जैसा पहले सोचा गया था दुनिया में औसत तापमान उससे भी तेजी से बढ़ रहा है। बढ़ता हुआ तापमान इस सदी के अंत तक दुनिया के 200 देशों की ओर से तय किए गए तापमान के लक्ष्य से तीन गुना अधिक पहुंच सकता है। यह अनुमान विश्व मौसम संगठन (डब्ल्यूएमओ) का है। डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट के मुताबिक इस सदी के अंत तक तापमान 3 से 5 डिग्री सेल्सियस अधिक बढ़ सकता है। 2015 में पेरिस समझौते के तहत तापमान वृद्धि को सदी के अंत तक 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना है। वहीं, स्पेन की राजधानी मद्रिद में कॉप- 25 के दौरान उत्सर्जन कटौती न करने के लिए अमीर देशों पर प्रतिबद्धता न निभाने के आरोप लगाए गए हैं।
मंगलवार को विश्व मौसम संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने पेरिस समझौते की जमीनी सफलता पर सवाल भी उठाया है। डब्ल्यूएमओ ने कहा कि जब यह समझौता हुआ था तब से अब तक ज्यादा ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन न सिर्फ बढ़ा है बल्कि दुनिया पहले से ज्यादा गर्म हो गई है।
डब्ल्यूएमओ के महासचिव पेट्टरी तालस ने कहा कि यह लगभग तय हो गया है कि यह दशक (2010 से 2019) अब तक के सबसे ज्यादा गर्म रहे दशकों में सबसे ऊपर का स्थान अर्जित कर लेगा। यानी 2010 से 2019 तक का दशक सबसे ज्यादा गर्म रहने वाला है।
डब्ल्यूएमओ के जरिए मुख्य ग्रीन हाउस गैसों का जो रिकॉर्ड प्रदर्शित किया गया है कि उसके मुताबिक सभी प्रमुख ग्रीनहाउस गैसें रिकॉर्ड स्तर पर पहुंची हैं और इनके कारण गर्मी में इजाफा भी हुआ है। स्पेन की राजधानी मद्रिद में 25वें कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज (कॉप 25) में एक अधिकारी ने रिपोर्ट से इतर यह बात कही। उन्होंने बताया कि यदि उत्सर्जन में कटौती नहीं होती है तो 3 से पांच डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ जाएगा।
डब्ल्यूएमओ महासचिव पेट्टरी तालस ने कहा कि 2015 से 2019 की अवधि यानी यह पांच वर्ष सबसे गर्म पांच वर्ष साबित होंगे। 2016 अभी तक का सबसे गर्म वर्ष रह चुका है। नासा के मुताबिक मौजूदा दशक (2011-2019) में बीते 2000 से 2009 के दशक से 0.265 डिग्री सेंटीग्रेट अधिक तापमान वृद्धि पहले ही हो चुकी है। जबकि 2000 से 2009 की अवधि में बीते दशक के मुकाबले 0.2 सेंटीग्रेट तापमान बढ़ा था।
पेरिस समझौते के बाद से ग्रीन हाउस गैस घटने के बजाए कार्बन डाई ऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा है। कार्बन डॉई ऑक्साइड का उत्सर्जन 400 पार्ट्स प्रति मिलियन (पीपीएम) की सीमा को पार कर 407.8 पीपीएम पहुंच गया। यह सीओटू के अब तक का सार्वार्धिक उत्सर्जन दर्ज स्तर है। मीथेन भी 1869 पार्ट्स प्रति बिलियन (पीपीबी) और नाइट्रस ऑक्साइड 331.1 पीपीबी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा।
एक्शन एड में जलवायु परिवर्तन के वैश्विक प्रमुख हरजीत सिंह ने आरोप लगाया कि यह अमीर देशों की उदासीनता का नतीजा है। पेरिस समझौते के तहत दिया जाने वाला उत्सर्जन अवकाश दुनिया को एक गंभीर खतरे की तरफ ढ़केल रहा है। अमीर देशों ने क्योटो प्रोटोकॉल की तरह कुछ खास नहीं किया और न ही पेरिस समझौते के बाद ही कोई खास कदम उठाए। पर्यावरण मंत्रालय के सचिव सीके मिश्रा ने कहा कि यह अमीर देशों की विफलता है कि वे 2020 से पहले उत्सर्जन कटौती की प्रतिबद्धता पर कोई कठोर कदम नहीं उठा पाए जिसने दुनिया को इस मुहाने पर नहीं ला पाए।