जलवायु

भीषण गर्मी में काम करने से भ्रूण पर पड़ता दबाव, बढ़ते तापमान से बिगड़ेंगे हालात

रिसर्च में सामने आया है कि हीट स्ट्रेस में प्रत्येक एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ भ्रूण में तनाव का जोखिम 17 फीसदी बढ़ गया था

Lalit Maurya

एक नए अध्ययन से पता चला है कि भीषण गर्मी में काम करने वाली महिलाओं के अजन्में शिशु को इससे परेशानी होती है। इतना ही नहीं, गर्भवती महिलाओं के प्रभावित होने से पहले ही उनके भ्रूण में इसके तनाव के लक्षण सामने आ सकते हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि हीट स्ट्रेस में प्रत्येक एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ भ्रूण में तनाव का जोखिम 17 फीसदी बढ़ गया था। इसी तरह मां के शारीरिक तापमान और ह्रदय गति में वृद्धि से गर्भस्थ शिशु के तनाव में 12 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी। गौरतलब है कि इसकी जानकारी भ्रूण की बढ़ी हुई हृदय गति और प्लेसेंटा में रक्त प्रवाह में आई कमी में सामने आई है।

वहीं यदि बढ़ते तापमान की बात करें तो वैश्विक स्तर पर औसत तापमान पहले ही एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि को पार कर चुका है। ऐसे में यदि हम तापमान में होती वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा में रखने में सफल भी हो जाए तो भी बढ़ती गर्मी और उसके तनाव के दुष्परिणाम लाखों लोगों को झेलने पड़ेंगें।

इस बात के पहले ही पुख्ता सबूत हैं कि गर्भावस्था में गर्मी का तनाव समय से पहले जन्म, जन्म के समय कम वजन, स्टिलबर्थ के अलावा अजन्मों को कई अन्य तरह से भी प्रभावित कर सकता है। हालांकि इस तरह के अध्ययन कुछ साधन संपन्न देशों तक ही सीमित हैं।

लेकिन यह पहला मौका है जब उष्णकटिबंधीय देश में महिला श्रमिकों और उनके भ्रूण पर पड़ते गर्मी के तनाव को समझें का प्रयास किया गया है। गौरतलब है कि उष्णकटिबंधीय देशों में पहले ही बढ़ती गर्मी गंभीर चिंता का विषय है। उप-सहारा अफ्रीका में तो खेतों में काम करने वाले लोगों में 50 फीसदी हिस्सा महिलाओं का है, जो अक्सर गर्मी के बढ़ते तनाव के बावजूद गर्भावस्था के दौरान भी खुले में काम करने को मजबूर हैं।

हालांकि यह अध्ययन गाम्बिया में खेतों में काम करने वाली 92 गर्भवती महिला किसानों पर किया गया था। लेकिन देखा जाए तो इसके नतीजे उन सभी महिलाओं पर भी लागू होते हैं, जो गर्भावस्था के दौरान कड़ी दोपहरी और गर्मी में खेतों में काम करने को मजबूर हैं।

क्या कुछ निकलकर आया अध्ययन में सामने

अध्ययन लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन और उसकी गाम्बिया स्थित मेडिकल रिसर्च काउंसिल यूनिट के शोधकर्ताओं की अगुवाई में किए गए इस अध्ययन के नतीजे जर्नल द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित हुए हैं। रिसर्च के नतीजों से पता चला है कि भीषण गर्मी में शारीरिक श्रम करने से शरीर के तापमान में हुई मामूली वृद्धि भी, मां और भ्रूण दोनों में शारीरिक तनाव का कारण बन सकती है।

यह अध्ययन सात महीनों तक चला था, जिस दौरान खेतों में जाने के दौरान 34 फीसदी मामलों में भ्रूण पर गर्मी का तनाव दर्ज किया गया था। इस पूरी अवधि के दौरान हवा का औसत तापमान 33.5 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था। अध्ययन में काम के घंटों के दौरान वैज्ञानिकों ने वातावरण में मौजूद नमी, महिलाओं के तापमान के साथ गर्भवती मांओं और उनके भ्रूणों की हृदय गति को भी मापा था।

शोधकर्ताओं ने पाया कि जब महिला के शरीर का तापमान और हृदय गति हीट स्ट्रेन इंडेक्स में एक श्रेणी बढ़ जाती है, तो भ्रूण पर तनाव का जोखिम 20 फीसदी बढ़ जाता है। अल्ट्रासाउंड स्कैन में भ्रूण पर बढ़ते तनाव को ह्रदय गति के 160 बीट प्रति मिनट से ज्यादा होने और प्लेसेंटा में कम रक्त के प्रवाह द्वारा इंगित किया गया है।

अध्ययन में गर्मी  के कारण मांओं पर पड़ने वाले प्रभावों को भी दर्ज किया गया था। इनमें मतली, उल्टी, सिरदर्द, चक्कर आना, कमजोरी, मांसपेशियों में दर्द, थकान और मुंह सूखना जैसे लक्षण आम थे। वहीं आधी से ज्यादा महिलाओं ने बताया कि उन्होंने खेत में काम करने के दौरान इनमें से कम से कम एक लक्षण का अनुभव किया था।  

इस बारे में लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन और अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर एना बोनेल का कहना है कि “बदलती जलवायु ने दुनिया भर में तापमान में वृद्धि की है। वहीं उप-सहारा अफ्रीका जलवायु के पड़ते इन प्रभावों के लिए विशेष रूप से कमजोर है।“

उनके अनुसार गाम्बिया में अपनी जीविका के लिए गर्भवती महिला किसान शरीर के लिए सुरक्षित तापमान की तय सीमा से बाहर जाकर भीषण गर्मी में काम करने को मजबूर हैं। जो उनके और अजन्मे बच्चे के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।

अफ्रीका ही नहीं भारत जैसे देशों में भी बढ़ रहा है खतरा

वहीं इस अध्ययन से जुड़ी अन्य शोधकर्ता जैनबा बैजी हैं कि गर्भावस्था में गर्मी का तनाव समय से पहले जन्म, जन्म के समय कम वजन, स्टिलबर्थ और अजन्मों को कई अन्य तरह से प्रभावित कर सकता है। इसके बावजूद इसके लिए जिम्मेवार शारीरिक तंत्र में बहुत कम शोध हुआ है। ऐसे में उनका कहना है कि तत्काल इन तंत्रों को समझने की आवश्यकता है, जिससे इन परिस्थितियों में मांओं और शिशुओं की सहायता के बेहतर तरीके खोज जा सकें।

यदि भारत की बात करें तो देश में कृषि पहले ही बढ़ती गर्मी का तनाव झेल रही है। हाल ही में इसपर प्रकाशित एक रिपोर्ट से पता चला है कि बढ़ती गर्मी के कारण अगले 23 वर्षों में देश का 71 फीसदी कृषि क्षेत्र खतरे की जद में होगा। देखा जाए तो बढ़ती गर्मी का कहर किसानों को दोहरी चोट पहुंचा रहा है।

यह उनकी उपज के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी खतरा पैदा कर रहा है। वहीं भारत में बड़ी संख्या में महिला किसान और श्रमिक अपनी जीविका के लिए कड़ी गर्मी में भी खेतों में काम करने को मजबूर हैं। देखा जाए तो शोध यह समझने की दिशा में पहला कदम है कि गर्मी से गर्भवती मांओं को तनाव होने से भ्रूण क्यों पीड़ित होते हैं।

इसके संभावित कारणों में पसीना आना शामिल है, जिसकी वजह से शरीर में पानी की कमी हो जाती है। ऐसे में शरीर को ठंडा रखने के मांओं के शरीर का सुरक्षा तंत्र प्लेसेंटा से रक्त और ऑक्सीजन को वापस मां की त्वचा में मोड़ देता है।

ऐसे में इस अध्ययन के नतीजे गर्भवती महिला कृषि श्रमिकों को अत्यधिक गर्मी से बचाने के लिए जरूरी उपायों को अपनाने पर बल देते हैं। महिलाओं को इस गर्मी से बचाने के लिए पेड़ों के नीचे छाया में आराम करना, समय पर पानी पीना जैसे उपाय फायदेमंद हो सकते हैं। इनमें यह सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण हो सकता है कि इस तरह के लक्षण दिखाई देने पर महिलाएं अपना काम रोक सकें। साथ ही जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करना भी बढ़ते तापमान को रोकने का एक कारगर उपाय है।