जलवायु

तिब्बती ग्लेशियर की 15 हजार साल पुरानी बर्फ में मिले वायरस

Dayanidhi

आम तौर पर चीजों को खराब होने अथवा वायरस मुक्त रखने के लिए हम उन्हें फ्रीज़र में रख देते हैं, यदि उसी में वायरस पैदा हो जाए तो क्या होगा, इसी क्रम में शोधकर्ताओं ने तिब्बती ग्लेशियर में पाए गए वायरसों के बारे में खुलासा किया है।

अमेरिका स्थित ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी और लॉरेंस बर्कले नेशनल लेबोरेटरी के शोधकर्ताओं की एक टीम ने एक तिब्बती ग्लेशियर के बर्फ में प्राचीन वायरसों का एक समूह पाया है। उन्होंने अपनी खोज को बायोरेक्सिव प्रीप्रिंट सर्वर फॉर बायोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित किया है।

शोधकर्ताओं की एक टीम ने तिब्बती पठार में एक ग्लेशियर से बर्फ के टुकड़ों के नमूने एकत्र किए। उन्होंने जिस बर्फ की गणना की वह लगभग 15 हजार साल पुरानी थी। शोधकर्ताओं ने बर्फ के परीक्षण यह देखने के लिए किया कि इसमें किस प्रकार के जीव हो सकते हैं।

शोधकर्ताओं की एक अन्य टीम ने 2015 में उसी ग्लेशियर से बर्फ के टुकड़ों के नमूने एकत्र किए लेकिन बाद में इस पर अध्ययन टाल दिया गया। इसी तरह की कोशिश सन 1992 में भी की गई थी।

शोधकर्ताओं की दो टीमों ने बर्फ के टुकड़ों के नमूने एकत्र करने का प्रयास दो बार किया। पहली बार उन्होंने यह सुनिश्चित नहीं किया कि जिस उपकरण का वो उपयोग कर रहे थे, वे उन बर्फ के टुकड़ों के नमूने को दूषित नहीं करेंगे। इसका मतलब है कि इस नए प्रयास में शोधकर्ताओं को शुरुआत में ही दूषित करने वाली चीजों को हटाने पर विशेष ध्यान रखना था। 

शोधकर्ताओं ने प्राचीन नमूने को सबसे पहले फ्रीजर में रखा, रखने से पहले प्रत्येक टुकड़े की बाहरी परत को पहले काट दिया था, ताकि इसे दूषित होने से बचाया जा सके। प्रत्येक बर्फ के टुकड़ों को फिर से 0.2 इंच पिघलाने के लिए जीवाणुरहित (स्टेराइल) पानी से धोया गया। टीम ने बर्फ के टुकड़ों पर उसी सफाई प्रक्रिया को दोहराते हुए परीक्षण के नमूने भी बनाए, जो पहले से पहचाने गए वायरस और बैक्टीरिया से भरे हुए थे।

नए साफ किए गए बर्फ के टुकड़ों पर शोधकर्ताओं ने गौर किया तो इनमें वायरस के 33 समूहों की उपस्थिति का पता चला, जिनमें से 28 आधुनिक विज्ञान के लिए भी अनजाने हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि दो अलग-अलग जगहों से बर्फ के टुकड़ों में पाए जाने वाले वायरस एक दूसरे से भिन्न थे। शोधकर्ताओं का मानना था कि, हो सकता है कि, ये अलग-अलग समय में पैदा हुए हो, और जलवायु में अंतर भी एक कारण हो सकता हैं।

शोधकर्ताओं ने बताया कि, ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्रह का तापमान बढ़ता है, जिसके कारण ग्लेशियर पिघल जाते है, हो सकता है इस प्रक्रिया के दौरान घातक वायरस हट गए हों।