विकास

बिल्डिंग सेक्टर से जुड़ी 44 फीसदी कंपनियों ने अब तक तय नहीं किए उत्सर्जन कम करने के लक्ष्य

बिल्डिंग सेक्टर से जुड़ी 44 फीसदी कंपनियों ने अपने उत्सर्जन में कमी करने के लिए लक्ष्य निर्धारित नहीं किए हैं। वहीं इस क्षेत्र में जो योजनाएं मौजूद हैं, उनमें भी विस्तार की कमी है

Lalit Maurya

बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन और उसके प्रबंधन से जुड़ी दुनिया की शीर्ष कंपनियां अभी भी जलवायु परिवर्तन को गंभीरता से नहीं ले रही है। इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि भविष्य में कार्बन में कमी करके जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए 54 फीसदी कंपनियों के पास कोई योजना नहीं है।

वहीं 44 फीसदी कंपनियों ने अपने उत्सर्जन में कमी करने के लिए लक्ष्य निर्धारित नहीं किए हैं। वहीं इस क्षेत्र में जो योजनाएं  मौजूद हैं उनमें भी विस्तार की कमी है। उदाहरण के लिए वो इन योजनाओं के लिए क्या वित्त प्रदान कर रहे हैं, इस बारे में जानकारी स्पष्ट नहीं है।

यह जानकारी वर्ल्ड बेंचमार्किंग एलायंस (डब्लूबीए) और सीडीपी द्वारा दुनिया की शीर्ष 50 कंपनियों पर किए अध्ययन ‘2023 क्लाइमेट एंड एनर्जी बेंचमार्क इन द बिल्डिंग्स सेक्टर’ में सामने आई है।

जिन कंपनियों का विश्लेषण किया गया है उनमें जेएलएल, ब्रुकफील्ड, चाइना एवरग्रांडे, कंट्री गार्डन, ग्रीनलैंड होल्डिंग्स, वोनोविया, न्यू वर्ल्ड डेवलपमेंट, एसईजीआरओ, यूनीबेल-रोडामको-वेस्टफील्ड, अयाला, गेसिना, हुंडई ईएंडसी, लेंडलीज, एलईजी  इमोबिलियन, मैक्रोटेक, गोदरेज, मित्सुबिशी एस्टेट और प्रोलोगिस जैसी नामी-गिरामी कंपनियां शामिल हैं।

रिपोर्ट की मानें तो बिल्डिंग सेक्टर वैश्विक स्तर पर 37 फीसदी कार्बन डाइऑक्साइड (सीएओ2) उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार है। आज पूरी दुनिया जलवायु में आते बदलावों का दंश झेल रही है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने भी अपनी नई रिपोर्ट में बढ़ते तापमान को लेकर आगाह किया है। ऐसे में यदि यह सेक्टर जलवायु परिवर्तन को लेकर सजग नहीं है तो वो एक बड़ी चिंता का विषय है।

2015 में दुनिया के 196 देशों ने अपने उत्सर्जन में कमी करके जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कार्रवाई करने का लक्ष्य रखा था, जिसे पेरिस समझौते के नाम से जाना जाता है। इसी वर्ष में 193 देशों ने सतत विकास के लक्ष्यों को भी हासिल करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई थी। इसके बावजूद अभी भी उत्सर्जन को कम करने और अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए काफी कुछ किया जाना बाकी है।

अपनी जिम्मेवारी से भाग नहीं सकती यह कंपनियां

इस रिपोर्ट में बिल्डिंग क्षेत्र से जुड़ी दो भारतीय कंपनियों गोदरेज प्रॉपर्टीज, मैक्रोटेक डेवेलपर्स लिमिटेड का भी अध्ययन किया है। 2023 के लिए जारी इस बिल्डिंग्स बेंचमार्क के अनुसार गोदरेज प्रॉपर्टीज को 26.4 अंकों के साथ 50 कंपनियों की लिस्ट में 19वें स्थान पर रखा गया है।

रिपोर्ट के मुताबिक कंपनी ने 2020 की तुलना में 2035 तक अपने स्कोप 1 और 2 उत्सर्जन में 73 फीसदी की कमी करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। हालांकि, उसने स्कोप 3 उत्सर्जन के लिए लक्ष्य निर्धारित नहीं किया है, जो इसके उत्सर्जन का करीब 99.8 फीसदी हिस्सा है। इसके अलावा कंपनी ग्राहकों को साथ लेकर किस तरह उत्सर्जन में कमी करेगी इसको लेकर कोई स्पष्ट रणनीति नहीं है।

वहीं 42.1 अंकों के साथ मैक्रोटेक डेवेलपर्स लिमिटेड को इस लिस्ट में चौथे स्थान पर रखा है, जोकि एक अच्छी बात है। रिपोर्ट के मुताबिक मैक्रोटेक कार्बन में कमी करने के प्रारंभिक चरण में है। हालांकि वो अपने बिजनेस मॉडल को बदलने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठा रही है। कंपनी ने अपने नेट-जीरो स्कोप 1 और 2 उत्सर्जन लक्ष्य को हासिल करने के लिए  2035 की समय सीमा तय की है। वहीं 2027 तक अपने स्कोप 3 उत्सर्जन को 30 फीसदी तक कम करने के प्रति प्रतिबद्धता जताई है।

भारत के साथ ही इस लिस्ट में चीन, अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, मिस्र, फिलीपींस, दक्षिण अफ्रीका सहित कई देशों की कंपनियों को शामिल किया है। इस लिस्ट में फ्रांस की कंपनी गेसिना को पहले स्थान पर रखा है जिसे 100 में से 50 अंक दिए गए हैं। वहीं जोन्स लैंग लासेल को 43.8 अंकों के स्थान दूसरे स्थान पर रखा गया है, जबकि यूके की सेग्रो पीएलसी को 43.3 अंकों के साथ तीसरे स्थान पर जगह दी गई है।

रिपोर्ट के अनुसार भवन निर्माण और विकास से जुड़ी 32 कंपनियों में से केवल पांच कंपनियों (अयाला, गेसिना, हुंडई ए एंड सी, लेंडलीज और प्रोलॉजिस) ने शुद्ध शून्य उत्सर्जन को लेकर लक्ष्य तय किए हैं। हालांकि किसी भी कंपनी ने इस बात के लिए समयबद्ध रोडमैप नहीं है कि वे अपने निर्धारित वर्ष तक किस तरह शून्य-कार्बन वाली इन इमारतों को उपलब्ध कराएंगे।

रिपोर्ट के अनुसार चूंकि बिल्डिंग्स की उम्र लम्बी होती है, ऐसे में बिल्डिंग सेक्टर उत्सर्जन को लेकर आज जो फैसला लेंगे, उसके प्रभाव दशकों तक नजर आएंगें। इसे देखते हुए यह जरूरी है कि यह सेक्टर जलवायु में आते बदलावों को गम्भीरता से ले और अपनी नीतियों में उसके अनुरूप बदलाव करे।