जलवायु

सूखे की तुलना में आठ गुना ज्यादा हानिकारक है पालतू जानवरों का गीला आहार

Lalit Maurya

क्या आप जानते हैं कि पालतू जानवरों को दिया जा रहा गीला भोजन, सूखे आहार की तुलना में पर्यावरण के लिए कहीं ज्यादा हानिकारक है। पता चला है कि सूखे की तुलना में पालतू जानवरों के लिए तैयार गीले आहार से आठ गुना ज्यादा ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है। यह जानकारी ब्राजील के शोधकर्ताओं द्वारा किए नए अध्ययन में सामने आई है, जिसके नतीजे जर्नल नेचर साइंटिफिक रिपोर्टस में प्रकाशित हुए हैं।  

देखा जाए तो समय के साथ लोगों में पालतू जानवर रखने का शौक भी बढ़ता जा रहा है। नतीजन दुनिया भर में बड़ी संख्या में लोग कुत्ते, बिल्लियों सहित कई अन्य जानवरों को अपने शौक के लिए पाल रहे हैं। इसके साथ ही जानवरों के लिए पैकेट बंद आहार उत्पादों की मांग भी दिन प्रतिदिन बढ़ रही है।

यदि 2018 के आंकड़ों को देखें तो दुनिया भर में 84.4 करोड़ पालतू कुत्ते और बिल्लियां हैं और जिनकी संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। ऐसे में इनके आहार के कारण पर्यावरण पर पड़ते दवाब को समझना लाजिमी हो जाता है। रिसर्च के मुताबिक आमतौर पर पालतू जानवरों को दिए जाने वाले आहार मांस पर आधारित होते हैं, जिनका अन्य खाद्य पदार्थों की तुलना में एनवायरनमेंट फुटप्रिंट कहीं ज्यादा होता है।

उदाहरण के लिए एक 10 किलोग्राम वजनी कुत्ते को देखें तो उसको हर दिन औसतन करीब 534 कैलोरी की जरूरत पड़ती है। इस लिहाज से देखें तो यदि एक वर्ष में यदि उस कुत्ते को सूखा आहार दिया जाता है तो उससे करीब 828.37 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होगा, जबकि दूसरी तरफ गीला आहार दिए जाने पर उत्सर्जन की यह मात्रा बढ़कर 6,541 किलोग्राम हो जाती है। देखा जाए तो सूखे आहार की तुलना में गीले आहार से होने वाला उत्सर्जन करीब 690 फीसदी ज्यादा है।

देखा जाए तो यह उत्सर्जन करीब-करीब एक औसत ब्राजीलियाई नागरिक के बराबर है, जिसका कार्बन पदचिह्न प्रति वर्ष 6,690 किलोग्राम है। रिसर्च से यह भी पता चला है कि ब्राजील में कुत्तों की संख्या बच्चों से ज्यादा है।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कुत्तों के 618 और बिल्लियों के लिए तैयार 320 अलग-अलग आहारों का विश्लेषण किया है। इसमें डिब्बे और पाउच में मिलने वाले गीले भोजन से लेकर सूखे बिस्कुट तक शामिल थे। इस विश्लेषण में व्यावसायिक उत्पादों से लेकर घरेलू आहारों का भी मूल्यांकन किया गया था।

इसमें इन आहारों के कारण होते ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन बल्कि साथ ही इसके कारण भूमि उपयोग और साफ पानी पर पड़ते दबाव का भी समझने की कोशिश की गई है। साथ ही आहार से मिलने वाले पोषण और कैलोरी का भी विश्लेषण किया है।

यूनिवर्सिटी ऑफ साओ पाउलो का वैज्ञानिकों द्वारा किए इस शोध के जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके अनुसार कुत्तों और बिल्लियों का गीला भोजन, सूखे आहार की तुलना में पर्यावरण को कहीं ज्यादा प्रभावित कर रहा है।

गौरतलब है कि जापान में ऐसे ही एक शोध में सामने आया है कि कुत्ते के आहार का जो इकोलॉजिकल फुटप्रिंट है वो एक औसत जापानी जितना ही है। वहीं अमेरिका में किए ऐसे ही एक अध्ययन से पता चला है वहां करीब 16.3 करोड़ पालतू कुत्ते और बिल्लियों हैं। जो वहां इंसानों के करीब 19 फीसदी आहार के बराबर उपभोग कर रहे  हैं।

देखा जाए तो यह जानकारी इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वैश्विक स्तर पर पर्यावरण के दृष्टिकोण से कृषि का दबाव बढ़ता जा रहा है, ऐसे में हमें सस्टेनेबल तरीकों पर गौर देना जरूरी है। शोध से पता चला है कि ग्रीनहाउस गैसों के कुल वैश्विक उत्सर्जन में कृषि की 26 फीसदी हिस्सेदारी है, जिसके करीब 31 फीसदी हिस्से के लिए मछली सहित पशु उत्पाद जिम्मेवार हैं।

वहीं फसलें 27 फीसदी उत्सर्जन की वजह हैं। इतना ही नहीं खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार आज हम धरती की 50 फीसदी भूमि और साफ पानी के 70 फीसदी हिस्से को कृषि के  लिए उपयोग कर रहे हैं।

एक तरफ जहां बढ़ती इंसानी आबादी के चलते कृषि पर लोगों के पेट भरने का दबाव बढ़ता जा रहा है। ऊपर से पालतू जानवरों के लिए जिस तरह आहार की मांग बढ़ रही है, उसके चलते प्राकृतिक संसाधनों पर बढ़ते दबाव को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

शोधकर्ताओं के पालतू जानवरों के मालिक उन्हें ज्याद तरल युक्त गीला भोजन देने की जगह सूखा भोजन भी दे सकते हैं। जो पर्यावरण पर बढ़ते दबाव और उत्सर्जन को सीमित करने में मददगार हो सकता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि पालतू जानवरों के आहार में छोटा सा भी बदलाव उसके कार्बन फुटप्रिंट को बड़े पैमाने पर कम कर सकता है। साथ ही इससे अन्य संसाधनों के उपयोग में भी कमी लाई जा सकती है।