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ओडिशा के गंजम जिले के 38 गांवों को मिला “राजस्व” का दर्जा

ओडिशा राजस्व बोर्ड द्वारा किए गए अनुमोदन के बाद इन गांवों के छह हजार से ग्रामीणों को बुनियादी सुविधाएं मिलने का रास्ता साफ हो गया है

Anil Ashwani Sharma

ओडिशा के गंजम जिले के 38 गांवों को “राजस्व” का दर्जा मिलने से लगभग छह हजार से अधिक ग्रामीणों को बुनियादी सुविधाओं के मिलने का रास्ता साफ हो गया है।

गंजम जिला मजिस्ट्रेट ने हाल ही में ओडिशा राजस्व बोर्ड द्वारा किए गए अनुमोदन के बाद 38 गैर-सर्वेक्षित वन गांवों को राजस्व गांवों में बदलने की अधिसूचना जारी की।

ध्यान रहे कि राज्य के गंजम जिले के जंगलों के भीतर छह हजार से अधिक ग्रामीण दशकों से मिलने वाली आवश्यक सरकारी कल्याणकारी योजनाओं और अन्य सरकारी लाभों से वंचित थे, लेकिन अब वन अधिकार अधिनियम के तहत राजस्व गांवों के रूप में इन गांवों को मान्यता मिलने के बाद से ग्रामीणों को सभी सरकारी सुविधाओं का लाभ मिल सकेगा।

ये लोग ऐसे 38 बिना सर्वेक्षण वाले वन गांवों का हिस्सा थे, जहां ग्रामीणों को अपनी हर काम के लिए वन विभाग से अनुमति लेनी पड़ती थी। यही नहीं, जनगणना रिपोर्ट में तो ऐसे गांवों की पहचान “शून्य” गांवों के रूप में की गई थी यानी ये गांव खाली हैं।

लेकिन वास्तविकता यह है कि दशकों से इन गांवों में लोग रहते आए हैं। गंजम जिला मजिस्ट्रेट ने हाल ही में ओडिशा राजस्व बोर्ड के अनुमोदन के बाद 38 गैर-सर्वेक्षित गांवों को राजस्व गांवों में बदलने की जारी की गई अधिसूचना में कहा गया है कि सोरदा और पोलासरा तहसीलों के 13-13 गांव, धारकोट तहसील के 7 गांव और जिले की कोडला तहसील के पांच गांव अब से राजस्व गांवों के रूप में पहचान होगी।

फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी (एफईएस) के वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक बरना बैभाबा पांडा ने कहा कि सर्वेक्षित गांवों में जीवन यापन बहुत कठिन है। इनमें से अधिकांश गांवों में जल आपूर्ति परियोजनाओं, स्कूलों, आंगनवाड़ी केंद्रों और सबसे अधिक महत्पूर्ण है सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हैं।

पांडा का का कहना था कि इन ग्रामीणों को जाति, निवास और आय प्रमाण पत्र प्राप्त करने जैसी चीजों के लिए बहुत अधिक इंतजार करना पड़ता था, क्योंकि उनके पास उनके नाम पर वैध भूमि का रिकॉर्ड नहीं था। वैध भूमि अभिलेखों के बिना राजस्व अधिकारी उन्हें सामान्य नागरिक के रूप में स्वीकार करने और आवश्यक प्रमाण पत्र जारी करने में अनिच्छा दिखाते थे।

ऐसे में ग्रामीण शिक्षा और सरकारी कल्याणकारी लाभों का लाभ उठाने के लिए आवश्यक कागजात के आभाव में सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाते थे। वे ऐसे हर काम के लिए वन विभाग की अनुमति पर निर्भर थे।

पांडा ने बताया कि इन बिना सर्वेक्षण वाले ग्रामीणों की पहचान प्रक्रिया आसान नहीं थी। तीन महीने से अधिक समय तक चलने वाली इस प्रक्रिया में गांवों में गोचर, कब्रिस्तान, तालाब, बाग, पूजा स्थल, खेल के मैदान और अन्य सामुदायिक भूमि जैसी सभी सामान्य भूमि की पहचान की गई व उनका मापन किया गया और साथ ही इनका सीमांकन भी किया गया।

इस मामले में जिला कल्याण कार्यालय ने इन गांव में सरकारी गड़बडियों को दूर करने में अहम भूमिका निभाई। और इसके साथ ही जनजातीय कार्य मंत्रालय के सभी दिशा-निर्देशों का अक्षरश: पालन किया गया और इस काम में सभी संबंधित विभागों ने मदद की।

एक अन्य अधिकारी ने बताया कि कि मान्यता मिलने के बाद से कृषि और पंचायती राज विभाग महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के कार्यों, फसल योजना और विविधीकरण के लिए निर्बाध रूप से ग्रामीणों के खातों में धन हस्तांतरित कर सकते हैं। इसी तरह अब जाति, आवासीय और आय प्रमाण पत्र व्यक्तिगत भूमि के आधार पर ग्रामीणों को आसानी से जारी किए जा सकते हैं।

एफआरए के कार्यान्वयन पर प्रमुख विशेषज्ञ वाई. गिरि राव ने कहा कि एफआरए 2006 सभी वनों, सर्वेक्षण न किए गए गांवों या वनभूमि पर बसावट को राजस्व गांवों में परिवर्तित करने के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करता है।

राजस्व आवास के रूप में वन गांवों की मान्यता बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि एफआरए के कार्यान्वयन के पिछले 16 वर्षों में गंजम के 38 सहित केवल 52 वन गांवों को मुख्य धारा में शामिल किया गया है।

राव के अनुसार 2011 की जनगणना के अनुसार ओडिशा में वाले विभिन्न जंगलों के अंदर 589 बस्तियां स्थित हैं और इनकी आबादी 1.05 लाख है। वन विभाग ने विभिन्न वानिकी कार्यों को करने के लिए 22 ग्रामीणों की स्थापना की थी।

फरवरी 2023 के अंत तक, राजस्व गांवों के रूप में मान्यता के लिए 11 जिलों से 150 आवेदन पत्र प्राप्त हुए थे। गंजम जिले के अंदर वर्तमान में 39 गैर-सर्वेक्षित गांव हैं, जिनमें से अब केवल एक गैर-सर्वेक्षित गांव जिले में मुख्य धारा में शामिल होने के लिए बचा है।