जलवायु

भविष्य में कौन से जीव जलवायु परिवर्तन से निपटने में सफल रहेंगे: शोध

शोध का उद्देश्य यह जानना है कि जीव आनुवंशिक आधार पर बदलते मौसम में अपने आपको किस तरह ढालते हैं, भविष्य में कौन से जीव जीवित रहेंगे।

Dayanidhi

जलवायु परिवर्तन के चलते जीवों के आवासों को लगातार नुकसान हो रहा है, जिसमें बाढ़ आने, भूस्खलन, सूखा पड़ना आदि शामिल है। तापमान में उतार-चढ़ाव जैसी समस्याएं बढ़ रही है जिसके कारण पहले ही कई जानवरों की प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर पहुंच गई हैं। लेकिन क्या वैज्ञानिक पूर्वानुमान लगा सकते हैं कि जलवायु परिवर्तन के दौर में कौन से जानवर, जीव इससे निपटने और जीवित रहने में सफल होंगे?

जीनोम अनुक्रमण का उपयोग करते हुए, मैकगिल विश्वविद्यालय के शोधकर्ता बताते हैं कि कुछ मछलियां, जैसे तीन कांटे वाली छोटी मछली (थ्रीस्पाइन स्टिकबैक), मौसम में होने वाले अत्यधिक परिवर्तनों के दौर में भी यह बहुत तेजी से इसके अनुकूल अथवा इसमें अपने आपको ढाल सकती है। यह शोध के ये निष्कर्ष वैज्ञानिकों को इन जीवों की आबादी के भविष्य में किस तरह विकास होगा इसके बारे में पूर्वानुमान लगाने में मदद कर सकता है।

तीन कांटे वाली छोटी मछली (थ्रीस्पाइन स्टिकबैक) अपने विभिन्न आकार और व्यवहार के लिए जानी जाती है। ये समुद्री- खारे पानी और ताजे पानी दोनों में और अलग-अलग तापमान में भी रह सकते हैं। अब सवाल यह उठता है कि इस प्रजाति को इतना लचीला अथवा यह अपने आप को कैसे ढालते हैं कौन सी ऐसी चीज है जो इन्हें इस लायक बनाती है?  

शोध का उद्देश्य यह भी जानना है कि जीव आनुवंशिक आधार पर बदलते मौसम में अपने आपको किस तरह ढालते हैं। प्राकृतिक चयन के आधार पर विकास के डार्विन के विचार का आधुनिक संस्करण यह मानता है कि जीवित रहने और प्रजनन करने वाले जीनों वाले जीव अपने साथियों की तुलना में अधिक संतान पैदा करते हैं, जिससे जीन की पीढ़ियों में लगातार वृद्धि होती है।  

प्रमुख शोधकर्ता एलन गार्सिया-एल्फ़्रिंग कहते हैं कि नतीजतन, जीवों की आबादी समय के साथ वातावरण से निपटने या बेहतर तरीके से ढल जाते हैं। एलन मैकगिल विश्वविद्यालय में जैव विविधता विज्ञान के शोधकर्ता है। हालांकि, इस प्रक्रिया का पहले से अध्ययन किया गया है, जीवों की आबादी जो अपने वर्तमान वातावरण के अनुकूल ढल गए है।  

वास्तविक समय में प्राकृतिक चयन

प्राकृतिक चयन का अध्ययन करने के लिए, शोधकर्ताओं ने जीनोम अनुक्रमण का उपयोग करके वातावरण में होने वाले मौसमी परिवर्तन से पहले और बाद में तीन कांटे वाली छोटी मछली (थ्रीस्पाइन स्टिकबैक) की छह पीढ़ियों की आबादी का पता लगाया। तटीय कैलिफ़ोर्निया के विभिन्न मुहानों में पाए जाने वाले छोटी मछली (स्टिकबैक) वास्तविक समय में प्राकृतिक चयन का अध्ययन करने का एक दुर्लभ अवसर प्रदान करते हैं।

 अधिक नमी वाली सर्दियां और शुष्क ग्रीष्मकाल से प्रेरित मौसमी बदलावों के परिणामस्वरूप निवास स्थान की संरचना में भारी बदलाव होता है और खारे पानी बनाम मीठे पानी का संतुलन का बना रहना कठिन होता है और केवल वे मछलियां ही इन तीव्र बदलावों को सहन करने में सक्षम होती हैं जो अगले मौसम में जीवित रहती हैं।

गर्मी के महीनों के दौरान समुद्र के मुहाने पर की रेत के गठन में समय-समय पर बदलाव होते रहता है। प्रोफेसर बैरेट कहते हैं ये परिवर्तन संभवतः छोटी मछली (स्टिकबैक) की आबादी द्वारा उस समय महसूस किए गए होंगे जब इनके निवास स्थानों में बदलाव हो रहा था, जब उन्होंने 10,000 साल पहले ग्लेशियरों के पिघलने, हटने के बाद समुद्र से अलग बने कई ताजे पानी की झीलों को बसाया था। लंबे समय से प्राकृतिक चयन के परिणामस्वरूप होने वाले आनुवंशिक परिवर्तनों की जानकारी प्राप्त करने की उम्मीद हैं।

शोधकर्ताओं ने निवास स्थान में होने वाले मौसमी बदलावों से प्रेरित आनुवंशिक परिवर्तनों की खोज की, जो लंबे समय से स्थापित ताजे पानी और खारे पानी की आबादी के बीच के अंतर को दर्शाते हैं। एलन गार्सिया-एल्फ़्रिंग कहते हैं, ये आनुवंशिक परिवर्तन एक ही मौसम में स्वतंत्र रूप से रहने वाले जीवों की आबादी में हुए, जिससे प्राकृतिक चयन के प्रभावों का पता लगाया जा सकता है। यह शोध मॉलिक्यूलर इकोलॉजी में प्रकाशित हुआ है।

शोध के परिणाम महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये सुझाव देते हैं कि हम अतीत में विकसित आनुवंशिक अंतर का उपयोग करने में सफल हो सकते हैं, ताकि यह अनुमान लगाया जा सके कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन जैसे पर्यावरणीय प्रभावों में जीवों की आबादी कैसे ढल सकती है तथा अपने आपको बचा सकती है।

प्राकृतिक चयन कैसे संचालित होता है, इसकी बेहतर समझ हासिल करने के लिए शोध में बदलने वाले वातावरण में प्रजातियों के अध्ययन के महत्व को रेखांकित करता है। शोधकर्ताओं ने आगे के शोध में, यह जांचने की योजना बनाई है कि देखे गए अनुवांशिक बदलावों को कितनी बार दोहराया जा सकता है। परीक्षण करके यह जानना है कि वे जीव साल-दर-साल दिखाई देते हैं या नहीं। ऐसा करने से इन जीवों की आबादी के भविष्य में होने वाले विकास का मज़बूती से पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।