जलवायु

गर्म होते पानी से मछली के आकार पर पड़ रहा है अप्रत्याशित असर: अध्ययन

ग्लोबल वार्मिंग के कारण मछली जैसे जीव कम उम्र में तेजी से बढ़ेंगे लेकिन वयस्कों के रूप में उनका आकार छोटा होगा और मृत्यु दर भी बढ़ेगी

Dayanidhi

एक नए अध्ययन में पाया गया कि पानी में रहने वाले जीवों का गर्म पानी से इनके विकास में तो वृद्धि हुई, लेकिन इनकी मृत्यु दर भी बढ़ गई है। जिसकी वजह से छोटी और बड़ी मछलियों की आबादी बढ़ी है। खोज से पता चलता है कि, प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र पर बढ़ते तापमान के प्रभाव के सामान्य पूर्वानुमानों के साथ समस्याएं भी सामने आई हैं। शोध में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि बढ़ते तापमान के असर को लेकर, इनका बड़े पैमाने पर परीक्षण करने की जरूरत है। 

क्योंकि जलीय पारिस्थितिकी तंत्र गर्म हो जाते हैं, यह अनुमान लगाया गया है कि मछली जैसे जीव कम उम्र में तेजी से बढ़ेंगे लेकिन वयस्कों के रूप में उनका आकार छोटा होगा। यह पैटर्न मुख्य रूप से छोटे पैमाने के प्रयोगों में देखा गया है, हालांकि कुछ अध्ययनों ने प्राकृतिक वातावरण में इस पूर्वानुमान का परीक्षण किया है।

परीक्षण ज्यादातर पकड़ी जाने वाली मछलियों की प्रजातियों पर किए गए हैं, जहां मछली पकड़ने की प्रक्रिया ही विकास दर और शरीर के आकार को प्रभावित कर सकती है।

स्वीडिश यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज, विभाग के शोधकर्ता मैक्स लिंडमार्क कहते हैं, बड़े पैमाने पर मछली पर गर्म पानी के प्रभावों का अध्ययन, प्राकृतिक परिस्थितियों में अर्ध-नियंत्रित प्रयोग बहुत कम हैं, फिर भी वे अनोखी जानकारी प्रदान कर सकते हैं। उन्होंने कहा, हमने यह जांचने के लिए एक अनूठी अध्ययन प्रणाली का उपयोग किया कि कई पीढ़ियों में मृत्यु दर, विकास दर और मछलियों के आकार में गर्म पानी ने कैसे बदलाव किया है।

टीम ने एक तटीय खाड़ी के निकट अध्ययन किया, जहां से परमाणु ऊर्जा संयंत्र को ठंडा पानी मिल रहा है, जो आसपास के पानी की तुलना में पांच से 10 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो जाता है। उन्होंने 24 साल की अवधि में खाड़ी के निकटवर्ती द्वीप समूह के क्षेत्र से मछली प्रजातियों की यूरेशियन पर्च से तुलना की।

उन्होंने उम्र के आधार पर मछलियों की लंबाई, कठोर संरचनाओं में "उम्र के छल्ले" से उनके पूरे जीवन भर का अनुमान लगाया, साथ ही इनके माप के साथ आंकड़ों को जोड़ा। फिर सांख्यिकीय मॉडल का उपयोग करके यह जांचने के लिए विश्लेषण किया कि गर्म जल ने मछली की आबादी,आकार, साथ ही साथ उनकी वृद्धि और मृत्यु दर उम्र को कैसे प्रभावित किया।

जबकि शोधकर्ताओं ने अनुमानित वृद्धि दर, मृत्यु दर और गर्म और संदर्भ क्षेत्रों के बीच मछली की आबादी के आकार में सांख्यिकीय रूप से उल्लेखनीय अंतर पाया, लेकिन ये सभी बदलाव उनकी अपेक्षा के अनुरूप नहीं थे। हालांकि, गर्म क्षेत्र में मादा पर्च तेजी से बढ़ी, जैसा कि टीम ने अनुमान लगाया था, उन्होंने जीवन भर ऐसा करना जारी रखा। इसलिए ये मछलियां संदर्भ क्षेत्र की तुलना में किसी भी उम्र में गर्म क्षेत्र में बड़े आकार-से-लगभग 7 से 11 फीसदी बड़ी हो गई।

इसके अलावा, शोधकर्ताओं का कहना है कि गर्म पानी के कारण छोटी मछलियों की वृद्धि दर में वृद्धि इतनी स्पष्ट थी कि भले ही मृत्यु दर गर्म होने के कारण अधिक रही हो। इसके कारण मछली की कुल आबादी कम हो गई, औसत आकार और बड़ी मछलियों की सापेक्ष अधिक संख्या गर्म क्षेत्र में अभी भी अधिक थी।

यह प्रवृत्ति इस बात का पूर्वानुमान के विपरीत है कि ग्लोबल वार्मिंग समय के साथ मछलियों को कम कर देगा, विशेष रूप से बड़ी और पुरानी मछली के सापेक्ष में, पारिस्थितिकी तंत्र के गर्म होने के बजाय इस अध्ययन में छोटी, लेकिन बड़ी मछलियां पैदा हुई।

सह-शोधकर्ता मालिन कार्लसन कहते हैं कि, हमारा अध्ययन दो दशकों से अधिक समय से पांच से 10 डिग्री सेल्सियस पानी के तापमान में वृद्धि के संपर्क में आने वाली एक गैर-शोषित समशीतोष्ण मछली प्रजातियों की प्राकृतिक आबादी पर आधारित है।

गर्मी के कारण वृद्धि और मृत्यु दर में आने वाले अंतर के लिए एक अहम सुराग प्रस्तुत करता है। ये प्रभाव बड़े पैमाने पर, लेकिन पूरी तरह से तो नहीं लेकिन एक-दूसरे का विरोध करते हैं, जबकि मछलियां छोटी होती हैं, वे औसतन बड़ी भी होती हैं। कार्लसन, स्वीडन के प्रकृति और पर्यावरण विभाग में जल प्रबंधक हैं।

स्वीडिश कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, जलीय संसाधन विभाग के प्रोफेसर अन्ना गर्डमार्क ने कहा, इन निष्कर्षों  से पता चलता है कि, तापमान और आकार से संबंधित नियम जैसे सिद्धांतों के आधार पर आबादी के स्तर पर बदलावों का पूर्वानुमान लगाने के लिए उपयोग सीमित हो सकता है। तापमान प्रभाव का अध्ययन करते समय मृत्यु दर और विकास दर दोनों पर गौर करना अहम है। 

उन्होंने कहा, हालांकि हमने केवल एक प्रजाति का अध्ययन किया है, यह अनूठा जलवायु परिवर्तन का प्रयोग पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर बढ़ते तापमान के प्रभावों को उजागर करता है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग को लेकर इसके निष्कर्ष अत्यधिक प्रासंगिक हो जाते हैं। यह अध्ययन ईलाइफ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।