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बसंत पंचमी: एक ऐसा त्यौहार जो पर्यावरण में बिखरेता है प्रकृति के रंग

उत्तराखंड में बसंत पंचमी के अवसर पर चौंफुला और झुमेलिया नृत्य किया जाता है

Dayanidhi

बसंत पंचमी वसंत ऋतु का जश्न मनाने वाला त्योहार है जो विभिन्न प्रकार के फूलों के साथ आता है। पर्यावरण में विभिन्न रंगों को बिखेरता हैं। बसंत पंचमी को श्रीपंचमी भी कहा जाता है। बसंत पंचमी के अवसर पर पूरे भारत में देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।

इस दिन लोग पीले सूती कपड़े पहनते हैं, चावल या केसर सूजी का हलवा के साथ पकाई गई हल्दी जैसे पीले भोजन का सेवन करते हैं। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए लोग अपने माथे पर पीला तिलक भी लगाते हैं।

उत्तराखंड में लोग गायन और नृत्य करके बसंत का स्वागत करते हैं। लोग बसंत पंचमी के अवसर पर चौंफुला और झुमेलिया नृत्य करते हैं। 

बसंत पंचमी का त्योहार होली बैठकी की शुरुआत का भी प्रतीक है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार बसंत पंचमी माघ महीने में मनाई जाती है। इस दिन लोग बुद्धि, ज्ञान और कला की देवी देवी सरस्वती की पूजा करते हैं। अभिभावक अपने बच्चों को पहला शब्द सिखाते हैं और उनके आशीर्वाद के लिए अपनी किताबें, नोटबुक, पेन आदि मां सरस्वती की मूर्ति के पास रखते हैं। लोग पतंग उड़ाते हैं और इसके लिए तरह-तरह की प्रतियोगिताएं भी आयोजित करते हैं।

उत्तराखंड में इस दिन सुबह स्नान करके घरों की लिपाई-पुताई की जाती है, पूड़ी-पकौड़ी बनाई जाती है। घर की महिला मुखिया टोकरी में फूल, दीप, खाद और कुदाल लेकर खेत में जाती हैं और  हल जोतने की रस्म की जाती हैं। 

देश के कई हिस्सों में बसंत पंचमी की दावत की शुरुआत सुगंधित और जायकेदार केसर चावल के व्यंजन से की जाती है। बासमती चावल को गर्म दूध में भिगोया जाता है और इसमें चुटकी भर केसर के धागों के साथ इलायची, लौंग और दालचीनी जैसे सुगंधित मसालों के साथ इसे पकाया जाता है। केसर का सुनहरा रंग इस अवसर की उत्सव भावना को पूरी तरह से पूरक करता है।

कोई भी भारतीय त्योहार मिठाइयों के बिना पूरा नहीं होता और बसंत पंचमी भी इसका अपवाद नहीं है। बेसन को घी में सुनहरा भूरा होने तक भूनकर, फिर इसमें पिसी चीनी, कटे हुए मेवे और थोड़ा सा इलायची पाउडर मिलाकर स्वादिष्ट बेसन के लड्डू तैयार किए जाते हैं। 

भारत के कई इलाकों में बसंत पंचमी के अवसर पर सुबह-सुबह लाखों लोग गंगा और पवित्र संगम में डुबकी लगाते हैं। महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग समेत श्रद्धालु सुबह से ही इस दिन को मनाने के लिए घाटों पर एकत्रित हो जाते हैं।