उत्तराखंड में लगातार आपदाएं जारी हैं लेकिन इस बीच बेहद नाजुक और संवेदी क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई करके सड़क निर्माण जैसी प्रक्रियाओं के लिए कोई रोकथाम नहीं है। राज्य के वन विभाग ने 15 जुलाई 2025 को 8.070 किलोमीटर लंबी और 17.5 हेक्टेयर क्षेत्रफल वाली वन भूमि पर हिना-तेखला यानी नेटाला बाईपास के निर्माण यानी गैर वानिकी प्रयोग के लिए सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है। हालांकि, इस मंजूरी को तत्काल रद्द करने के लिए पर्यावरण कर्ताओं और नागरिक मंचों ने आवाज उठाई है।
डाउन टू अर्थ ने पाया कि इस प्रस्ताव की स्वीकृति परिवेश पोर्टल पर अपलोड कर दी गई है। यह स्वीकृति राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 34 पर हिना से तेखला पुल तक नए मार्ग और विस्तारीकरण कार्य के लिए है।
उत्तराखंड के प्रमुख वन संरक्षक द्वारा दी गई सैद्धांतिक मंजूरी में लिखा गया है, "कृपया इस संबंध में अग्रेत्तर आवश्यक कार्यवाही करने का कष्ट करें।" यानी बीआरओ अब इस वन भूमि पर सड़क चौड़ीकरण का काम शुरू करने के लिए कदम बढ़ा सकता है।
इस इलाके में हिना-तेखला बाईपास को नेटाला बाईपास भी कहा जाता है और बीआरओ की योजना के अनुसार यह हिस्सा चारधाम परियोजना का महत्वपूर्ण भाग है।
हिमालयी नागरिक दृष्टि मंच ने 25 अगस्त, 2025 को चारधाम परियोजना की निगरानी करने वाली ओवरसाइट एंव हाई पावर कमेटी और रक्षा मंत्रालय, पर्यावरण मंत्रालय और सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को भेजे गए पत्र में आरोप लगाया है कि वन भूमि को गैर वन भूमि में बदलने की यह सैद्धांतिक मंजूरी सुप्रीम कोर्ट और हाई पॉवर कमिटी (एचपीसी) की सिफारिशों का खुला उल्लंघन है।
मंच से जुड़े एक पर्यावरण कार्यकर्ता ने डाउन टू अर्थ से कहा, उत्तराखंड लगातार त्रासदियां झेल रहा है। खासतौर से धराली में यह त्रासदी अभी हाल ही में देखी गई है। यह परियोजना भी धराली के पास ही है। इस परियोजना में लगातार पेड़ों की कटाई जारी है जबकि यह पेड़ ही इस पर्यावरण संवेदी क्षेत्रों की मजबूती हैं।
वहीं, हिमालयी नागरिक मंच की ओर से सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. नागेश जगूड़ी , वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता अधिवक्ता मुरारी लाल भट्ट, पार्षद एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमरीकन पुरी, सामाजिक कार्यकर्ता गौतम भट्ट ‘साथी’, सामाजिक कार्यकर्ता दीपक रमोला, पर्यावरण कार्यकर्ता गीता गैरोला ने भागीरथी इको सेंसिटिव जोन अंतर्गत एचपीसी की सिफारिशों की अवमानना एवं झाला-भैरोघाटी के बीच हजारों देवदार वृक्षों की अनावश्यक कटान संबंधी कार्रवाई पर कड़ा आपत्ति पत्र भेजते हुए वन भूमि के गैर वन भूमि प्रयोग की सैद्धांतिक मंजूरी को तत्काल रद्द करने की मांग की है।
मंच ने मांग की है, "भागीरथी इको जोन में बीआरओ की प्रस्तावित चारधाम परियोजना पर तुरंत रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट और एचपीसी के उल्लंघन में स्वीकृत हिना-तेखला (नेटाला बायपास) को रद्द किया जाए। वहीं, तत्काल घाटी में एचपीसी विशेषज्ञों के साथ निरीक्षण कर, विशेषज्ञों द्वारा सुझाए अनुसार ही हाईवे सुधार कार्य सुनिश्चित किया जाए।"
पत्र में कहा गया है कि एचपीसी ने पहले ही स्पष्ट किया था कि इस संवेदनशील भूभाग में बाईपास का निर्माण टालना चाहिए और देवदार के वृक्षों की कटाई हर हाल में रोकी जानी चाहिए। हालांकि, ऐसा नहीं हो रहा है।
मंच ने अपने पत्र में लिखा है कि हिना-तेखला बाईपास का क्षेत्र नेताला भू-स्खलन जोन है, जहां लगभग नौ किलोमीटर लंबाई में हजारों पेड़ काटे जाएंगे। यह क्षेत्र पहले से ही संवेदनशील है और हाल के वर्षों में धराली आपदा तथा भटवाड़ी क्षेत्र में बड़े भूस्खलन हो चुके हैं। हर बरसात में नए भू-स्खलन और धंसाव सामने आ रहे हैं। इसके बावजूद बीआरओ चौड़ीकरण की योजना में दस मीटर ब्लैकटॉप की सड़क बना रहा है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 7 सितंबर 2020 को अपने आदेश में भागीरथी इको सेंसिटिव जोन में चौड़ाई 5.5 मीटर तक सीमित रखने की शर्त लगाई थी।
मंच ने सुप्रीम कोर्ट को दिए गए अपने आदेश में पैरा-55 के तहत कहा था, "किसी भी निर्माण से पहले संवेदनशीलता मूल्यांकन और भूभाग का आकलन किया जाना जरूरी है।" एचपीसी ने भी यही सिफारिश की थी। लेकिन कार्यकर्ताओं का आरोप है कि बीआरओ और संबंधित एजेंसियों ने इन शर्तों को नजरअंदाज कर परियोजना को आगे बढ़ाया। मंच ने लिखा कि बीआरओ की यह मनमानी और जल्दबाजी न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि स्थानीय जीवन और आजीविका के लिए भी खतरा है।
ऋषिकेश से उत्तरकाशी तक बीआरओ के द्वारा किए गए सड़क चौड़ीकरण निर्माण कार्य में इस बार भारी तबाही हुई है। हर बार बरसात में नए भूस्खलन क्षेत्र तैयार हो रहे हैं।
वहीं, स्थानीय निवासियों का कहना है कि सड़क चौड़ीकरण के चलते बरसात में यात्रा करना जान जोखिम में डालने जैसा हो गया है। नालुपानी से चंबा के बीच यात्रा करना इस समय सबसे मुश्किल है। मंच ने कहा कि यह परियोजना आपदाओं से सबक लेने के बजाय और अधिक परियोजनाओं को स्वीकृति दिलाने का साधन बन गई है। स्थानीय संगठनों का कहना है कि यह सिर्फ एक सड़क नहीं, बल्कि हजारों देवदार के पेड़ों, पहाड़ों की स्थिरता और गंगा की पारिस्थितिकी पर सीधा हमला है।