विकास

साल के अंत तक 145 रुपए प्रति दिन से कम में गुजारा करने को मजबूर होंगें 86 करोड़ लोग

अनुमान है कि अकेले वैश्विक खाद्य कीमतों में होती बढ़ोतरी करीब 6.5 करोड़ लोगों को गरीबी के दलदल में धकेल देगी

Lalit Maurya

साल के अंत तक दुनिया भर में करीब 86 करोड़ लोग 145 रुपए (1.9 डॉलर) प्रति दिन से कम में गुजारा करने को मजबूर होंगें। मतलब कि वो लोग गंभीर रूप से गरीबी का शिकार बन जाएंगें। यह जानकारी आज ऑक्सफेम द्वारा जारी रिपोर्ट “फर्स्ट क्राइसिस, देन कैटास्ट्रोफे” में सामने आई है। वहीं यदि 420 रुपए (5.5 डॉलर) प्रतिदिन के हिसाब से देखें तो 2022 के अंत तक दुनिया भर में करीब 330 करोड़ लोग गरीबी की मार झेलने को मजबूर होंगें। 

रिपोर्ट की माने तो दुनिया भर में बढ़ती गरीबी के लिए महामारी के कारण आए संकट, बढ़ती असमानता, खाद्य कीमतों में होती वृद्धि और यूक्रेन में जारी युद्ध को वजह माना है। अनुमान है कि इनके चलते साल के अंत तक पहले के मुकाबले करीब और 26.3 करोड़ लोग भीषण गरीबी का सामना करने को मजबूर होंगें। देखा जाए तो यह आंकड़ा यूके, फ्रांस, जर्मनी और स्पेन की कुल आबादी के बराबर है। 

इतना ही नहीं ऑक्सफेम का अनुमान है कि अकेले वैश्विक खाद्य कीमतों में होती बढ़ोतरी करीब 6.5 करोड़ लोगों को गरीबी के दलदल में धकेल देगी। वहीं विश्व बैंक का अनुमान है की कोविड-19 महामारी के चलते 2022 में करीब और 19.8 करोड़ लोग भीषण गरीबी का सामना कर रहे होंगें।

साल के अंत तक कुपोषण का शिकार होंगें 82.7 करोड़ लोग

ऐसे में इस बढ़ती गरीबी के कारण लोग अपना पेट भरने के लिए भी संघर्ष करने को मजबूर हो जाएंगे। यदि ऐसा ही चलता रहा तो अनुमान है कि 2022 के अंत तक कुपोषण के शिकार लोगों का आंकड़ा बढ़कर 82.7 करोड़ तक जा सकता है। अनुमान है कि अकेले पूर्वी अफ्रीका में करीब 2.8 करोड़ लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिलेगा।

पता चला है कि अकेले 2020 में कोरोना महामारी के कारण उपजे संकट के चलते महिलाओं की आय को 60.9 लाख करोड़ रुपए की हानि हुई थी। जोकि 98 देशों के कुल जीडीपी से भी ज्यादा है। विश्व बैंक की माने तो महामारी और बढ़ती असमानता ने इस क्षेत्र में पिछले दो दशकों में हुई प्रगति को पलट दिया है। जिनके कारण अकेले 2022 में करीब 19.8 करोड़ लोग चरम गरीबी का शिकार हो जाएंगे।  

आज दुनिया की एक बड़ी आबादी बढ़ती कीमतों के चलते जीवन-यापन के लिए जद्दोजहद कर रही है। उनके लिए यह तय कर पाना मुश्किल हो रहा है कि वो अपनी आय खाने पर खर्च करे या उससे अपने चिकित्सा सम्बन्धी बिलों का भुगतान करे। ऐसे में अंदेशा है कि आने वाले वक्त में बड़ी संख्या में लोग भुखमरी और कुपोषण का शिकार बन सकते हैं। गौरतलब है कि पूर्वी अफ्रीका, यमन और सीरिया जैसे देशों में लोग ऐसी भूख और गरीबी से बुरी तरह त्रस्त हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक एक तरफ कमजोर देश बढ़ते कर्ज के भंवर जाल में बुरी तरह उलझ गए हैं। उन देशों में मजदूरी और क्रय शक्ति कम हो गई है, वहीं दूसरी तरफ कॉर्पोरेट मुनाफा बढ़ गया है और अरबपतियों की संपत्ति नए कीर्तिमान बना रही है।

वर्ल्ड बैंक द्वारा जारी रिपोर्ट ‘इंटरनेशनल डेब्ट स्टेटिस्टिक्स 2022’ के अनुसार पहले ही गरीबी की मार झेल रहे देशों पर 2020 में 12 फीसदी की वृद्धि के साथ कर्ज का बोझ बढ़कर रिकॉर्ड 65 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गया है। वहीं यदि निम्न और मध्यम आय वाले देशों पर कुल विदेशी कर्ज की बात करें तो वो 2020 में 5.3 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर 654.9 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गया था।

रिपोर्ट के अनुसार भारत पर भी कुल 42.5 लाख करोड़ रुपए का विदेशी कर्ज है,  इस हिसाब से हर भारतीय करीब 30,776 रुपए के कर्ज के नीचे दबा हुआ है। कर्ज का यह बोझ 2010 में करीब 21.9 लाख करोड़ रुपए का था, जो पिछले 10 वर्षों में 96 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर 2020 में 42.5 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गया है। इसमें से 84,254 करोड़ रुपए का तो केवल ब्याज है, जिसे लम्बी अवधि के दौरान चुकाया जाना है।

ऑक्सफेम द्वारा जारी रिपोर्ट में भारत के उद्योगपति गौतम अडानी का भी जिक्र किया गया है। जिनकी महामारी के दौरान संपत्ति आठ गुना बढ़ गई है। उन्हें जीवाश्म ईंधन से काफी लाभ हुआ है। ऑक्सफेम द्वारा जारी रिपोर्ट में भारत के उद्योगपति गौतम अडानी का भी जिक्र किया गया है। जिनकी महामारी के दौरान संपत्ति आठ गुना बढ़ गई है। उन्हें जीवाश्म ईंधन से काफी लाभ हुआ है।

वहीं यदि दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति एलोन मस्क की बात करें तो उन्हें सरकारी सब्सिडी की मदद से अरबों डॉलर का फायदा हुआ है। गौरतलब है कि उन्होंने 2021 में अरबपतियों पर लगने वाले प्रस्तावित कर की आलोचना करते हुए तर्क दिया था कि अपने धन के उपयोग को लेकर उनकी योजना मंगल पर मानवता को बसाने की है। ऐसे में असमानता की यह खाई कितनी गहरी है उसका अंदाजा आप खुद ही लगा सकते हैं।   

इस बारे में ऑक्सफेम ऑक्सफैम इंटरनेशनल की कार्यकारी निदेशक गैब्रिएला बुचर का कहना है कि यदि इस विषय में तत्काल ठोस कदम न उठाए गए तो हम मानवता को गरीबी के गर्त में जाता देखने को मजबूर होंगें। इस भयानक सम्भावना को इस तथ्य ने और अधिक बीमार बना दिया है कि दुनिया में खरबो डॉलर की संपदा पर कुछ गिने चुने प्रभावशाली लोगों का वर्चस्व है, जिन्हें इस बढ़ते संकट को दूर करने में कोई दिलचस्पी नहीं है।