जलवायु

हर दस साल में 0.2 डिग्री सेल्सियस की रिकॉर्ड दर से गर्म हो रही है दुनिया, वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी

पेरिस समझौते के तहत तापमान लक्ष्य को बनाए रखने के लिए 2030 तक सीओ2 उत्सर्जन को कम से कम 40 प्रतिशत कम करने और सदी के मध्य तक इस पर पूरी तरह से लगाम लगाने की जरूरत पड़ेगी

Dayanidhi

ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के बढ़ते स्तर ने तापमान को बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। अब दुनिया के 50 शीर्ष वैज्ञानिकों ने बढ़ते तापमान से जलवायु विज्ञान पर पड़ने वाले असर को लेकर चेतावनी दी है।

अध्ययन के मुताबिक 2013 से 2022 तक मानवजनित तापमान प्रति दशक 0.2 डिग्री सेल्सियस से अधिक की दर से बढ़ रहा है।

इसी अवधि में कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) का औसत वार्षिक उत्सर्जन 54 अरब टन या अन्य गैसों में के मुकाबले अपने सबसे उच्च स्तर पर पहुंच गया है, जो प्रति सेकंड लगभग 1,700 टन के बराबर है।

इस साल के अंत में दुबई में होने वाले महत्वपूर्ण कॉप 28 जलवायु शिखर सम्मेलन में दुनिया भर के नेताओं का सामना नए आंकड़ों से होगा, जहां संयुक्त राष्ट्र वार्ता में "ग्लोबल स्टॉकटेक" 2015 पेरिस समझौते के तापमान लक्ष्यों की दिशा में प्रगति का आकलन करेगा।

पेरिस संधि के अधिक महत्वाकांक्षी 1.5 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य के तहत ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने और यह जलवायु में होने वाले बदलाव से दुनिया को सुरक्षित रखने के लिए एक सुरक्षा चक्र के रूप में पहचाना जाता है, हालांकि अभी भी यह गंभीर प्रभावों से घिरा हुआ है।

लीड्स विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और प्रमुख अध्ययनकर्ता पियर्स फोस्टर ने कहा भले ही अभी तक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक नहीं पहुंचा है, कार्बन बजट के तहत ग्रीनहाउस गैसों की सीमा केवल कुछ वर्षों में समाप्त हो जाएगी।

खतरनाक  नतीजे

उन्होंने बताया कि, 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को नीचे रखने के लिए, कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और तापमान बढ़ाने वाले अन्य चीजों, जिसमें ज्यादातर उत्सर्जन जीवाश्म ईंधन को जलाने से होता है, जिसे 250 अरब टन (जीटी) से अधिक नहीं होना चाहिए।

आईपीसीसी ने गणना की है कि पेरिस समझौते के तहत तापमान लक्ष्य को बनाए रखने के लिए 2030 तक सीओ2 उत्सर्जन को कम से कम 40 प्रतिशत कम करने और सदी के मध्य तक इस पर पूरी तरह से लगाम लगाने की जरूरत पड़ेगी।

नए आंकड़ों से पता चलता है कि विडंबना यह है कि पिछले दशक की बड़ी जलवायु सफलता की कहानियों में से एक ने अनजाने में ग्लोबल वार्मिंग की गति को तेज कर दिया है।

कोयले के उपयोग में धीरे-धीरे गिरावट से  बिजली उत्पादन के लिए तेल या गैस की तुलना में अधिक कार्बन की मात्रा ने कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि को धीमा कर दिया है। लेकिन इसने वायु प्रदूषण को भी कम किया है जिसके कारण सूर्य की किरणें पूरी शक्ति के साथ पृथ्वी पर पहुंचती हैं।

सभी स्रोतों से कण प्रदूषण के बढ़ने से तापमान लगभग आधा डिग्री सेल्सियस तक कम हो जाता है। कण प्रदूषण के घटने से हवा साफ हो जाएगी और कम समय में सूर्य की अधिक गर्मी पृथ्वी की सतह तक पहुंच जाएगी।

अर्थ सिस्टम साइंस डेटा नामक पत्रिका  में प्रकाशित, नया अध्ययन सामयिक आकलन की एक श्रृंखला में पहला है जो 1988 के बाद से हर छह साल में औसतन जारी आईपीसीसी रिपोर्ट के बीच कमी को पूरा करने में मदद करेगा।

जानलेवा गर्मी

सह-अध्ययनकर्ता और वैज्ञानिक मैसा रोजस कोराडी ने कहा, दुनिया भर में बदलाव के प्रमुख संकेतकों का एक वार्षिक अपडेट अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और देशों को जलवायु परिवर्तन के संकट को हल करने के एजेंडे के शीर्ष पर रखने में मदद करने के लिए महत्वपूर्ण है।

2021 आईपीसीसी रिपोर्ट के सह-अध्यक्ष, वैलेरी मैसन-डेलमोटे ने कहा कि नए आंकड़े कॉप 28 शिखर सम्मेलन से पहले एक चेतावनी है, भले ही इस बात के सबूत ही क्यों न हों कि,  ग्रीनहाउस गैसों की वृद्धि धीमी हो गई है।

उन्होंने कहा, जलवायु कार्रवाई की गति और पैमाना जलवायु संबंधी खतरों को बढ़ने से रोकने के लिए पर्याप्त नहीं है। शोधकर्ताओं ने यह भी बताया कि 2000 के बाद से महासागरों को छोड़कर, जमीनी सतहों के तापमान में भारी वृद्धि हुई है।

सहस्राब्दी के पहले दशक के तापमान 1.22 डिग्री सेल्सियस की तुलना में पिछले दस वर्षों में जमीन का औसत वार्षिक अधिकतम तापमान आधे डिग्री सेल्सियस पूर्व-औद्योगिक अवधि से 1.72 डिग्री सेल्सियस ऊपर यानी अधिक गर्म हुआ है।

हाल के शोध से पता चला है कि लंबी अवधि तक चलने वाली और अधिक घातक लू या हीटवेव आने वाले दशकों में दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के बड़े क्षेत्रों के साथ-साथ अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में भूमध्य रेखा तक फैले क्षेत्रों में जीने और मरने का खतरा पैदा कर देगी।