येल विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री विलियम नॉर्डहॉस ने अपना संपूर्ण जीवन जलवायु परिवर्तन के असर को समझने और वैश्विक तापमान को रोकने के लिए कार्बन टैक्स की वकालत में समर्पित किया है।
यह मामूली संयोग नहीं है कि जिस दिन उनका शोध आर्थिक विज्ञान के नोबेल मेमोरियल पुरस्कार में साक्षा किया गया, उसी दिन संयुक्त राष्ट्र पैनल ने जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों पर अपनी नवीनतम रिपोर्ट जारी की। वास्तव में, यह शोध नॉर्डहॉस के अधिकांश कार्यों पर आधारित है और हमें चेतावनी देता है कि पर्यावरणीय आपदा से बचने के लिए तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे करने के लिए करीब 12 साल ही हैं।
यह चेतावनी और यह पुरस्कार ऐसे समय पर आया है जब देखा जा रहा है कि कुछ अमेरिकी इस ओर ध्यान ही नहीं दे पा रहे हैं। अमेरिका अब जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दे के लिए बने पेरिस समझौते का हस्ताक्षरकर्ता देश नहीं है। देश का एक व्यापक वर्ग अभी भी समस्या को मानने से इनकार करता है और कुछ राज्य और नीति निर्माता जलवायु परिवर्तन से संबंधित विज्ञान को अपने निर्णय में शामिल नहीं करते।
लेकिन नॉर्डहॉस का कार्य इस बात पर नहीं है कि कुछ लोग या फिर नीति-निर्माता जलवायु परिवर्तन पर विश्वास करते हैं या नहीं। यह मूलत: बाजार और आने वाले वर्षों में मानवता का सामना करने वाले सबसे गंभीर मुद्दे को संबोधित करने की क्षमता के बारे में है।
वह अर्थशास्त्र और प्रबंधन के क्षेत्र में कार्य करने वाले ऐसे व्यक्ति हैं जो जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिए समाधान खोजने के बारे में लगे हैं। उनके शोध यह आशा जगाते हैं कि मनुष्य अब भी वैश्विक आपदा को रोक सकता है।
जलवायु परिवर्तन का विज्ञान
नॉर्डहॉस के सबसे महत्वपूर्ण योगदानों में से एक यह था कि जलवायु परिवर्तन से संबंधित जटिल मुद्दे को भी उन्होंने बड़े ही सरल ढंग से प्रस्तुत किया है। उदाहरण के लिए “क्लाइमेट कैसिनो” में उन्होंने जलवायु परिवर्तन के बारे में बात करते हुए अनेक संबंधित विषयों पर लिखा है। विज्ञान से लेकर ऊर्जा और अर्थशास्त्र से लेकर राजनीति तक के विषय और उपाय उन्होंने चिन्हित किए हैं जो जलवायु परिवर्तन का विनाश रोकने के लिए जरूरी हैं। न्यूयार्क टाइम्स के अनुसार, “यह वैश्विक तापमान का मुख्य स्रोत है, जिसे एक शानदार अर्थशास्त्री ने अपनी नजरों से देखा है।”
यद्यपि उनका लेखन सुलभ था, लेकिन उन्होंने दिखाया कि वह अब भी अनुमानों की अनिश्चितता से ही जूझ रहे हैं। उन्होंने हमें यह दिखाया है कि कैसे मनुष्य ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के माध्यम से पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है, साथ ही उन्होंने इसकी जटिलता को बहुत ही ईमानदारी के साथ रखा है।
उनके शोध का आधार यह था कि पर्यावरण सबके लिए है यानि सार्वजनिक है, सभी द्वारा साझा किया गया है और अब तक किसी भी पर्याप्त या उचित तरीके से इसका भुगतान नहीं किया गया है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि हम सब इससे लाभान्वित होते हैं लेकिन हम इसके लिए कोई भुगतान नहीं करते। हम सभी को इसके क्षरण से नुकसान हो रहा है जिसका मूल्य बाजार में नहीं लगाया जा सकता।
अर्थनीति और जलवायु का मॉडल
नॉर्डहॉस ने 25 डॉलर प्रति टन कार्बन पर टैक्स लगाने की वकालत की या फिर ऐसी योजना लाने पर जोर दिया जिससे कंपनियों को प्रदूषण के लिए आर्थिक भुगतान करना पड़े। यह समस्या से निपटने के लिए रास्ता खोजने में सहायक सिद्ध हो सकता है।
नॉर्डहॉस ने इसे अपने परिपूर्ण मॉडलों के जरिए दिखाया कि इस तरह के कर और अन्य कारक अर्थव्यवस्था और जलवायु दोनों को कैसे प्रभावित करते हैं, यह दर्शाते हुए कि वे कैसे विकसित होते हैं- जिसे “इंटीग्रेटेड असेसमेंट” मॉडल के रूप में जाना जाता है।
डायनामिक इंटीग्रेटेड क्लाइमेट इकॉनोमी मॉडल इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण है, जो अर्थशास्त्र, पारिस्थितिकी और पृथ्वी विज्ञान से संबंधित जानकारी के उपयोग करने हेतु एक सतत ढांचा प्रदान करता है। यह मॉडल हमें यह जानकारी देता है कि कुछ नीति दीर्घकालिक आर्थिक और पर्यावरणीय, परिणामों को कैसे प्रभावित करती हैं।
इस तरह उन्होंने यह महसूस किया कि सरकारों द्वारा कुछ मार्गदर्शन के साथ बाजारों पर भरोसा करने वाली योजनाएं- जैसे कार्बन करों को स्थापित करना, समस्या से निपटने के लिए सबसे कारगर रूप से काम करेगा। और इस प्रकार वह बड़ी स्पष्टता के साथ दिखाने में कारगार हुए कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने का सबसे महंगा तरीका कार्बन कर के साथ जीवाश्म ईंधन की कीमत को बढ़ाना है। इसका परिणाम यह होगा कि उपभोक्ताओं और व्यवसायों के लिए ईंधन के कम इस्तेमाल करने में उपयुक्त प्रोत्साहन मिलेगा।
नॉर्डहॉस जलवायु परिवर्तन से होने वाले आर्थिक नुकसान का अनुमान लगाने में भी सक्षम थे। उन्होंने पाया कि जो लोग सबसे अधिक नुकसान में रहेंगे वे गरीब और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में रहने वाले लोग होंगे।
बाजार और उसका मार्गदर्शन
नॉर्डहॉस ने माना कि जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा और प्रभावी समाधान बाजार से ही आ सकता है जो इस धरती का सबसे शाक्तिशाली तंत्र है। वह समझते थे कि बाजार को आगे बढ़ाने की जरूरत है, साथ ही इस समय इसके लिए वे सरकारी नीतियों से सहायता की भी जरूरत समझते थे। नॉर्डहॉस ने पाया कि कार्बन मूल्य निर्धारण इसके समाधान में सबसे शक्तिशाली कारक है। 18वीं सदी के अर्थशास्त्री एडम स्मिथ ने भी इसमें बाजार का अदृश्य हाथ ही बताया था। उन्होंने बताया था कि पूंजीवादियों की जरूरत है और उन्हें कानून की दरकार है। राष्ट्रीय मामलों के संपादक युवल लेविन ने हमें 2010 में याद दिला दिया था कि बाजार को एक सही मार्गदर्शक की जरूरत है। अंतत: नॉर्डहॉस ने दिखाया है कि कैसे पूंजीवाद जलवायु परिवर्तन की चुनौती को बढ़ाने में सक्षम है। ठीक वैसे ही जैसे अन्य समस्याओं जैसे एकाधिकार, ओजोन क्षरण और धूम्रपान के खतरे को इसने बढ़ाया है।
दुनिया के प्रमुख वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले विनाश पर अपनी नई चेतावनी जारी की है। ऐसे में नॉर्डहॉस के गहरे विचार, विधिवत कार्य, हमें याद दिलाते हैं कि अब भी उम्मीद है। यही मानवीय सरलता और संसाधन बाजार को एक समाधान दे सकता है और यही हमारे वाणिज्य और बातचीत की संरचना से पूंजीवाद को एक बेहतर रूप दे सकता है।
(हॉफमैन मिशिगन विश्वविद्यालय के रोस स्कूल ऑफ बिजनेस एंड स्कूल ऑफ एनवायरमेंट एंड सस्टेनेबिलिटी में प्रोफेसर हैं। क्रॉमविक यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन एनर्जी इंस्टीट्यूट में वरिष्ठ अर्थशास्त्री हैं। यह लेख द कन्वरसेशन से हुए विशेष समझौते के तहत प्रकाशित)