जलवायु

क्या तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ खत्म हो जाएंगी यह खूबसूरत प्रजातियां

जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कुछ प्रजातियों ने अपनी खाने की आदतों को बदल लिया है कुछ ने अपने आवास को, पर जो कमजोर है वो अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रही हैं

Lalit Maurya

इंसान पर जलवायु परिवर्तन का क्या असर होगा इसकी चर्चा हमेशा से होती रही है, पर बढ़ते तापमान का असर क्या केवल हम इंसानों पर ही पड़ेगा, ऐसा नहीं हैं, इन बदलावों से ग्रह पर रहने वाले अनगिनत जीव भी प्रभावित हो रहे हैं| जिनमें पेड़-पौधों से लेकर पक्षी, स्तनपायी, कीट, कोरल्स, सरीसृप, उभयचर हर कोई शामिल हैं| इनमें से कुछ ने इनसे निपटने के लिए अपनी खाने की आदतों को बदल लिया है कुछ ने आपने आवास को, पर जो कमजोर है वो अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं|

हाल ही में वैज्ञानिकों ने इस बात का पता लगाने की कोशिश की है कि यदि वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाएगी तो किन प्रजातियों पर इसका सबसे ज्यादा होगा और वो असर किस तरह का होगा| इस बारे में वन्य जीवों पर काम कर रहे अंतराष्ट्रीय संगठन वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फाउंडेशन (डब्लूडब्लूएफ) द्वारा एक नई रिपोर्ट फीलिंग द हीट में इसकी जानकारी दी है|

इस रिपोर्ट के अनुसार यदि तापमान पैरिस समझौते में तय सीमा 1.5 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाएगा तो उसका दुनिया की 12 प्रमुख प्रजातियों पर सबसे ज्यादा असर होगा, जो इसके कारण अपने भोजन और आवास को खो देंगी, इन्हें भोजन खोजने और जीवित रहने के लिए पहले से कहीं ज्यादा संघर्ष करना होगा |

अनुमान है कि यदि ऐसा होता है तो जहां कोरल्स अपनी रंग बिरंगी आभा को खो देंगें, वहीं अंटार्कटिक में रहने वाले पेंगुइन अपने घरों को खो देंगें इसी तरह यूके के तटों के आसपास रहने वाले पफिन अपने बच्चों को खिलाने में असमर्थ हो जाएंगें, जबकि अमेज़न के जंगलों में रहने वाले काले सिर वाले गिलहरी बंदरों का सफाया हो जाएगा|

इस रिपोर्ट में जिन 12 प्रजातियों का जिक्र किया गया है उनमें स्तनधारी, सरीसृप, उभयचर, कीड़े, पक्षी, पौधे और मूंगे शामिल हैं, जोकि अमेज़न के घने जंगलों से लेकर अंटार्कटिका के निर्जन इलाकों तक में पाई जाती हैं| हालांकि यह लिस्ट पूरी तो नहीं है पर यह इतना तो स्पष्ट कर सकती है कि दुनिया में रहने वाली अन्य प्रजातियां भी अलग-अलग तरह से तापमान बढ़ने का शिकार बन रही हैं, जिनको बचाने के लिए उत्सर्जन में कमी करना कितना जरुरी है|

इस रिपोर्ट में जिन 12 प्रजातियों की बात की है उनमें अटलांटिक पफिन्स, लेदरबैक टर्टल, काले सिर वाले गिलहरी बन्दर, डार्विन मेंढक, इम्पीरियर पेंगुइन, दरियाई घोड़े, कॉफी, कोरल्स, हिम तेंदुएं, ब्लूबेल्स, बम्बलबी और पहाड़ी खरगोश शामिल हैं|

रिपोर्ट से पता चला है कि जहां ज्यादातर यूके में मिलने वाले पफिन्स समुद्र के गर्म होने से बढ़ते खतरों का सामना कर रहे हैं। जिसका उनके भोजन पर असर पड़ रहा है| इसी तरह स्कॉटलैंड के पहाड़ों में मिलने वाले खरगोश पर भी जलवायु परिवर्तन का असर पड़ रहा है जिसके चलते वो आसानी से शिकारी जीवों का शिकार बन रहे हैं|

वहीं अमेज़न के जंगलों में मिलने वाले काले सिर वाले गिलहरी बन्दर पर भी बाढ़ के बढ़ते खतरों का असर पड़ रहा है यह बन्दर ज्यादातर बाढ़ के मैदानी इलाकों में रहते हैं| वहीं यदि लेदरबैक कछुओं की बात करें तो तापमान उनके लिंग को प्रभावित कर रहा है गर्मी के कारण इस प्रजाति की ज्यादा मादाएं जन्म ले रही हैं, जो इनकी आबादी को प्रभावित कर रही हैं|

इसी तरह बढ़ता तापमान काफी को भी प्रभावित कर रहा है| अनुमान है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस के साथ दक्षिण अमेरिका के अरेबिका के 90 फीसदी कॉफी प्लांटेशन 2050 तक खतरे में पड़ जाएंगें| हाल ही में एक अन्य शोध ने भी इस बात का खुलासा किया था जिसके अनुसार यदि वैश्विक ताप में हो रही वृद्धि जारी रहती है तो उसका असर उत्पादन के साथ-साथ चाय के स्वाद और स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद गुणों पर भी पड़ेगा|

रिपोर्ट से पता चला है कि ब्लूबेल्स भी साल की शुरुआत में होने वाले गर्मी से जूझ रहे हैं| अब वे समय से पहले फूल दे रहे है क्योंकि गर्म तापमान समग्र रूप से अंकुरण और पुनर्विकास में बाधा डाल रहा है। इसी तरह इम्पीरियर पेंगुइन, दरियाई घोड़े, डार्विन मेंढक, लेदरबैक टर्टल, बम्बलबी और हिम तेंदुएं भी बढ़ते तापमान का शिकार बन रहे हैं|

बेहद कठोर परिस्थितियों में रहने वाले हिम तेंदुएं भी इंसान और जलवायु परिवर्तन के खतरे से सुरक्षित नहीं है| अनुमान है कि 12 देशों में इनकी 4,000 से कम आबादी बची है| बढ़ता तापमान पहाड़ों पर जलवायु को बदल रहा है, अनुमान है कि 2070 तक इनके 23 फीसदी आवास नष्ट हो जाएंगें| वहीं यदि उत्सर्जन में कमी न की गई तो भूटान और नेपाल जैसे देशों में इनके 80 फीसदी आवास को नुक्सान पहुंचेगा|

रिपोर्ट में तापमान बढ़ने के साथ पैदा होने वाले खतरों के बारे में आगाह करते हुए बताया है कि तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के चलते 6 फीसदी कीट, 8 फीसदी पेड़-पौधों, और 4 फीसदी रीढ़ वाले जीवों जैसे पक्षी, जानवर, मछलियों आदि पर असर पड़ेगा| जो 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ बढ़कर 18 फीसदी कीटों, 16 फीसदी पेड़ पौधों और 8 फीसदी रीढ़दार जीवों को अपनी चपेट में ले लेगा|

वहीं यदि बाढ़ की बात करें तो 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ इसकी सम्भावना 100 फीसदी और 2 डिग्री के साथ 170 फीसदी बढ़ जाएगी| जो मनुष्यों के साथ-साथ अन्य जीवों को भी प्रभावित करेगी| इसी तरह जहां 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी से जहां 100 वर्षों में एक बार ऐसा ग्रीष्मकाल आएगा जब वहां बर्फ का नामोंनिशान नहीं होगा यह सम्भावना 2 डिग्री सेल्सियस के साथ 10 साल में एक बार हो जाएगी| हर आधे डिग्री सेल्सियस के साथ उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में पैदावार और पोषक तत्वों में कमी आती जाएगी|  वहीं सदी के अंत तक 35 करोड़ लोग सूखे का शिकार होंगे जो 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ बढ़कर 41 करोड़ हो जाएंगें|

वहीं यदि कोरल्स की बात करें तो 2050 तक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ 70 फीसदी कोरल्स खत्म हो जाएंगें और 2 डिग्री सेल्सियस के साथ सम्भावना है कि वो पूरी तरह से खत्म हो जाएंगें| तापमान में 0.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि करीब आधी स्थानीय प्रजातियों को नष्ट कर देंगी। जबकि 2.9 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से करीब 95 फीसदी स्थानीय प्रजातियों का अंत हो जाएगा

यदि वर्तमान में देखें तो वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि पहले ही 1.2 डिग्री सेल्सियस को पार कर चुकी है वहीं अनुमान है कि यह सदी के अंत तक अंत तक 3 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाएगी| रिपोर्ट के अनुसार तापमान में हो रही वृद्धि का हर अंश जीवों के लिए संकट को और बढ़ा रहा है| जो कई महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्रों को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचा सकता है|

10 लाख प्रजातियों पर मंडरा रहा है विलुप्त होने का खतरा

ऐसा नहीं है कि यह कोई पहली बार है जब तापमान बढ़ने के कारण जीवों पर बढ़ते खतरे से आगाह किया गया है, हाल ही में छपे एक शोध से पता चला था कि जलवायु परिवर्तन के चलते ध्रुवीय भालुओं के खाने की आदतें बदल रही है, जिसकी वजह से वो वो इंसानों की बस्तियों से बचा खुचा खाने का सामान चुरा रहे हैं साथ ही समुद्र किनारे घोंसला बनाने वाले पक्षियों के अंडे भी खा रहे हैं। इसी तरह एक अन्य शोध के अनुसार उष्णकटिबंधीय समुद्री क्षेत्रों में 2010 तक पिछले 40 वर्षों की अवधि में खुले पानी में पाई जाने वाली प्रजातियों की संख्या में करीब आधे की गिरावट आई है|

हाल ही में जर्नल साइंस में छपे अध्ययन से पता चला है कि 1990 के बाद से कीटों की आबादी में करीब 25 फीसदी की गिरावट आ गई है। कई प्रजातियां भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाने को मजबूर हो रही हैं| यदि जैव विविधता को हो रहे नुकसान की बात करें तो पेड़ पौधों और जानवरों की अब तक ज्ञात 80 लाख लाख प्रजातियों में से 10 लाख पर विलुप्त हो जाने का खतरा मंडरा रहा है|

इसी तरह शार्क को लेकर किए एक शोध से पता चला है कि तापमान बढ़ने से शार्क भ्रूण का विकास बहुत तेजी से हो रहा है जिस वजह से शार्क के बच्चे समय से पहले ही जन्म ले रहे हैं, जिसका असर उनकी आबादी पर पड़ रहा है| अनुमान है कि पिछले 50 वर्षों में शार्क और रे मछलियों की 70 फीसदी से ज्यादा आबादी घट गई है| इसी तरह भारत सहित दुनिया भर में ताजे पानी की हर तीसरी मछली पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। वहीं 1990 से 2015 के बीच मधुमक्खियों की करीब एक चौथाई प्रजातियों को फिर से नहीं देखा गया है| इसी तरह दुनिया भर में करीब 140,000 पौधों की प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है, जिसमें से 723 प्रजातियां दवाओं के निर्माण में बहुत मायने रखती हैं|

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ में विज्ञान और संरक्षण से जुड़े कार्यकारी निदेशक माइक बैरेट के अनुसार तबाही की ओर तेजी से जाने और उससे बचने के लिए वैश्विक नेताओं को अभी कार्य करने की जरुरत है। हालांकि हो सकता है कि हमें आधा डिग्री की वृद्धि महत्वपूर्ण न लगे पर यह विभिन्न प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्रों को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचा सकती है| जिससे दुनिया भर में कहीं ज्यादा प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी और लाखों लोगों का जीवन खतरे में पड़ जाएगा|

ऐसे में यदि हमें इन बेहतरीन प्रजातियों और उनके आवास को बचाना है तो हमें अभी से इस पर काम करना होगा| हम आज क्या करते हैं इसपर हमारा भविष्य निर्भर करेगा| पृथ्वी सिर्फ हम इंसानों की नहीं, यह उन सभी जीवों का भी घर है, जो यहां रहते हैं|