हिमाचल के किसान-बागवानों को इस बार मौसम की दोहरी मार का सामना करना पड़ रहा है। खरीफ सीजन के दौरान भारी बारिश और प्राकृतिक आपदाओं के कारण किसान बागवानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। वहीं पोस्ट मॉनसून सीजन में अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर माह में सूखे के हालात बने होने के कारण रबी सीजन में भी किसानों की दिक्कतें बढ़ गई हैं।
हिमाचल प्रदेश में 80 फीसदी से अधिक कृषि भूमि बारिश आधारित है। ऐसे में बारिश ने होने की वजह से किसानों को अभी से ही कम पैदावार को लेकर चिंता सताने लगी है। नवंबर माह में पूरे हिमाचल में सामान्य से माइनस 38 और दिसंबर माह में माइनस 85 फीसदी बारिश दर्ज की गई है।
इसके अलावा पिछले कुछ वर्षों से पोस्ट मॉनसून सीजन में लगातार आ रही कमी को जानकार जलवायु परिवर्तन के असर के रूप में जोड़कर देख रहे हैं। मौसम विभाग के पिछले 20 वर्षों के आंकड़ों का आकलन करने पर पता चलता है कि 2004 से 2023 के बीच 20 वर्षों में अक्टूबर माह में केवल 4 वर्षों में सामान्य या सामान्य से अधिक बारिश देखी गई है।
गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश में अक्टूबर और नवंबर माह में रबी की फसलों की ज्यादातर बिजाई होती है, ऐसे में इन महीनों में बारिश होना बहुत अधिक जरूरी समझा जाता है।
इसके अलावा यदि पिछले 20 वर्षों में नवंबर माह में बारिश के आंकडे़ को देखें तो इनमें भी केवल 4 बार ही सामान्य या इससे अधिक बारिश देखी गई है और बाकि के 16 सालों में बारिश में कमी देखी गई है। वहीं दिसंबर माह के आंकड़ों की बात करें तो इसमें भी केवल चार वर्षों में ही सामान्य बारिश देखी गई है।
शिमला जिले के किसान मुनी लाल ने डाउन टू अर्थ को बताया कि इस बार किसानों पर दोहरी मार पड़ी है। पहले अधिक बारिश होने की वजह से किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा और अब सूखे ने सताया है। पिछले दो दशकों से बारिश को लेकर अनिश्चितता की स्थिति पैदा हुई है।
उन्होंने बताया कि इस बार समय पर बारिश ने होने की वजह से हमारे गांव मंदया के ज्यादातर किसानों ने खेतों में गेंहू और अन्य रबी फसलों की बुआई ही नहीं की है। इसके अलावा जिन किसानों ने बुआई की भी थी उनमें बहुत कम बढ़वार है। अच्छी बारिश होने पर हम अपने 20 खेतों में गेहूं की बुआई करते थे लेकिन इस बार हमने केवल 4 ही खेतों में गेहूं की बिजाई की है।
पोस्ट मानसून सीजन में बारिश की कमी की वजह से हिमाचल के बागवान भी परेशान हैं। शिमला जिला के सेब बागवान रोहित शर्मा डाउन टू अर्थ से कहते हैं कि पोस्ट मॉनसून सीजन के दौरान और इसके बाद सेब के लिए बारिश और बर्फबारी होना बहुत जरूरी है।
वे कहते हैं कि इस दौरान बागवान सेब के पौधों की कटाई-छंटाई के साथ उनमें खाद डालने और गुड़ाई करने का काम करते हैं, लेकिन जिस तरह का सूखा मौसम आजकल बना है उसमें यदि किसान गुड़ाई करते हैं तो इससे मिट्टी की जो थोड़ी बहुत नमी बची है वह भी नहीं रहेगी और इससे फलों के पौधों को भारी नुकसान पहुंचेगा।
नौणी बागवानी विश्वविद्यालय में डायरेक्टर रिसर्च रह चुके और बागवानी विशेषज्ञ एसपी भारद्वाज ने डाउन टू अर्थ को बताया कि लंबे ड्राई स्पैल के चलते पौधे स्ट्रैस में हैं। लंबे समय से सूखे और बर्फबारी न होने की वजह से सेब की पैदावार में भारी असर पड़ेगा। इसके अलावा जो बागवान नए बाग लगाने की तैयारी में थे, उन्हें भी सूखे की वजह से दिक्कतों का सामना करना पड़ा है।
मौसम की मार का दंश झेल रहे हिमाचल के किसानों बागवानों को सरकारी आंकड़ों के अनुसार 511 करोड़ रूपये से अधिक का नुकसान उठाना पड़ा है। जबकि अधिक बारिश के कारण सेब बागवानी की पैदावार आधी रह गई थी जिससे प्रदेश के बागवानों को 2 हजार करोड़ से अधिक का नुकसान उठाना पड़ा है। इसलिए अब समय आ गया है कि पर्यावरण में आ रहे बदलावों को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण अनुकुल खेती पद्धतियों की ओर बढ़ा जाए साथ ही पर्यावरण को बचाने के प्रयासों में भी तेजी लाई जाए।