उत्तरकाशी में खीर गंगा या खीर गाड़ के उफ़ान में आने से धराली कस्बे में भारी तबाही हुई है। अब तक चार लोगों की मौत की पुष्टि हुई है। बड़ी संख्या में लोग लापता हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस घटना पर दुख व्यक्त किया है और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से बात कर घटना की जानकारी ली है।
एसडीआरएफ, एनडीआरएफ, स्थानीय पुलिस और प्रशासन राहत कार्यों में जुटे हैं। इस बीच मौसम विभाग का कहना है कि उत्तरकाशी में बादल फटना या अतिवृष्टि रिकॉर्ड नहीं की गई है। वहां हल्की से मध्यम बारिश की रिकॉर्ड हुई है।
ऐसे में सवाल उठता है कि कम बारिश के बावजूद खीर गंगा नदी इतना सारा मलबा लेकर क्यों आई? क्या यह नदी की प्रकृति की वजह से हुआ और क्या इस तबाही से बचा जा सकता था? हालांकि जानकार यह भी कह रहे हैं कि जो तबाही हुई उससे बचा नहीं जा सकता था।
राहत-बचाव कार्य जारी
मंगलवार दोपहर करीब डेढ़ बजे उत्तरकाशी के धराली कस्बे से बहने वाली खीर गंगा नदी में उफान आ गया। बहुत सारे गाद के साथ तेजी से बहती हुई खीर गंगा कस्बे में घुसी और तबाही मचा दी. इसका वीडियो सामने आने के बाद हलचल मच गई। स्थानीय पुलिस और प्रशासन के साथ ही एसडीआरएफ़, एनडीआरएफ की टीमें राहत और बचाव कार्य के लिए रवाना हो गईं।
उत्तरकाशी के जिलाधिकारी प्रशांत कुमार आर्य ने चार मौतों की पुष्टि की है। उत्तरकाशी के आपदा प्रबंधन अधिकारी करमवीर शर्मा के अनुसार अभी राहत और बचाव कार्य जारी हैं और फ़िलहाल नुक़सान का आकलन किया जाना संभव नहीं है। शर्मा के अनुसार जिलाधिकारी भी घटनास्थल के लिए निकले हुए हैं और खबर लिखे जाने के समय वह खुद रास्ता बंद होने के कारण एक जगह फंसे हुए थे।
हल्की बारिश, भारी तबाही
धराली में खीर गंगा के भारी मलबे के साथ तबाही मचाने का वीडियो सामने आने के साथ ही सोशल मीडिया और ख़बरों में बादल फटने से ज़लज़ला आने की बातें कही जाने लगीं। हालांकि डाउन टू अर्थ से बात करते हुए मौसम विज्ञान केंद्र देहरादून के प्रभारी इंचार्ज रोहित थपलियाल ने कहा कि उत्तरकाशी में अतिवृष्टि (या बादल फटने) रिकॉर्ड नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि उत्तरकाशी में हल्की से मध्यम बारिश ही दर्ज हुई है।
हालांकि उत्तरकाशी में करीब डेढ़ दशक तक रिपोर्टिंग करते रहे पत्रकार शैलेंद्र गोदियाल के अनुसार ऐसा नहीं है। वह कहते हैं कि पिछले दो दिन से वहां भारी बारिश हो रही है और उस पहाड़ी के लगभग सभी गाड़-गदेरे उफ़ान पर हैं। सिर्फ खीर गंगा नहीं, हर्षिल में आर्मी कैंप के पास स्थित तेल गंगा या तेलूगाड़ भी उफान पर है। सुक्की के सामने अवाना नदी भी उफान पर है। गोदियाल की बात की तस्दीक धराली गांव के एक निवासी ने भी की जो अब देहरादून में ही रहते हैं. उनके अनुसार वहां दो दिन से भारी बारिश हो रही है। लेकिन यह ‘भारी बारिश’ मौसम विभाग के रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है।
खीर की तरह बहती है और तबाही लाती है
शैलेंद्र गोदियाल बताते हैं कि खीर गंगा या खीर गाड़ का नाम इसकी प्रकृति की वजह से भी पड़ा है। यह बारामासा नदी जब भी उफान में आती है तो हमेशा अपने साथ भारी मलबा लेकर आती है और गाढ़ी खीर की तरह दिखती है। हर दो-तीन साल में यह नदी उफान पर आती है और उसके मलबे से तबाही मचती है। 2018 व 2021 में भी इस नदी ने धराली में काफ़ी नुकसान किया था।
भूगर्भ विज्ञानी प्रोफेसर एसपी सती इस बात की पुष्टि करते हैं। वह बताते हैं कि 1835 में खीर गंगा में सबसे भीषण बाढ़ आई थी। तब नदी ने सारे धराली कस्बे को पाट दिया था। आज जो भी बसावट है वह उस समय नदी के साथ आई गाद पर स्थित है।
प्रोफ़ेसर सती कहते हैं कि लोगों ने नदी के रास्ते पर भी कब्ज़ा कर लिया है और उस पर मकान, होमस्टे बना दिए हैं। शैलेंद्र गोदियाल कहते हैं कि स्थानीय लोग हर साल ज़िला प्रशासन से मांग करते हैं कि खीर गंगा की बाढ़ से बचाने के लिए केदारनाथ की तर्ज पर प्रोटेक्शन वॉल बनाई जाए लेकिन अब तक इस ओर ध्यान नहीं दिया गया।
क्यों आया मलबा
शैलेंद्र गोदियाल कहते हैं कि 2018 के बाद जिला आपदा प्रबंधन ने एक जांच की थी जिसमें पचा चला था कि धराली के ऊपर एक बुग्याल की जड़ों में कटाव हो रहा है। वह कहते हैं कि संभवतः इसी का मलबा नदी के साथ बहकर आया है।
प्रोफेसर सती कहते हैं कि या तो ऊपर पुराने ग्लेशियर का मलबा ठहरा हुआ है या कोई पहाड़ दरक रहा है जिसका मलबा नदी के साथ आया है। जैसे 2008 में रौठीगाड़, ऋषिगंगा में हुआ था, लगभग वैसी ही स्थिति थी।
लेकिन हल्का या मध्यम बारिश का पानी क्या इतना मलबा लेकर आ सकता है?
इसका जवाब अतिवृष्टि या बादल फटने की परिभाषा और बारिश की जगह के साथ बदल जाता है। मौसम विज्ञान की परिभाषा के अनुसार अतिवृष्टि (या बादल फटना) किसी एक जगह में एक घंटे की अवधि के दौरान 10 सेंटीमीटर बारिश होने को कहते हैं।
हालांकि मौसम विज्ञान केंद्र देहरादून के निदेशक रहे विक्रम सिंह ने एक बार कहा था कि पहाड़ों में पांच सेंटीमीटर बारिश भी मैदान की सेंटीमीटर बारिश से ज़्यादा तबाही ला सकती है. यह नदी या गदेरे की ढाल और उसके रास्ते में पड़ने वाली चीजों पर निर्भर करता है कि उससे क्या और कितना नुकसान होता है। खीर गाड़ या खीर गंगा का इतिहास भी इन बातों को उल्लेखनीय बनाता है।
क्या इस तबाही से बचा जा सकता था?
ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या इस तबाही से बचा जा सकता था? शैलेंद्र गोदियाल कहते हैं कि यह सही कि 1835 में आए मलबे पर ही धराली बसा है लेकिन यह इतनी पुरानी बात है कि शायद कब लोग जानते भी नहीं हैं। फिर लोगों के पास जमीन के मालिकाना हक हैं। उनके हिसाब से तो उन्होंने अपनी ज़मीन पर ही निर्माण किए हैं।
अलबत्ता अगर ज़िला प्रशासन और शासन नदी कि प्रकृति और उसके बहाव के पैटर्न को ध्यान में रखता और पोटेक्शन वॉल जैसे सुरक्षात्मक उपाय करता तो तबाही को कम किया जा सकता था, जो संभवतः बहुत ज़्यादा होने वाली है।
प्रोफ़ेसर सती इस बात से इत्तेफ़ाक नहीं रखते. वह कहते हैं कि वैसे तो ऐसे फ़्लैश फ़्लड से तो कोई नहीं बचा सकता। इसके अलावा सारा निर्माण नदी के मलबे पर, नदी के रास्ते पर किया गया है. वह तो जब भी नदी उफ़ान पर आएगी तो इसे ले ही जाएगी।
प्रोफेसर सती कहते हैं कि जो भी मुखबा से फ़ोटो लेता था उसे नज़र आ जाता था कि यह सब बह जाएगा। यह तो अवश्यंभावी था। यह आज नहीं जाता तो कल जाता लेकिन इसे जाना ही था।