना बंद करें और उल्लंघन के मामलों को लेकर ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति अपनाएं।