विकास

बजट 2020-21: मनरेगा के आवंटन में 15 फीसदी की कमी, कैसे सुधरेगी ग्रामीण अर्थव्यवस्था?

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने न केवल ग्रामीण विकास मंत्रालय का बजट कम कर दिया है, बल्कि संशोधित अनुमान के मुकाबले मनरेगा के बजट में भारी कमी की गई है

Jitendra, Raju Sajwan

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) सहित कई रिपोर्ट बताती हैं कि गांवों में उपभोक्ता खर्च का कम होने की वजह से भारत में आर्थिक मंदी बढ़ रही है। ऐसे में, जब तक ग्रामीणों की क्रय शक्ति नहीं बढ़ेगी, आर्थिक मंदी का असर कम नहीं होगा, लेकिन यह चिंता वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट में नहीं दिखाई दी। वित्त मंत्री ने न केवल ग्रामीण विकास मंत्रालय का बजट घटा दिया, बल्कि ग्रामीणों की आमदनी का एक बड़ा जरिया मानी जा रही महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का बजट भी लगभग 15 फीसदी तक घटा दिया है।

बजट 2020-21 में मनरेगा के लिए 61500 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है, जबकि 2019-20 में बजट का संशोधित अनुमान (आरई)  71001.81 करोड़ रुपए था। हालांकि बजट में असल अनुमान 60 हजार करोड़ रुपए का लगाया गया था। यानी कि संशोधित अनुमान के हिसाब से बात की जाए तो सरकार ने लगभग 10 हजार करोड़ रुपए (15 फीसदी) घटा दिया है।

हैदराबाद के किसान नेता किरण विस्सा कहते हैं कि अर्थव्यवस्था की जो हालात है, उसके हिसाब से ग्रामीण क्षेत्रों में आमदनी और मांग बढ़ाए जाने की जरूरत है, लेकिन बजट में सरकार ने इसका उलट कर दिया।

सरकार ने ग्रामीण विकास मंत्रालय के कुल बजट आवंटन को भी कम कर दिया है। बजट 2019-20 का संशोधित अनुमान 1,22,649 करोड़ रुपए था, बजट 2020-21 में इसे घटाकर 1,20,147.19 करोड़ रुपए कर दिया गया है।

ऐसे समय में, जब देश में 45 साल बाद बेरोजगारी दर इस स्तर पर पहुंची है। मुद्रा स्फीति दर भी 71 माह के उच्चतम स्तर पर है और लोगों के क्रय शक्ति लगातार घटती जा रही है। विशेषज्ञों का अनुमान था कि सरकार मनरेगा पर खर्च बढ़ा सकती है।

नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी ने भी सुझाव दिया था कि अगर मनरेगा का आवंटन बढ़ता है तो ग्रामीणों तक पैसा पहुंचेगा और उनका उपभोग व्यय बढ़ेगा, जिससे अर्थव्यवस्था में सुधार हो सकता है।

मनरेगा का समर्थन करने वाली संस्था नरेगा संघर्ष मोर्चा के प्रतिनिधियों ने बजट से पहले कहा था कि हर वित्त वर्ष में नरेगा का बजट कम होता जा रहा है और बजट का लगभग 20 फीसदी हिस्सा केवल पुराने रुके हुए भुगतान पर खर्च हो जाता है।

इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्र में सड़कों का जाल बिछाने के लिए चल रही योजना प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में मामूली बढ़ोतरी की गई है। साल 2019-20 के बजट में पीएमजीएसवाई के लिए 19 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था, लेकिन बाद में संशोधित अनुमान 14070 करोड़ रुपए कर दिया गया। अब 2020-21 के लिए 19500 करोड़ रुपए के खर्च का अनुमान लगाया गया है।

पंचायती राज संस्थानों के बजट में भी मामूली सी वृदिध् की गई है। 2019-20 में पंचायती राज संस्थानों के  लिए 871 करोड़ रुपए का अनुमान लगाया गया था। अब नए बजट में इसे बढ़ा कर 900 करोड़ कर दिया गया है। हालांकि पिछले साल का संशोधित अनुमान केवल 500 करोड़ रुपए ही था।