जलवायु

शिकार नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन के कारण विलुप्त हुए ऊनी गैंडे : शोध

शोधकर्ताओं ने पाया कि साइबेरिया से गायब होने से कुछ हजार साल पहले तक ऊनी गैंडों की आबादी स्थिर और विविधता से भरी हुई थी

Dayanidhi

अंतिम हिमयुग के अंत में ऊनी मैमथ, गुफा में रहने वाले शेरों, और ऊनी गैंडों जैसे प्रागैतिहासिक मेगाफॅना के दुनिया भर में विलुप्त होने को, अक्सर प्रारंभिक रूप से मनुष्यों के विस्तारवाद को जिम्मेदार ठहराया गया है। एक अध्ययन में दावा किया गया है कि ऊनी गैंडों के विलुप्त होने का एक कारण जलवायु परिवर्तन है। यह अध्ययन  करंट बायोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

मेगाफॅना आमतौर पर एक निश्चित वजन सीमा से ऊपर के जानवरों का वर्णन करता है। इसे चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। सभी में से सबसे बड़े मेगाहर्बिवोर्स (शाकाहारी) 1000 किलोग्राम से बड़े होते हैं। मेगाफॅना प्लीस्टोसीन काल के दौरान लगभग 50 हजार साल पहले तक पृथ्वी पर प्रत्येक महाद्वीप, हिमनदों में रहते थे।

इन बड़े शाकाहारियों (मेगाहर्बिवोर्स) में से 14 के प्राचीन डीएनए की अनुक्रमण (सिक्वेंसिंग) करके, शोधकर्ताओं ने पाया कि साइबेरिया से गायब होने से कुछ हजार साल पहले तक ऊनी गैंडों की आबादी स्थिर और विविधता से भरी हुई थी। ठंड में रहने वाले ये प्रजातियां बढ़ते तापमान को सहन नहीं कर पाए और विलुप्त हो गए।

शुरू में माना गया था कि मनुष्य चौदह या पंद्रह हजार साल पहले उत्तर पूर्वी साइबेरिया में दिखाई दिया था, तभी ऊनी गैंडे विलुप्त हो गए थे।

शोधकर्ता लव डेलेन ने कहा हाल ही में, कई पुरानी मानव के रहने वाली जगहों की खोजें हुई हैं, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध लगभग तीस हजार साल पुरानी है। इनमें ऊनी गैंडों के गिरावट से विलुप्त होने तक इन क्षेत्रों में मनुष्यों की पहली उपस्थिति बहुत अधिक मेल नहीं खाती है। लव डेलेन सेंटर फॉर पलेओएोजेनेटिक्स के प्रोफेसर है। यह शोध स्टॉकहोम विश्वविद्यालय और प्राकृतिक इतिहास का स्वीडिश संग्रहालय ने मिलकर किया है।

साइबेरिया में ऊनी गैंडों की आबादी और स्थिरता के बारे में जानने के लिए, शोधकर्ताओं ने 14 गैंडों के ऊतक, हड्डी और बालों के नमूनों के डीएनए का अध्ययन किया। सेंटर फॉर पेलोजेनेटिक्स के सह-शोधकर्ता एडाना लॉर्ड कहते हैं हम एक पूर्ण परमाणु जीनोम का अनुक्रम करते हैं, जो उस समय की जनसंख्या के आकार का अनुमान लगाते हैं। हमने मादा प्रभावी आबादी के आकार का अनुमान लगाने के लिए चौदह माइटोकॉन्ड्रियल जीनोम भी अनुक्रमित किए है।

इन जीनोमों की हेटेरोज़ायोसिटी, या आनुवंशिक विविधता को देखकर, शोधकर्ता विलुप्त होने से हजारों वर्षों पहले के ऊनी गैंडों की आबादी का अनुमान लगा सकते हैं। सेंटर फॉर पलेओगेनेटिक्स के पोस्टडॉक्टरल शोधकर्ता निकोलस ड्युसेक्स कहते हैं कि हम जनसंख्या के आकार में परिवर्तन की जांच कर सकते हैं और इसका अनुमान भी लगा सकते हैं। हमने पाया कि कुछ 29 हजार साल पहले ठंड की अवधि में जनसंख्या के आकार में वृद्धि के बाद, ऊनी गैंडों की आबादी का आकार स्थिर हो गया था और इस समय इनके बीच, सजाति प्रजनन भी कम हो रहा था।

यह स्थिरता तब तक बनी रही जब तक कि इंसानों ने साइबेरिया में रहना शुरू नहीं कर दिया, गिरावटों के विपरीत, यह आशंका जताई गई थीं कि शिकार के कारण ऊन वाले गैंडे विलुप्त हो गए थे। लॉर्ड कहते है कि यह दिलचस्प बात है -हमें वास्तव में 29 हजार साल बाद आबादी के आकार में कमी नहीं दिखाई देती है। हमने जो आंकड़े देखे, वह केवल 18,500 साल पहले के हैं, जो उनके विलुप्त होने से लगभग 4,500 साल पहले के हैं, इसलिए इसका मतलब है कि उस अंतराल में ऊनी गैंडों में कुछ गिरावट आई थी।

डीएनए के आंकड़ों से आनुवंशिक उत्परिवर्तन का भी पता चला है, जो ऊनी गैंडों को ठंड के मौसम के अनुकूल बनाने में मदद करता था। इन उत्परिवर्तनों में से एक, गर्म और ठंडे तापमान को महसूस करने के लिए त्वचा में संग्राहक (रिसेप्टर) का एक प्रकार है, जो ऊनी मैमथ में भी पाया गया था। इस तरह के मौसम से मुकाबला करने की क्षमता ऊनी गैंडे में भी थी, जो कि विशेष रूप से पूर्वोत्तर साइबेरियाई जलवायु के अनुकूल था। हो सकता है कि हल्की गर्मी की अवधि के कारण इनकी संख्या में गिरावट आई हो, जिसे बोरिंग-एलेरियो इंटरस्टेडियल- अंतिम हिमयुग के रूप में जाना जाता है, जो कि उनके विलुप्त होने के अंत के साथ मेल खाता है।

लॉर्ड कहते है मनुष्यों के बजाय मेगाफ्यूना विलुप्त होने में जलवायु की भूमिका अहम है। हालांकि लोगों की भूमिका को खारिज नहीं किया जा सकता है। हमारे सुझावों के अनुसार ऊनी गैंडों के विलुप्त होने में जलवायु ही अहम कारण थी।

शोधकर्ताओं को और अधिक ऊनी गैंडों के डीएनए का अध्ययन करने की उम्मीद है जो कि पिछले जीनोम और उनके विलुप्त होने के बीच 4,500 साल के अंतराल में रहते थे। शोधकर्ता ठंड में रहने वाले अन्य मेगाफ्यूना को भी यह जानने के लिए देख रहे हैं कि इन पर बढ़ते तापमान, अस्थिर जलवायु के क्या प्रभाव पड़ते हैं। हम जानते हैं कि जलवायु बहुत बदल गई है, लेकिन सवाल यह है: विभिन्न जानवर कितने प्रभावित थे, और उनके पास एक जैसा क्या था?