जॉर्जेन रैंडर्स
मैं दृढ़ता से प्रति महिला एक बच्चे की संख्या को सीमित करने के पक्ष में हूं, क्योंकि इससे भविष्य में लोगों के लिए एक बेहतर दुनिया का निर्माण होगा। अमीर बच्चों की संख्या को सीमित करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि गरीब बच्चों की तुलना में पर्यावरण पर उनका असर कहीं अधिक है। यदि समाज ऐसा करने का निर्णय लेता है तो प्रति महिला बच्चों की संख्या सीमित करने के नकारात्मक प्रभाव का समाधान किया जा सकेगा।
आगे भी दशकों तक प्रजनन दर में गिरावट जारी रहेगी, फिर भले ही इसे सीमित करने के लिए आज कुछ असाधारण न भी किया जाए, क्योंकि महिलाओं की स्वेच्छा से कम बच्चे होंगे। इसका संभावित परिणाम यह होगा कि दुनिया की आबादी 2050 से पहले लगभग 900 करोड़ हो जाएगी और फिर 2100 तक गिर जाएगी। यह बेहतर होगा कि जनसंख्या पहले बढ़े और फिर उसमें गिरावट आए, लेकिन ऐसी संभावना नहीं दिखती। परिणामस्वरूप, शताब्दी के मध्य तक गरीबी और परेशानियां बनी रहेंगी।
मैंने अत्यधिक जनसंख्या के कारण जताई गई तबाही की आशंकाओं वाले अपने पिछले अनुमान को बदल दिया है, क्योंकि दुनिया प्रजनन दर को नाटकीय रूप से कम करने में कामयाब रही है। 1970 के दशक में प्रति महिला 4.5 बच्चे से घटकर अब यह 2.5 तक पहुंच गई है। खासकर महिलाओं में अधिक शिक्षा, स्वास्थ्य और गर्भनिरोधक के इस्तेमाल का अधिकार इसमें काफी मददगार साबित हुआ है। इसने महिलाओं को नाटकीय रूप से और बेहतर और सशक्त बनाया। साथ ही उन्हें छोटे आकार के परिवार का चयन करने में सक्षम बनाने के लिए स्वतंत्र किया। हालांकि, ये परिवार उतने छोटे नहीं हैं, जितने की मैंने इच्छा जताई थी।
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जनसंख्या में 10 प्रतिशत की कमी से उत्सर्जन पर समान प्रभाव पड़ता है, क्योंकि यह औसत खपत को 10 प्रतिशत कम कर देती है। मैं इसलिए पहले इसकी सिफारिश करता हूं, क्योंकि इससे बाकी 90 प्रतिशत के लिए जीवन बेहतर बन जाएगा। यह स्पष्ट होना चाहिए कि समृद्ध आबादी को सीमित करना अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह प्रति व्यक्ति बहुत अधिक नुकसान पहुंचाती है।
भारत की ओर से दंडात्मक कार्रवाई भविष्य की पीढ़ियों को एक अति व्यस्त दुनिया में रहने से बचाएगा। चीन इसका सफल उदाहरण है, जहां एक बच्चे की नीति ने 1980 के बाद से प्रति व्यक्ति औसत आय को 16 दोगुना बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस सफलता की तुलना उसी अवधि में भारत के शानदार प्रदर्शन के साथ की जानी चाहिए।
(लेखक बीआई नार्वे बिजनेस स्कूल, ओस्लो में जलवायु नीति के एमेरिटस प्रोफेसर हैं। वह 1972 में आई पुस्तक द लिमिट्स टु ग्रोथ के सह-लेखक भी हैं, जिसमें निकट भविष्य में जनसंख्या बढ़ोतरी के चलते तबाही की भविष्यवाणी की गई थी)