हजारों साल पहले दुनिया भर के अधिकतर विशाल ग्लेशियर गायब हो गए हैं। इन ग्लेशियरों के गायब होने के पीछे क्या कारण रहे, इसी को समझने की कोशिश में जलवायु वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम न्यूजीलैंड के उत्तरी कैंटरबरी में अध्ययन कर रही है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि एक समय था जब ये विशाल पूर्व ऐतिहासिक ग्लेशियर उत्तरी कैंटरबरी के टेनीसन झील के तट पर खड़े थे, लेकिन वे आज वहां मौजूद नहीं हैं।
शोधकर्ता ने बताया कि जैसे-जैसे ग्लेशियर पीछे हटते हैं, वे अपनी उम्र के सुरागों को तलछट या सेडीमेंट के रूप में छोड़ देते हैं और बर्फ के पिघलने के बाद कंकर या बोल्डर के रूप में रह जाते हैं। मोराइन कहलाने वाले मलबे के ये ढेर हमें ओटारो न्यूजीलैंड के जलवायु इतिहास के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।
शोधकर्ता लेक टेनीसन के आसपास के इलाकों का अध्ययन कर रहे हैं ताकि यह पता लगाया जा सके कि ग्लेशियर क्यों और कब गायब हुए। इस अंतरराष्ट्रीय टीम में एनआईडब्ल्यूए, विक्टोरिया यूनिवर्सिटी ऑफ वेलिंगटन, मेन यूनिवर्सिटी, लिंकन यूनिवर्सिटी और जीएनएस साइंस के शोधकर्ता शामिल हैं।
इस अध्ययन की अगुवाई जलवायु वैज्ञानिक डॉ. एंड्रयू लॉरे कर रहे हैं। उन्होंने बताया हमें उन बदलावों को समझने की आवश्यकता है जो हम इस परिदृश्य में देखते हैं जो हजारों साल पहले हुआ था। क्योंकि जो कालक्रम उभर रहे हैं, ऐसा लगता है कि यह परिदृश्य वास्तव में तेजी से बदल गया है।
शोधकर्ताओं ने बताया कि उनके कार्य में ड्रोन के साथ मैपिंग और बोल्डर के उत्पत्ति या विकास से संबंधित या कॉस्मोजेनिक आइसोटोप डेटिंग से जुड़े लिडार को भी शामिल किया गया है। यह प्रयास परिदृश्य के विकास की एक तस्वीर बनाता है और दिखाता है कि ग्लेशियर कब मौजूद थे और कैसे वे हजारों साल पहले पीछे हट गए।
डॉ लॉरे कहते हैं कि अतीत में कैसे और कब परिदृश्य बदल गया, यह समझना हमें भविष्य में क्या होगा, इसके बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है।
उन्होंने कहा हमें उम्मीद है कि हम उन ग्लेशियरों के भू-आकृतियों का पता लगाने में सफल होंगे। हम एक बोल्डर का नमूना लेते हैं जिसे एक मोराइन में बर्फ पिघलने से अलग कर दिया गया था, उस पर रसायन शास्त्र की मदद से पता लगाते हैं और यह हमें बताता है कि बोल्डर कितने समय से वातावरण के संपर्क में है।
डॉ लॉरे ने कहा हमें उस तेजी से होने वाले बदलाव को समझना होगा और उसमें यह भी जोड़ना होगा कि मानवजनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से जलवायु प्रणाली में किस तरह के बदलाव होता है। आगे जोड़ते हुए उन्होंने कहा कि उन दो चीजों को एक साथ रखने से एक मजबूत समझ होगी कि भविष्य में हम कहां जा रहे हैं।