जलवायु

आंकड़ों का संकट

आर्थिक हित व एजेंसी की प्राथमिकताएं यह तय करती हैं कि देश उपग्रह के आंकड़ों का इस्तेमाल किस तरह करें।

वैज्ञानिकों और नीति-निर्माताओं को जलवायु परिवर्तन पर अपनी समझ बढ़ाने और विचार प्रस्तुत करने के लिए उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों की जरूरत होती है। इन उपग्रहों में से आधे से अधिक के आंकड़ों के निर्बाध इस्तेमाल पर पाबंदी है, जबकि इसे पूरी तरह से उपलब्ध करवाया जाना चाहिए।

जब सरकारों द्वारा आंकड़ों के उपयोग पर इस तरह पाबंदी लगाई जाती है कि कौन उसका इस्तेमाल करे या फिर जनता द्वारा उसका किस तरह से इस्तेमाल किया जाना चाहिए या पुनिर्वितरित किया जाए, तो इस तरह विज्ञान का विकास अवरुद्ध होता है। इसी कारण एक अमेरिकी जलवायु वित्त पोषण संस्था खतरे में है। अब पहले से भी अधिक आवश्यकता है कि उपलब्ध आंकड़ों का शोधार्थियों और अन्य लोगों द्वारा पूरी तरीके से इस्तेमाल को सुनिश्चित किया जाए।

आखिर ऐसा क्यों है कि कुछ राष्ट्र उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों पर पाबंदी लगाते हैं, जबकि अन्य इसकी खूली छूट देते हैं? मेरी किताब “ओपन स्पेस” में ऐतिहासिक मामलों के अध्ययन की एक पूरी श्रृखंला व राष्ट्रीय कार्यप्रणालियों के वृहत सर्वेक्षण द्वारा यह साबित करने का प्रयास किया गया है कि किस तरह आर्थिक हित व एजेंसी की प्राथमिकताएं यह तय करती हैं कि राष्ट्र उपलब्ध आंकड़ों का इस्तेमाल किस तरह करे।

आंकड़ों का मूल्य

उपग्रहों द्वारा महासागर, उत्तर ध्रुवीय महासागर व अन्य फैली हुई आबादी वाले क्षेत्रों से व्यापक रूप में आंकड़े एकत्र किए जाते हैं जो मनुष्य के लिए जुटा पाना कठिन है। उपग्रह बिना बाधा के आंकड़े एकत्र कर सकते हैं, जो जलवायु परिवर्तन पर हो रहे शोध में मदद करते हैं। अमेरिकी-जर्मन ग्रेस सेटेलाइट मिशन से प्राप्त आकड़ों का इस्तेमाल कर वैज्ञानिक पता लगाते हैं कि उत्तरध्रुवीय व दक्षिण ध्रुव पर मौजूद भूमि बर्फ का द्रव्यमान कितना है।

ग्रेस द्वारा पिछले 15 वर्षों से लगातार आकड़ों के संग्रहण द्वारा यह निष्कर्ष निकाल पाना संभव हो सका कि वर्ष 2002 से अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड में विद्यमान भूमि बर्फ की परतों के द्रव्यमान में भारी गिरावट आई है। यही नहीं साल 2009 से इसमें ज्यादा तेजी से गिरावट दर्ज की गई है।

उपग्रहों के द्वारा बहुमूल्य आंकड़े एकत्र किए जाते हैं, ये महंगे भी होते हैं। प्रति मिशन 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर से लेकर 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक का खर्च आता है। आमतौर पर इन्हें 3 वर्ष से लेकर 5 वर्ष तक की अवधि के लिए तैयार किया जाता है, पर ये प्रायः अनुमानित जीवन से भी अधिक काम करते हैं।

अधिकतर राष्ट्र अपने खर्चों के भुगतान के लिए एकत्र किए गए आंकड़ों को बेचते हैं या फिर इसे व्यवसायीकृत करते हैं। यूएस नेशनल ओसियनिक एंड ऑटोमोसफेरिक एडमिनिस्ट्रेशन और द यूरोपियन स्पेस एजेंसी जैसी संस्थाएं उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों को आसानी से उपलब्ध करवाती हैं, जबकि इन्होंने अपने मिशन के शुरुआती दौर में आंकड़े बेचे थे। नासा द्वारा 1970 के आरंभ में विकसित किया गया यूएस लैंडसैट प्रोग्राम वर्ष 1980 में एक निजी संस्था में तब्दील कर दिया गया था, जो बाद में सरकारी नियंत्रण में पुनः लाया गया।

कुछ अन्य मामलों में संस्थाएं कुछ आंकड़ों को सभी के लिए सुलभ करवाने के लिए प्राथमिकताएं तय करती हैं। जैसे वर्ष 2016 में 35 से अधिक राष्ट्र पृथ्वी परीक्षण उपग्रह कार्यक्रम के विकास या कार्यान्वयन में भागीदारी कर रहे हैं। इजिप्ट और इंडोनेशिया जैसे देशों में स्पेस कार्यक्रम आरंभिक दौर में है। इन देशों ने साधारण उपग्रहों के विकास पर ध्यान दिया है, जिससे उनके अभियंताओं को व्यावहारिक अनुभव प्राप्त हो सके।

जैसा कि इन कार्यक्रमों का उद्देश्य क्षमता विकसित करना और नई तकनीक का प्रदर्शन करना अधिक होता है न कि आंकड़ों का वितरण या उपयोग। आंकड़े एकत्र करने की व्यवस्थाओं को सार्थक रूप में वित्त पोषण नहीं मिल पाता। ये संस्थाएं डेटा पोर्टल व अन्य व्यवस्थाओं के विकास का खर्च वहन नहीं कर सकती, जिससे आंकड़े पूर्णरूपेण सुगम रूप से उपयोग के लिए उपलब्ध करवाए जा सकें। यही नहीं वे भूलवश यह भी सोचती हैं कि उपग्रहों से प्राप्त इन परीक्षण संबंधी आंकड़ों की मांग कम है।

यदि वैज्ञानिक चाहते हैं कि ये राष्ट्र अपने उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों को ज्यादा से ज्यादा सुलभ उपलब्ध करवाने के लिए प्रोत्साहित हो, तो उन्हें उपरोक्त दोनों मसलों पर काम करना होगा।

आंकड़ों की सुलभता को प्रोत्साहन

देखा जाए तो एक उपयोगकर्ता को आंकड़े उपलब्ध करवाने से अन्य लोगों के लिए उपलब्ध आंकड़ों में कमी नहीं हो जाती, जबकि व्यापक तौर पर आंकड़े वितरित करने से समाज के विकास में योगदान बढ़ता है। जितना ही उपलब्ध आंकड़ों का उपयोग होगा उतना ही हम नए शोध और उत्पादों से लाभान्वित होंगे।

मैंने अपने शोध में पाया कि आंकड़ों को सहज रूप से उपलब्ध करवाने से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि अधिकतम संख्या में लोगों तक इसकी सहज पहुंच होगी और उपयोग में लाया जा सकेगा। यूएस जियोलोजिकल सर्वे ने वर्ष 2001 में 25,000 लैंडसैट चित्रों की बिक्री की, जो कि उस समय एक रिकॉर्ड था।

उसके बाद वर्ष 2008 में लैंडसैट आंकड़ों को पूरी तरह से सहज रूप से उपलब्ध करवा दिया गया। इस संस्था ने उसके बाद वाले वर्ष में एक मिलियन से ज्यादा लैंडसैट चित्र वितरित किए। जिन राष्ट्रों को ऐसा लगता है कि उनके आंकड़ों की मांग कम है या फिर उनके पास आंकड़े वितरित करने की व्यवस्था बनाने के लिए निवेश के संसाधनों की कमी है, इस ओर प्रोत्साहित किया जा सकता है। शोधकर्ता और अन्य प्रयोगकर्ता समूहों द्वारा इन आंकड़ों के संभावित इस्तेमाल के प्रति जागरुकता अभियान चलाया जाना चाहिए।

इसके साथ ही उनके द्वारा सरकारों को इन तक पहुंच और उपयोग के प्रति स्पष्ट रुख से परिचित करवाना चाहिए। अन्तरराज्यीय संस्थाएं जैसे ग्रुप ऑन अर्थ ऑब्जरवेशन इन प्रयासों में इस तरह मदद दे सकती हैं, जैसे वे शोध और उपयोगकर्ता समुदायों को सम्बन्धित सरकार के नीति-निर्माताओं से आपस में मिलवाएं।

अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं आंकड़ों को साझा करने की भावना को इस तरह प्रोत्साहित कर सकती हैं कि वे वैश्विक स्तर पर राष्ट्रों के आंकड़े एक-दूसरे से साझा करें। वे तकनीकी व कर्मचारियों और माल व्यवस्था की मदद से आंकड़ों के पोर्टल स्थापित करने में या पहले से स्थापित आंकड़ों के पोर्टल में बाहरी आंकड़ों को सुरक्षित रखने जैसे कार्य करके छोटे मिशन पर होने वाले संसाधन निवेश को घटाने में मदद कर सकती हैं।

भविष्य के लिए वादा

उपग्रह तकनीकी तीव्र गति से विकसित हो रही है। मुझे लगता है कि संस्थाओं को जितना संभव हो सके आंकड़ों को वृहत तौर पर सबके लिए उपलब्ध करवाते हुए विकास का लाभ उठाने के तरीके ईजाद करने होंगे। अब उपग्रह पहले से अधिक आंकड़े एकत्र कर रहे हैं। लैंडसैट 8 ने अपने आरंभिक दो वर्षों में ही इतने आंकड़े एकत्र कर लिए जितने लैंडसैट 4 और 5 ने अपने पूरे 32 वर्षों के जीवनकाल में किए। इस समय लैंडसैट अपने लेखागार में प्रतिदिन एक टेराबाइट की दर से बढ़ोत्तरी दर्ज कर रहा है।

इस तरह एकत्र हो रहे असंख्य आंकड़ों से आशाजनक संभावनाएं पैदा हो रही हैं लेकिन इन आंकड़ों तक पहुंच के लिए नई संस्थाओं की आवश्यकता होगी। इस समस्या का समाधान संस्थाएं क्लाउड टेक्नॉलोजी अपनाकर कर रही हैं पर फिर भी बहुत सी संस्थाएं अब भी लागत व्यय से जूझ रही हैं। क्या संस्थाओं को अपने आंकड़े सुरक्षित रखने के लिए व्यावसायिक क्लाउड सेवाएं अपनाने पर व्यय करना चाहिए या अपनी स्वयं की व्यवस्था बनानी चाहिए?

इस तरह आंकड़ों के विश्लेषण कार्य जारी रखने के लिए इन क्लाउड संसाधनों के लिए कौन खर्च वहन करेगा-संस्थाए या उपयोगकर्ता? उपग्रह से प्राप्त आंकड़े विस्तृत क्षेत्र जैसे जलवायु परिवर्तन, मौसम, प्राकृतिक आपदाएं, कृषि विकास इत्यादि में बहुमूल्य योगदान प्रदान कर सकते हैं, लेकिन तभी जब उपयोगकर्ता तक इसकी सुलभ उपलब्धता हो।

(लेखिका जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी में सहायक प्रोफेसर हैं। लेख द कन्वरसेशन से विशेष समझौते के तहत प्रकाशित)