जलवायु

बर्फ की बजाय बारिश की वजह से तेजी से पिघल रहे हैं ग्लेशियर

पता चला है कि गर्मियों में जहां बर्फबारी होती थी, वहां उसकी जगह अब बारिश ने ले ली है। जो वहां जमा बर्फ के जमाव को सीमित कर रही है। नतीजन ग्लेशियर बड़ी तेजी से घट रहे हैं

Lalit Maurya

एशिया के ऊंचे पहाड़ जलवायु को नियंत्रित करने के साथ-साथ इस क्षेत्र में रहने वाले लाखों लोगों की जल सम्बन्धी जरूरतों को भी पूरा करते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक इस क्षेत्र में मौजूद कुछ ग्लेशियर बड़ी तेजी से पिघल रहे हैं। इसमें दक्षिण-पूर्वी तिब्बत के ग्लेशियर भी शामिल हैं, जो बड़ी तेजी से बर्फ खो रहे हैं। लेकिन ऐसा क्यों हो रहा है? यह लम्बे समय से अध्ययन का विषय रहा है। 

इस बारे में स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट फॉर फॉरेस्ट, स्नो एंड लैंडस्केप रिसर्च (डब्ल्यूएसएल) से जुड़े वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किए अध्ययन से पता चला है कि ऐसा उस क्षेत्र में गर्मियों के दौरान घटती बर्फबारी के कारण हो रहा है। देखा जाए तो आल्प्स के विपरीत, तिब्बती पठार पर मौजूद ग्लेशियर के आसपास गर्मियों के महीनों में अधिकांश हिमपात होता है। यह महीने सबसे गर्म होने के साथ-साथ सबसे नम भी होते हैं। 

इस क्षेत्र में ग्लेशियरों से पिघलने वाली बर्फ ब्रह्मपुत्र नदी को पानी से भर देती है। इस नदी पर लाखों लोगों का जीवन निर्भर है। यह नदी इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों की पीने के पानी, कृषि और उद्योगों  की जल सम्बन्धी जरूरतों को पूरा करती है।

लेकिन हाल ही में उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों से पता चला है कि इस क्षेत्र में कुछ ग्लेशियर बड़ी तेजी से पिघल रहे हैं और इनके पिघलने की रफ्तार एशिया में सबसे ज्यादा है। इतना ही नहीं ग्लेशियरों को होते नुकसान की यह दर पिछले दशकों में काफी तेज हो गई है। हम जानते हैं कि बढ़ते तापमान के कारण दुनिया भर में ग्लेशियर बड़ी तेजी से पिघल रहे हैं, लेकिन क्या इस क्षेत्र में ग्लेशियरों के तेजी से घटने के पीछे का बढ़ता तापमान ही जिम्मेवार है या फिर अन्य कारक भी इसकी वजह हैं।

गर्मियों में बर्फबारी की जगह हो रही है बारिश

इसे समझने के लिए वैज्ञानिकों ने दक्षिण-पूर्वी तिब्बत में स्थित पारलुंग नंबर 4 ग्लेशियर में पिछले 45 वर्षों के दौरान आए बदलावों और उसके कारणों को समझने का प्रयास किया  है। इसके लिए उन्होंने ग्लेशियो-हाइड्रोलॉजिकल मॉडल का उपयोग किया है। साथ ही उन्होंने इस साइट से एकत्र किए गए आंकड़ों के व्यापक डेटासेट और रिमोट सेंसिंग से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग इस मॉडल में किया है। गौरतलब है कि इस मॉडल की मदद से ग्लेशियर और धारा के रूप में जल प्रवाह को एक साथ समझा जा सकता है। 

जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (पनास) में प्रकाशित इस रिसर्च के जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनसे पता चला है कि ऐसा वहां होने वाली बर्फबारी और बारिश में आने वाले बदलावों के कारण हो रहा है। पता चला है कि गर्मियों में जहां बर्फबारी होती थी उसकी जगह अब बारिश ने ले ली है। जो वहां जमा बर्फ के जमाव को सीमित कर रही है।

आमतौर पर वहां होने वाला हिमपात ठोस बर्फ के रूप में जमा हो जाता था, लेकिन बारिश की वजह से ऐसा नहीं हो पारा है, जिसकी वजह से वहां जमा बर्फ तेजी से कम होती जा रही है। हालांकि शोध पता चला है कि इस क्षेत्र में ग्लेशियरों के पिघलने की दर में भी वृद्धि हुई है, लेकिन हाल में बर्फ का घटता जमाव, इस क्षेत्र के ग्लेशियरों को बड़े पैमाने पर होते नुकसान का प्रमुख कारण है। तथ्य यह है कि वहां ग्लेशियरों पर कम बर्फ जमा हो रही है, जिसकी वजह से बर्फ पिघलने के मौसम में ग्लेशियर का बड़ा हिस्सा सूर्य और गर्मी के संपर्क में आ रहा है जो पिघलने की दर को बढ़ा सकता है। 

इस गर्मी में ऐसा ही कुछ आल्प्स में भी देखा गया था, जहां सर्दियों में बर्फ का जमाव कम हुआ था जिसके कारण वहां गर्मी में बर्फ तेजी से ज्यादा मात्रा में पिघल गई थी। देखा जाए तो एक तरफ बढ़ता तापमान ऊपर से घटती बर्फबारी इन ग्लेशियरों के लिए चुनौतियों को कहीं ज्यादा बढ़ा रही हैं।