जलवायु

जलवायु परिवर्तन का सामना करने में कौन से जानवर हैं बेहतर, क्या उम्र, आकार और बच्चे भी रखते हैं मायने

हाथी, भालू, बाघ, चिम्पांजी जैसे जानवर जो लम्बे समय तक जीवित रहते हैं और सीमित संतान पैदा करते हैं, वो दूसरे छोटे जीवों की तुलना में जलवायु परिवर्तन का कहीं बेहतर तरीके से सामना कर सकते हैं

Lalit Maurya

जलवायु परिवर्तन इस सदी का एक ऐसा खतरा है जिससे चाह कर भी नहीं बचा जा सकता। मौसम से जुड़ी चरम घटनाएं जैसे भारी बारिश, बाढ़, लम्बे समय तक चलने वाला सूखा ऐसी ही घटनाएं हैं जो तापमान में होती वृद्धि के साथ आम होती जा रहीं हैं। अंदेशा है कि आने वाले दशकों में स्थिति बद से बदतर हो सकती है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि इन सबके बीच धरती का इकोसिस्टम कैसे प्रतिक्रिया करेगा।

इंसान जो धरती का सबसे समझदार जीव है शायद वो इनका कुछ न कुछ हल निकल ले, लेकिन निरीह जीव जिन्हें इस बारे में भनक भी नहीं है वो इन बदलावों का सामना कैसे करेंगें, उनके लिए यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है।

इन्हीं प्रश्नों के जवाब ढूंढने के लिए हाल ही में एक प्रयास किया गया है, जिसमें इस बात की पड़ताल की गई है कि धरती पर रहने वाली विभिन्न स्तनधारी जीव जलवायु में आते बदलावों के प्रति किस तरह प्रतिक्रिया करते हैं।

शोध के जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनसे पता चला है कि हाथी, भालू, साइबेरियन बाघ, चिम्पांजी जैसे जो जानवर लम्बे समय तक जीवित रहते हैं और कम संतति पैदा करते हैं, वो दूसरे छोटे और कम समय तक जिन्दा रहने वाले जीवों जैसे चूहों आदि की तुलना में जलवायु में आते बदलावों का सामना करने के लिए कहीं ज्यादा सक्षम और तैयार होते हैं।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दुनिया भर की 157 स्तनपायी प्रजातियों की आबादी में आए उतार-चढ़ाव सम्बन्धी आंकड़ों का विश्लेषण किया है। साथ ही उन आंकड़ों की तुलना उस समय के मौसम और जलवायु से जुड़े आंकड़ों से की है।

पता चला है कि अजारा ग्रास माउस, ऑलिव ग्रास माउस, एलिगेंट फैट-टेल्ड माउस ओपस्सम, कैनेडियन लेमिंग, टुंड्रा वोल, आर्कटिक फॉक्स, स्टॉट, कॉमन श्रू, वॉयली, आर्कटिक गिलहरी ऐसे कुछ छोटे जीव है जो जलवायु में आते बदलावों के लिए सबसे कम तैयार होंगें।

वहीं दूसरी तरफ अफ्रीकन हाथी, साइबेरियन बाघ, चिंपैंजी, ग्रेटर होर्सशू बैट, लामा, विकुना, सफेद गैंडे, ग्रिजली भालू, अमेरिकी बाइसन आदि पर जलवायु परिवर्तन का सबसे कम प्रभाव होगा।

जर्नल ई लाइफ में प्रकाशित इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उन प्रजातियों के 10 या उससे ज्यादा वर्षों के आंकड़ों को शामिल किया है। इन आंकड़ों की मदद से शोधकर्ताओं ने यह समझने का प्रयास किया है कि कैसे मौसम से जुड़ी चरम घटनाओं के समय इन प्रजातियों ने मुकाबला किया था और क्या उस समय उनकी आबादी में कमी या फिर वृद्धि हुई थी। या फिर ऐसे वक्त में उनके कम या ज्यादा संतानें हुई थी।

शोध के जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनमें स्पष्ट रूप से यह पैटर्न दिखता है, जो जीव लम्बे समय तक जीवित रहते हैं और जिनकी सीमित संतानें होती हैं वो कम अवधि तक जीने वाले ऐसे जीवों की तुलना में कहीं ज्यादा सुरक्षित होते हैं जिनकी कई संतानें होती हैं। इस बारे में शोधकर्ताओं ने लामा, हाथी, लम्बे समय तक जीने वाले चमगादड़ों की तुलना चूहे, पॉस्सम और धानी (मारसूपियल) जैसे छोटी अवधि तक जीने वाले जीवों से की है।

शोध से पता चला है कि बड़े, लम्बे समय तक जीवन वाले जीव दीर्घावधि तक चलने वाले सूखे जैसी परिस्थितियों का सामना करने में कहीं ज्यादा बेहतर होते हैं। उनका जीवन, प्रजनन और संतान को पालने की क्षमता, छोटे अल्पावधि तक जीने वाले जीवों की तरह प्रभावित नहीं होती है। वो बड़े जीव अपनी ऊर्जा एक ही संतान को पालने में खर्च करते हैं और मुश्किल और चुनौतीपूर्ण समय में भी स्थिति के बेहतर होने का इन्तजार करते हैं।

वहीं दूसरी और छोटे और कम अवधि के लिए जीने वाले जीवों की आबादी में कम समय में ही ज्यादा बदलाव आते हैं। उनके एक बड़ी आबादी सूखे जैसे मुश्किल समय में अपने जीवन आधार भोजन जैसे फल, फूल और कीटों के बड़े हिस्से को थोड़े समय में खर्च कर देती है।

ऐसे में सीमित वसा भंडार के चलते उनकी चुनौतियां कहीं ज्यादा गंभीर हो जाती हैं। वहीं परिस्थितियों में सुधार होने पर यह छोटे स्तनधारी जीव आबादी का फायदा उठा सकते हैं, क्योंकि बड़े स्तनधारियों के विपरीत, वे कई संतान पैदा कर सकते हैं, जिससे उनकी आबादी बड़ी तेजी से बढ़ती है।

आवास का होता विनाश, अवैध शिकार और प्रदूषण जैसे खतरे भी रखते हैं मायने

इस बारे में शोधकर्ता जॉन जैक्सन का कहना है कि ये छोटे स्तनधारी जीव मौसम की चरम घटनाओं के साथ तेजी से प्रतिक्रिया करते हैं। जिसके अपने फायदे और घाटे हैं। ऐसे में में चरम मौसम के प्रति उनकी संवेदनशीलता को विलुप्त होने के जोखिम के साथ जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए।

इससे यह भी पता चलता है कि विलुप्ति का सामना करने के लिए प्रजातियां कितनी तैयार हैं इसका आंकलन करते समय एक प्रजाति की केवल जलवायु परिवर्तन का सामना करने की क्षमता ही केवल मायने नहीं रखती। इसके लिए इनके आवास का होता विनाश, अवैध शिकार, प्रदूषण, आक्रामक प्रजातियां जैसे कारक भी मायने रखते हैं। जो जानवरों की कई प्रजातियों के लिए जलवायु परिवर्तन से भी ज्यादा बड़ा खतरा हैं।

देखा जाए तो जलवायु में आता बदलाव एक ऐसा खतरा है जिसकी वजह से आशंका है कि भविष्य में मौसम की चरम घटनाओं का खतरा और बढ़ जाएगा। ऐसे में इन जीवों को इन घटनाओं का सामना करना होगा।

हालांकि इस शोध में 157 प्रजातियों को ही शामिल किया है लेकिन शोधकर्ताओं का मत है कि इसके निष्कर्षों की मदद से अन्य प्रजातियों की सामान्य विशेषताओं के आधार पर इस बारे में समझा जा सकता है कि वो जलवायु में आते बदलावों के प्रति कैसे प्रतिक्रिया देंगें। भले ही उन प्रजातियों के बारे में बहुत सीमित जानकारी उपलब्ध हो।

शोधकर्ताओं के मुताबिक ऐसा ही एक उदाहरण वॉयली है, जो एक दुर्लभ ऑस्ट्रेलियाई मार्सुपियल जीव है। इसके बारे में वैज्ञानिक ज्यादा कुछ नहीं जानते। लेकिन चूंकि यह चूहों के समान जीवन शैली साझा करता है। मतलब यह आकार में छोटा है और थोड़े समय तक ही जीवित रहता है और जल्द प्रजनन करता है। ऐसे में यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह चूहों के समान ही मौसम की चरम घटनाओं का सामना करने के काबिल होगा।

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि जीवों की जलवायु अनुकूल होने की क्षमता उनकी जीवन रणनीति से सम्बंधित है। जलवायु में आते बदलावों के चलते जैसे-जैसे उनके आवास पर असर पड़ता है और वो अनुकूल नहीं रहते वैसे-वैसे वो जीव नए क्षेत्रों में जाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। देखा जाए तो ये बदलाव प्रजातियों की जीवन रणनीतियों पर निर्भर करते हैं और इकोसिस्टम पर व्यापक असर डाल सकते हैं।