विकास

सामाजिक और पर्यावरण से जुड़े लक्ष्यों को पूरा करने में विफल रही बड़ी फैशन कंपनियां

इस इंडेक्स में सबसे ख़राब प्रदर्शन करने वाली अमेरिकी कंपनी अंडर आर्मर है, जिसे कुल 9 अंक मिले हैं जबकि उसके बाद स्विस फर्म रिचमोंट है, जिसे

Lalit Maurya

दुनिया की 15 सबसे बड़ी फैशन कंपनियों पर किए शोध से पता चला है कि वो अपने सामाजिक और पर्यावरणीय लक्ष्यों को पूरा करने में विफल रही हैं। जिसमें जलवायु के लिए किया गया पैरिस समझौता और संयुक्त राष्ट्र द्वारा तय सतत विकास के लक्ष्य शामिल हैं। इन कंपनियां ने यह वादा किया था कि वो पर्यावरण और सामाजिक क्षेत्र पर पड़ रहे अपने प्रभावों में कमी लाएंगी और उसे बेहतर बनाने का प्रयास करेंगी।

यह जानकारी फैशन उद्योग के बारे में लिखने वाले एक ऑनलाइन प्रकाशन, द बिज़नेस ऑफ फैशन द्वारा जारी रिपोर्ट में सामने आई है। जिसमें उसने फैशन कंपनियों की तीन श्रेणियों - लक्जरी, स्पोर्ट्सवियर और हाई स्ट्रीट फैशन से जुड़ी सबसे बड़ी कंपनियों की जानकारी का विश्लेषण किया है। इसमें केरिंग, एडिडास, एचएंडएम, एडिडास, गैप, लेविस, प्यूमा जैसे नामी ब्रांड शामिल हैं।

इस रिपोर्ट के साथ जो सस्टेनेबिलिटी इंडेक्स जारी किया गया है उसमे इन 15 नामी कंपनियों के छह क्षेत्रों पर पड़ रहे असर के आधार पर विश्लेषित किया गया है। इसमें उन्हें पारदर्शिता, उत्सर्जन, जल और केमिकल्स का उपयोग, मैटेरियल्स, श्रमिकों के अधिकार और अपशिष्ट के आधार पर कसौटी पर परखा गया है और उन्हें अंक दिए गए हैं।

गौरतलब है कि वर्ल्ड इकनोमिक फोरम द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार फैशन इंडस्ट्री दुनिया के 4 फीसदी उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार है।

अमेरिकी कंपनी अंडर आर्मर को मिले सबसे कम 9 अंक

रिपोर्ट की मानें तो किसी भी कंपनी ने 100 में से 50 अंक भी प्राप्त नहीं किए हैं। इसमें सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाली कंपनी फ्रांस की केरिंग थी जिसे सबसे ज्यादा 49 अंक मिले हैं, इसके बाद नाइक को 47 अंक दिए गए हैं। वहीं इस इंडेक्स में सबसे ख़राब प्रदर्शन करने वाली अमेरिकी कंपनी अंडर आर्मर है जिसे कुल 9 अंक मिले हैं जबकि उसके बाद स्विस फर्म रिचमोंट है, जिसे कुल 14 अंक दिए गए हैं।

वैश्विक अर्थव्यवस्था के पास जलवायु परिवर्तन से बचने के लिए केवल 10 वर्ष हैं। साथ ही इन कंपनियों के आधार उनके श्रमिकों की स्थिति में सुधार लाने के लिए तुरंत काम करने की जरुरत है। समय तेजी से बीत रहा है और अब सिर्फ इस बारे में बात करना ही काफी नहीं है, इस पर काम करने की भी जरुरत है।

रिपोर्ट के अनुसार फैशन उद्योग की कई बड़ी कंपनियां यह नहीं जानती की उनके उत्पाद कहां से आते हैं और कहां जाते हैं या फिर वो इस बात का खुलासा करना नहीं चाहती। ऐसे में इनके प्रभावों को मापना और कठिन हो जाता है। यह एक तरफ जहां श्रमिकों के शोषण और मानवाधिकारों के हनन को बढ़ता है वहीं इसके कारण इनके पर्यावरण पर पड़ रहे असर को मापना कठिन हो जाता है।

पर्यावरण पर कितना असर डाल रहा है फैशन उद्योग

यदि कपड़ा और वस्त्र उद्योग की बात करें तो वो वैश्विक विनिर्माण में 173,89,740 करोड़ रुपए (240,000 करोड़ डॉलर) का योगदान देता है। दुनिया में 8.6 करोड़ लोग इसमें संलग्न है जिसमें से ज्यादातर महिलाएं हैं।

फैशन उद्योग पर्यावरण पर कितना असर डाल रहा है इस बाबत 2019 में यूएन एलायंस फॉर सस्टेनेबल फैशन द्वारा जारी एक रिपोर्ट से पता चला है कि फैशन इंडस्ट्री पानी की दूसरी सबसे बड़ी उपभोक्ता है, जबकि वो वैश्विक कार्बन उत्सर्जन के 8 से 10 फीसदी हिस्से के लिए जिम्मेवार हो जोकि सभी अंतरराष्ट्रीय उड़ानों और समुद्री परिवहन से होने वाले उत्सर्जन से भी ज्यादा है।

दुनिया भर में औद्योगिक अपशिष्ट के रूप में निकले प्रदूषित जल का करीब 20 फीसदी हिस्सा इसी उद्योग से उत्पन्न होता है। हर साल करीब 36,22,862 करोड़ रुपए (50,000 करोड़ डॉलर) मूल्य का कपड़ा उपयोग न होने और पुनर्चक्रण की कमी के कारण बर्बाद हो जाता है।

जबकि इस नई जारी रिपोर्ट के अनुसार कई कंपनियों ने अपने उत्सर्जन को कम करने की बात कही है पर वो यह कैसे करेंगे इस बारे में बहुत थोड़ी जानकारी उपलब्ध है, जबकि तीन कंपनियों रिचमोंट, अंडर आर्मर और एलवीएमएच ने अपने उत्सर्जन के लिए कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किए हैं। वहीं आधे से कम कंपनियों ने अपने पानी और खतरनाक केमिकल्स के उपयोग को कम करने की बात कही है। केवल 4 कंपनियों ने तेल आधारित पॉलिएस्टर को बदलने की समय सीमा तय की है।

रिपोर्ट में हाल ही में एलेन मैकआर्थर फाउंडेशन द्वारा किए अध्ययन का हवाला देते हुए बताया है कि हर साल 4 करोड़ टन कपड़ा लैंडफिल में वेस्ट के रूप में भेजा जाता है। यही नहीं इस उद्योग में लगे अनेकों श्रमिकों के अधिकारों का भी उल्लंघन होता है, जिसमें इन्हें पूरा पारिश्रमिक ने मिलने से लेकर इनका शोषण तक शामिल है।

इस रिपोर्ट के एक लेखक और हांगकांग रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्सटाइल्स एंड अपैरल से जुड़े एडविन केह के अनुसार पर्यावरण स्थिरता किसी एक ब्रांड, सप्लायर  और रिटेलर से कहीं ऊपर है। जिसके लिए हम सभी को मिलकर काम करना होगा।