जलवायु

बढ़ते तापमान के साथ शार्क जैसी कई शिकारी मछलियां खो देंगी अपने 70 फीसदी तक उपयुक्त आवास क्षेत्र

जलवायु में आता बदलाव समुद्री जीवों के लिए भी खतरा बनता जा रहा है, जिससे शार्क, टूना जैसी शिकारी मछलियां भी सुरक्षित नहीं हैं

Lalit Maurya

जलवायु में आता बदलाव समुद्री जीवों के लिए भी खतरा बनता जा रहा है, जिससे शार्क, टूना जैसे शिकारी भी सुरक्षित नहीं हैं। एक नई रिसर्च से पता चला है कि बढ़ते तापमान के साथ शार्क, टूना, मार्लिन और स्वोर्डफिश जैसी मछलियों अपने रहने के लिए उपयुक्त 70 फीसदी तक आवास क्षेत्रों को खो देंगीं। इसके कारण मजबूरन इन्हें मौजूदा बसेरों से दूर जाना पड़ेगा।

हालांकि यह बदलाव सदी के अंत तक पूरी तरह सामने आएंगें, लेकिन इनके प्रभाव अभी भी स्पष्ट तौर पर देखे जा सकते हैं। यह जानकरी वुड्स होल ओशनोग्राफिक इंस्टीट्यूशन, सैन डिएगो स्टेट यूनिवर्सिटी और एनओएए फिशरीज द्वारा किए नए अध्ययन में सामने आई है, जिसके नतीजे जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित हुए हैं।

यह अध्ययन प्रवासी शिकारी मछलियों की 12 प्रजातियों पर आधारित है, जिनमें शार्क, टूना, मार्लिन, स्वोर्डफिश और बिलफिश जैसी प्रजातियां शामिल हैं। गौरतलब है कि यह प्रजातियां न केवल पारिस्थितिक रूप से बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण हैं।

वर्त्तमान में यह प्रजातियां मुख्य रूप से उत्तर पश्चिमी अटलांटिक महासागर और मैक्सिको की खाड़ी में पाई जाती हैं। यह क्षेत्र बड़ी तेजी से गर्म हो रहे हैं। वैश्विक स्तर पर जिस तरह जलवायु में बदलाव आ रहे हैं उसके चलते समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर भी व्यापक असर पड़ रहा है। अनुमान है कि बढ़ते तापमान के चलते सदी के अंत तक इन क्षेत्रों में तापमान एक से छह डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा।

रिसर्च के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक कुछ मामलों में यह महत्वपूर्ण प्रजातियां सदी के अंत तक अपने 70 फीसदी से अधिक उपयुक्त आवास क्षेत्रों को खो सकती हैं। समुद्री पारिस्थितिकी विज्ञानी कैमरिन ब्रौन के नेतृत्व में किए इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दक्षिणपूर्व अमेरिकी और मध्य-अटलांटिक तटों के उन हॉटस्पॉट्स की पहचान की है जहां कई प्रजातियां अपना आवास क्षेत्रों को खो सकती हैं।

अध्ययन में शोधकर्ताओं ने तीन शार्क प्रजातियों (ब्लू, पोरबीगल और शॉर्टफिन माको), पांच टूना प्रजातियों (अल्बाकोर, बिगआई, ब्लूफिन, स्किपजैक और येलोफिन) और चार बिलफिश प्रजातियों (सेलफिश, ब्लू मार्लिन, व्हाइट मार्लिन और स्वोर्डफिश) पर ध्यान केंद्रित किया है। हालांकि इस अध्ययन में प्रजातियों की संभावित अनुकूलनशीलता या तापमान में आते बदलावों को सहने की क्षमता पर विचार नहीं किया गया, लेकिन रिसर्च अध्ययन की गई करीब-करीब सभी प्रवासी प्रजातियों के आवास क्षेत्रों को होने वाले व्यापक नुकसान का संकेत देती है।

इस अध्ययन में पिछले तीन दशकों के उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग किया है। वैज्ञानिकों ने इन आंकड़ों की मदद से उत्तर पश्चिमी अटलांटिक महासागर और मैक्सिको की खाड़ी में मछलियों की प्रजातियों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का मूल्यांकन करने के लिए गतिशील  मॉडल का निर्माण किया है।

निर्भर समुदायों पर भी मंडरा रहा खतरा

इस बारे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता और एनओएए फिशरीज की अटलांटिक हाई माइग्रेटरी स्पीशीज मैनेजमेंट डिवीजन में मत्स्य प्रबंधन के विशेषज्ञ टोबी कर्टिस का कहना है कि, "अध्ययन ने केवल इस बात की समझ देता है कि जलवायु में आता बदलाव महासागरों को कैसे प्रभावित कर रहा है। साथ ही यह महासागरों के संरक्षण और प्रबंधन में इन बदलावों के लिए की जाने वाली तैयारी के महत्व पर भी जोर देता है।" उनके अनुसार जैसे-जैसे प्रवासी मछलियां अपना स्थान बदल रही हैं, मछली पकड़ने वाली नौकाओं और तटीय समुदायों को भी उनके प्रति अनुकूल होना होगा।

रिसर्च के अनुसार इन प्रजातियों के आवास और वितरण में आ रहा बदलाव इनसे जुड़े समुदायों के लिए भी सामाजिक-आर्थिक चिंता का विषय है। प्रजातियों के वितरण में आने वाला बदलाव, इसके प्रबंधन के लिए बेहतर रणनीतियों की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है जो इन बदलावों का सामना करने में मददगार हो सकती हैं। 

अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता कैमरिन डी ब्रौन के अनुसार जलवायु में आते बदलावों के कारण जिस तरह मछलियां अपने मूल क्षेत्रों को छोड़ कर जा रहीं है उसके चलते मछली पकड़ने और उसके प्रबंधन के जो मौजूदा दृष्टिकोण हैं वो आर्थिक और पर्यावरणीय रूप से उतने प्रभावी नहीं रह जाएंगें।

ऐसे में शोध का उद्देश्य न केवल समुद्री जीवन और पारिस्थितिक तंत्र के बारे में हमारी समझ को बेहतर करना है। साथ ही यह भी समझना है कि यह बदलाव लोगों की जीविका और तटीय समुदायों और मछली पकड़ने से जुड़े व्यवसायों को कैसे प्रभावित करते हैं।

जर्नल ग्लोबल चेंज बायोलॉजी में प्रकाशित एक अन्य शोध के नतीजे दर्शाते हैं कि जलवायु में आते बदलावों से निपटने के लिए समुद्री मछलियां ध्रुवों की ओर शरण लेने को मजबूर हो रही हैं। देखा जाए तो ग्लोबल वार्मिंग की वजह से समुद्री जीवन में आया यह बदलाव, जमीनी जीवों की तुलना में सात गुणा अधिक तेजी से हुआ है।

जर्नल ग्लोबल चेंज बायोलॉजी में प्रकाशित एक अन्य शोध के नतीजे दर्शाते हैं कि जलवायु में आते बदलावों से निपटने के लिए समुद्री मछलियां ध्रुवों की ओर शरण लेने को मजबूर हो रही हैं। देखा जाए तो ग्लोबल वार्मिंग की वजह से समुद्री जीवन में आया यह बदलाव, जमीनी जीवों की तुलना में सात गुणा अधिक तेजी से हुआ है।

वहीं हाल ही में जर्नल नेचर में प्रकाशित एक अन्य शोध के हवाले से पता चला है कि समुद्री शार्क की 31 में से 16 प्रजातियां गंभीर खतरे में हैं जबकि इनकी तीन प्रजातियों समुद्री वाइटटिप शार्क, स्कैलप्ड हैमरहेड शार्क और ग्रेट हैमरहेड शार्क पर विलुप्त होने का गंभीर संकट मंडरा रहा है। वहीं एक अन्य शोध के मुताबिक पिछले 50 वर्षों में शार्क और रे मछलियों की आबादी 70 फीसदी से ज्यादा घट गई है।