जुलाई 2019 में एक अंतरराष्ट्रीय सहायता संघ (कंसोर्टियम) द्वारा पहली बार दुनिया की "फिशरीज इंडेक्स इंश्योरेंस" योजना शुरू की गई। यह योजना दुनिया भर के अरबों लोगों, विशेष रुप से कैरेबियन मछली पकड़ने वाले समुदायों को चरम मौसम की घटनाओं से बचाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। उल्लेखनीय है कि जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसम की घटनाएं तीव्र और लगातार बढ़ रहीं हैं।
इंगलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर एंड सेंटर फॉर फिशरीज, एनवायरनमेंट एंड एक्वाकल्चर साइंस (सेफस) के वैज्ञानिकों की टीम ने नेचर क्लाइमेट चेंज नामक पत्रिका में एक पेपर प्रकाशित किया है। जिसमें कृषि से लेकर मत्स्य पालन तक के जलवायु जोखिम बीमा की चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है।
एक्सेटर विश्वविद्यालय के प्रमुख अध्ययनकर्ता, निगेल सेन्सबरी ने कहा: जलवायु जोखिम बीमा, मछली पालन में शामिल लोगों और व्यवसायों को चरम मौसम की घटनाओं से तेजी से उबारने में मदद कर सकता है। लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि हाशिए पर रहने वाले समूह, विशेष रूप से अपंजीकृत मछुआरे और मछली पालन में शामिल महिलाओं को भी बीमा लाभ अथवा भुगतान किया जाना चाहिए।
नई बीमा प्रणाली मछुआरों को चरम मौसम के दौरान मछली पकड़ने के निर्णय को स्थगित करने जैसे निर्णय लेने में सक्षम बना सकती है।
यह मछुआरों को मछली पकड़ने की नौकाओं, उपकरण, औजारों को बदलने और मरम्मत करने में भी मदद कर सकता है जो तूफानों द्वारा नष्ट या क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। सेन्सबरी ने जोड़ते हुए कहा कि, चरम मौसम मछुआरों के दैनिक जीवन के लिए सीधा खतरा बन जाता है, इसलिए जलवायु जोखिम बीमा के डिजाइन को सही से लागू करने की आवश्यकता है।
बीमा योजनाओं में समुद्र के किनारों के पारिस्थितिकी प्रणालियों को बचाने जैसे मैंग्रोव की सुरक्षा, पूर्व तूफान की तैयारी की योजना और सुरक्षित मछली पकड़ने वाली नौकाओं और उपकरणों में निवेश करना आदि भी शामिल होना चाहिए।
कैरेबियन महासागर और एक्वाकल्चर सस्टेनेबिलिटी फैसिलिटी (सीओएएसटी) मछली पकड़ने के उद्योग में शामिल लोगों और संगठनों को एक पूर्व-निर्धारित सूची के आधार पर बीमा का भुगतान करती है। जिसमें यदि चरम मौसम की घटना होती है - लहर की ऊंचाई, वर्षा, हवा की गति और तूफान बढ़ने आदि शामिल हैं।
सीओएएसटी को सेंट लूसिया और ग्रेनेडा में लॉन्च किया गया है। यह अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा वित्त पोषित है और कैरेबियन आपदा जोखिम बीमा सुविधा (सीसीआरआईएफ एसपीसी) और विश्व बैंक पर निर्भर है।
इन सबके बाद भी, शोधकर्ताओं का कहना है कि वैश्विक मछली पालन को मदद करने वाली बीमा योजनाओं को भविष्य में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।