भारतीय प्रधानमंत्री का अमेरिकी दौरा पूरा हुआ। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साझा बयान जारी हुए। दोनों ने एक-दूसरे की सराहना की। दोनों ने भारत-अमेरिका के संबंधों पर अटूट भरोसा जताया। आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने का संकल्प दोहराया। दोनों ने सामरिक साझेदारी पर बात की। अपने बयान में मोदी ने कहा कि दोनों ही देश एक ऐसे द्विपक्षीय ढांचे पर प्रतिबद्ध हैं जो हमारी रणनीतिक साझेदारी को एक नई ऊंचाई पर ले जाएगा।
पर मोदी अपनी इस यात्रा को जिस ऊंचाई पर ले जा सकते थे, उससे चूक गए। मोदी भूल गए कि जब पेरिस जलवायु समझौते से अचानक अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपना हाथ खींच लिया था और उन्होंने भारत और चीन को प्रदूषण फैलाने का जिम्मेदार ठहराया था। उसके बाद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात के बाद नरेंद्र मोदी ने ट्रंप का नाम लिए बिना कहा था - 'भारत पर्यावरण हितैषी है। इसके लिए काम करता रहा है और करता रहेगा।' मोदी ने कहा था कि मत सोचिए कि मैं किसी का पक्ष लूंगा, पर भविष्य की पीढ़ी का पक्ष जरूर लूंगा। हमारा एक वेद अर्थवेद पर्यावरण को समर्पित है, पर्यावरण से छेड़छाड़ अपराध है।
अर्थवेद से मिला पर्यावरण प्रेम अमेरिका पहुंच कर घुटने टेक गया। वह भूल गए कि मॉनसून पर निर्भर भारत के लिए पर्यावरण बड़ा मुद्दा है। पेरिस समझौते के पक्ष में खड़े होने का दावा करने वाले मोदी अमेरिका में इस मुद्दे की अगुवाई कर सकते थे पर उन्होंने इस मुद्दे को हाशिए पर रखा। वह पर्यावरण मुद्दे पर वैश्विक चिंता जता सकते थे पर अमेरिका के सामने नतमस्तक हो गए। उन्हें आतंकवाद से लड़ने का संकल्प तो याद रहा, जिसे वह बार-बार दोहराते रहे, लेकिन पर्यावरण का ध्यान न रखने के कारण भारत जैसे देश में जो आतंक पसर रहा है, उस आतंक पर प्रधानमंत्री मोदी ने कोई चर्चा नहीं की। उन्हें अपने देश के किसान याद नहीं आए, जो कुदरत के भरोसे अपना काम चला रहे हैं। जो कभी सूखे की मार झेलते हैं तो कभी खूब बारिश की। पर्यावरण का असंतुलन जिस देश के किसानों की जिंदगी असंतुलित कर रहा है, जीडीपी को प्रभावित कर रहा है उस देश का अगुवा होकर भी मोदी उस देश के अगुवा के सामने मौन साध गए जिसने पेरिस समझौते से हाथ खींचकर विश्व को मुंह चिढ़ाने का काम किया है। बल्कि वहां वह कहते दिखे कि भारत के सामाजिक आर्थिक बदलाव के लिए हमारे मुख्य कार्यक्रमों में हम अमेरिका को प्रमुख पार्टनर मानते हैं। मुझे विश्वास है कि मेरा न्यू इंडिया का विजन और राष्ट्रपति ट्रंप के मेक अमेरिका, ग्रेट अमेरिका का विजन हमारे सहयोग के नया आयाम पैदा करेगी। मेरा ये स्पष्ट मत है कि एक मजबूत और सफल अमेरिका में ही भारत का हित है। इसी तरह भारत का विकास और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती भारत की भूमिका अमेरिका के हित में भी है। व्यापार, वाणिज्य और निवेश संबंधों का भरपूर विकास हमारे प्रयासों की साझी प्राथमिकता होगी।
इन दोनों नेताओं ने खुद को सोशल मीडिया का वैश्विक नेता बताया। पर इसी सोशल मीडिया पर पर्यावरण को लेकर जो वैश्विक चिंता लगातार जताई जा रही है, उससे अनजान बने रहे। दोनों की बातचीत में पर्यावरण का मुद्दा अपनी जगह नहीं बना पाया।
मोदी के साथ पहली द्विपक्षीय बातचीत के बाद ट्रंप ने वाइट हाउस के रोज गार्डन में मीडिया, अमेरिका और भारत के लोगों के सामने गर्व के साथ यह घोषणा की कि वे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोशल मीडिया के वैश्विक नेता हैं। उन्होंने अपनी बात साफ करते हुए कहा कि हम भरोसा करने वाले लोग हैं। निर्वाचित प्रतिनिधियों से हम देश के नागरिकों को सीधे बातचीत करने का मौका देते हैं। मुझे लगता है कि दोनों देशों में सोशल मीडिया ने बहुत बढ़िया काम किया है। यही बात वर्जीनिया में सामुदायिक समारोह के दौरान भारतीय मूल के लोगों को संबोधित करते हुए मोदी ने भी कही। उन्होंने कहा, ‘सोशल मीडिया बेहद शक्तिशाली हो गया है। मैं भी इससे जुड़ा हूं। लेकिन विदेश मंत्रालय और सुषमा स्वराज ने यह मिसाल कायम की है कि कैसे किसी विभाग को इसके जरिए मजबूत किया जा सकता है।’
ध्यान रहे कि ट्विटर पर ट्रंप के कुल फॉलो करने वाले 3.28 करोड़ हैं,जबकि मोदी के 3.1 करोड़। इसी तरह फेसबुक पर मोदी 4.18 करोड़ फॉलो करने वालों के साथ ट्रंप से आगे निकल चुके हैं, जहां ट्रंप के कुल फॉलो करनेवाले 2.36 करोड़ हैं।
यहां पर यह कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी की दो दिनी अमेरिकी यात्रा तो पूरी हुई, पर इस यात्रा का मकसद जिस ऊंचाई को छू सकता था, उसमें मोदी पूरी तहर से चूक गए।