यदि मौजूदा रफ्तार से चलता रहा तो एशिया-पैसिफिक क्षेत्र 2030 तक अपने 10 फीसदी एसडीजी लक्ष्यों को भी हासिल नहीं कर पाएगा। यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी रिपोर्ट 'एशिया एंड द पैसिफिक एसडीजी प्रोग्रेस रिपोर्ट 2021' में सामने आई है। संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग (यूएनएस्केप) के तहत 2030 तक सतत विकास से जुड़े 17 लक्ष्यों को हासिल करने का लक्ष्य रखा गया था।
जिसमें गरीबी उन्मूलन, अच्छा स्वास्थ्य, सब के लिए भोजन, बेहतर शिक्षा, लैंगिक समानता, साफ पानी और स्वच्छता, सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा, बेहतर काम और आर्थिक विकास, जैवविवधता, इनोवेशन और बुनियादी ढांचे को मजबूत करना और असमानताओं को कम करना जैसे मुद्दे शामिल थे।
यदि इन लक्ष्यों को हासिल करने के सकारात्मक क़दमों की ओर देखें तो इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा प्रगति लक्ष्य 3 जोकि स्वास्थ्य और बेहतर जीवन की बात करता है, उसमें हुई है। इसके बाद इनोवेशन और बुनियादे ढांचे (लक्ष्य 9) में भी प्रगति देखने को मिली है।
साथ ही, गरीबी उन्मूलन (लक्ष्य 1), जीरो हंगर (लक्ष्य 2) और बेहतर शिक्षा (लक्ष्य 4), असमानता (लक्ष्य 10) और आपसी साझेदारी (लक्ष्य 17) में भी कुछ प्रगति हुई है, हालांकि इसके बावजूद वो इतनी नहीं है जिसे कहा जा सके कि वो 2030 के लक्ष्यों को हासिल कर लेगी।
इसके अलावा क्षेत्र जलवायु परिवर्तन (लक्ष्य 13) और जलीय जीवन (लक्ष्य 14) को हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहा है। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि आधे लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में हो रही प्रगति या तो रुक गई है या फिर उसकी गति बहुत धीमी है।
इसके बावजूद एशिया-पैसिफिक के कुछ क्षेत्रों में इन लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में कुछ प्रगति हुई है। उदाहरण के लिए पूर्वी और उत्तर पूर्वी एशिया में गरीबी उन्मूलन की दिशा में प्रगति हुई है। इसके साथ ही साफ पानी और स्वच्छता की दिशा में भी प्रगति हुई है। वहीं दक्षिण पूर्व एशिया में इनोवेशन और उद्योगों के लक्ष्य में सफलता मिली है। हालांकि यहां के ज्यादातर क्षेत्र पर्यावरण से जुड़े मुद्दों और लक्ष्यों को हासिल करने के लिए संघर्षरत हैं।
कोरोना ने डाला है सबसे ज्यादा बुरा असर
यह रिपोर्ट ऐसे समय में पेश की गई है जब पूरा विश्व कोरोना महामारी से उपजे संकट से जूझ रहा है, ऐसे में उसका एशिया-पैसिफिक क्षेत्र पर उसका असर पड़ना स्वाभाविक ही है। जो सतत विकास से जुड़े इन 17 लक्ष्यों पर भी स्पष्ट रूप से दिखता है।
यदि मातृ-मृत्यु दर की बात करें तो एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 14 देशों में उसके बढ़ने की आशंका है। यह 2020 के आधार पर देखें तो इसके प्रति लाख जीवित जन्मों पर 184 का अनुमान था जो सबसे खराब स्थिति में बढ़कर 263 पर जा सकती है। इसी तरह छह महीनों में इस क्षेत्र में 5 वर्ष से कम उम्र के 5 लाख से ज्यादा बच्चों की मृत्यु का अनुमान है।
यहां के करीब आधे देश आर्थिक विकास की गति में नकारात्मक वृद्धि देख रहे हैं। इसी तरह इस महामारी के चलते जून से अगस्त 2020 के बीच बुजुर्ग लोगों की दी जाने वाली 70 फीसदी मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सेवाएं बाधित हो गई थी।
आंकड़ों के अनुसार इस क्षेत्र के करीब 64 करोड़ लोग महामारी से पहले ही अलग-अलग तरह से गरीबी की मार झेल रहे थे, जिनके इस महामारी में दोगुना हो जाने की सम्भावना है। अनुमान है कि इस महामारी के चलते करीब 63.6 करोड़ अतिरिक्त लोग गरीबी की चपेट में होंगे। साथ ही 2020 के अंत तक 7.1 करोड़ बच्चे पैसे की तंगी का शिकार हो चुके हैं। यदि शिक्षा की बात करें तो इस क्षेत्र के 85 करोड़ छात्रों की शिक्षा पर असर पड़ा है और सितंबर 2020 तक उन्होंने अपना आधा साल बर्बाद कर दिया था।
इसी तरह यदि बेरोजगारी की बात करें तो 2019 की तुलना में 2020 में करीब 1.5 करोड़ अतिरिक्त लोग बेरोजगार होंगे, जिसके लिए यह महामारी ही जिम्मेवार है। यहां के मजदूर अपनी मजदूरी का करीब 7.1 फीसदी हिस्सा 2020 में गंवा चुके हैं, जोकि करीब 72,58,405 करोड़ रुपए के बराबर है। अप्रैल 2020 में हुए लॉकडाउन ने इस क्षेत्र के असंगठित क्षेत्र से जुड़े करीब 82.9 करोड़ मजदूरों पर असर डाला था।
इसी तरह पर्यावरण के मामले में इस क्षेत्र के 11 देशों में कोई ख़ास प्रगति नहीं हुई है। इस क्षेत्र के तटीय इलाकों की सुरक्षा में निश्चित रूप से कुछ प्रगति हुई है लेकिन स्थायी मत्स्य पालन से होने वाले आर्थिक लाभ और महासागरों की गुणवत्ता में गिरावट देखने को मिली है। क्षेत्र में पानी को लेकर जो तनाव है वो बढ़ता ही जा रहा है। 2000 के बाद से इसकी स्थिति काफी खराब हो गई है। जिस पर ध्यान देना जरुरी है।
रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली और आसपास के इलाकों में वायु गुणवत्ता में सुधार हुआ है और प्रदूषण का स्तर 20 वर्षों के अपने निम्नतम स्तर पर आ गया है इसके बावजूद वो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानकों से काफी ज्यादा ऊपर है। यह क्षेत्र आज भी दुनिया की करीब आधी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार है जिसमें कोई कमी नहीं आई है।
साथ ही इस क्षेत्रों में इन लक्ष्यों की प्राप्ति में इनसे जुड़े आंकड़ों की कमी भी काफी हद तक जिम्मेवार है इसी को देखते हुए यूएन एस्केप ने एसडीजी ट्रैकर टूल भी विकसित किया है जिससे देशों की प्रगति को मापा जा सके।
हालांकि इस महामारी पहले भी यह क्षेत्र इन लक्ष्यों को हासिल करने की राह पर नहीं था। लेकिन इस महामारी के चलते लक्ष्यों को हासिल करने की यह जो राह है वो और कठिन हो गई है। ऐसे में इस क्षेत्र के सभी देशों को साथ मिलकर ज्यादा बेहतर तरीके से काम करने की जरुरत है जिससे इन लक्ष्यों को हासिल किया जा सके।