केदारनाथ में भारी बारिश के चलते सड़कें कई जगह पूरी तरह कट गईं। यहां एनडीआरएफ और एसडीआरएफ ने केदारनाथ में फंसे यात्रियों को सुरक्षित निकालते के लिए रेस्क्यू अभियान चलाया। फोटो: X@NDRF
जलवायु

उत्तराखंड: कई जगह बादल फटने जैसे बने हालात, केदारनाथ में बहे रास्ते,विशेषज्ञों ने कहा- यह सब सामान्य नहीं

केदारनाथ में भारी बारिश के चलते सड़कें कई जगह पूरी तरह कट गईं। यहां एनडीआरएफ और एसडीआरएफ ने केदारनाथ में फंसे यात्रियों को सुरक्षित निकालते के लिए रेस्क्यू अभियान चलाया।

Varsha Singh

31 जुलाई की रात केदारघाटी में बारिश से बड़ा नुकसान हुआ। केदारनाथ मंदिर के लिए जाने वाले सोनप्रयाग और गौरीकुंड मार्ग के बीच कई जगह सड़क का नामोनिशान मिट गया। पैदल मार्ग भी कई जगह ध्वस्त हो गए। 

भारी भारिश के चलते नदी के कटाव और पहाड़ी दरकने से सोनप्रयाग मुख्य बाजार से तकरीबन 1 किलोमीटर आगे सड़क का काफी हिस्सा पूरी तरह बह गया। फिलहाल यहां किसी भी तरह की पैदल आवाजाही संभव नहीं रह गई। 

रुद्रप्रयाग जिले में एसडीआरएफ, एनडीआरएफ, डीडीआरएफ, पुलिस और जिला प्रशासन ने केदारनाथ यात्रा मार्ग पर लिनचौली, भीमबली, रामबाड़ा और सोनप्रयाग के आसपास फंसे करीब 1700 तीर्थ यात्रियों को सुरक्षित निकाला। इसके लिए वायुसेना के एक एमआई-17 विमान और चिनूक विमान की भी मदद ली गई।

बुधवार को हुई भारी बारिश से मंदाकिनी नदी का जलस्तर भी बढ़ गया। हालांकि यह भी खतरे के निशान से नीचे बह रही है।

देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र ने बुधवार के लिए राज्य के कई हिस्सों में भारी बारिश का रेड अलर्ट जारी किया था। आईएमडी के मुताबिक 31 जुलाई की सुबह 08:30 बजे से लेकर 1 अगस्त सुबह 08:30 बजे तक राज्य में सामान्य से 145% अधिक बारिश दर्ज की गई।

रुद्रप्रयाग जनपद में सामान्य से 16% अधिक बारिश हुई। लेकिन कुछ इलाकों में बारिश बेहद तेज़ थी। गौरीकुंड से करीब 78 किलोमीटर पहले जखोली में लगे वेदर स्टेशन में 59 मिलीमीटर (मिमी.) बारिश रिकॉर्ड की गई।

वहीं देहरादून में दो पॉकेट्स में 242 और 210 मिमी. बारिश रिकॉर्ड की गई। 31 जुलाई को गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र में 40 से लेकर 242 मिमी. तक बारिश रिकॉर्ड की गई।

केदारघाटी में अचानक आई तेज़ बारिश, सड़कें टूटने, दुकान बहने और मंदाकिनी नदी का जलस्तर बढ़ने से बादल फटने जैसे हालात हुए।

हालांकि देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र इसे बादल फटना नहीं मानता। आईएमडी में मौसम विज्ञानी रोहित थपलियाल के मुताबिक एक घंटे में 100 मिमी. से अधिक बारिश बादल फटने के तौर पर परिभाषित की जाती है। इस लिहाज से केदारनाथ में बादल नहीं फटा है। जबकि नैनीताल और देहरादून में एक घंटे में 50 मिमी. से अधिक बारिश जरूर मिली है। सोनप्रयाग में एक घंटे में 30 मिमी से अधिक बारिश हुई है।

थपलियाल कहते हैं कि उच्च पर्वतीय क्षेत्र की संवेदनशील भौगोलिक परिस्थितियों में कम बारिश में भी ज्यादा नुकसान होता है। सीधी ढलान और भूमि के आकार और मिट्टी की प्रकृति के चलते भूस्खलन होता है। जो नुकसान की वजह बनती है।

बारिश का बदलता पैटर्न जलवायु परिवर्तन के जोखिम को दर्शाता है। अल्मोड़ा के जीबी पंत इंस्टीट्यूट में सेंटर फॉर इनवायरमेंटल असेसमेंट एंड क्लाइमेट चेंज सेंटर के अध्यक्ष जेसी कुनियाल कहते हैं “पर्वतीय क्षेत्रों में कम समय में हो रही तेज़ बारिश के चलते नुकसान बढ़ गया है। केदार घाटी हिमनद के तलछट (मलबे) से बनी है। खड़ी ढलानों के चलते बारिश का पानी तेज़ी से आगे बढ़ता है। साथ ही चट्टानों के बीच क्षमता से अधिक पानी भर जाने पर वे टूटते हैं। इन सबके साथ ही माइक्रो क्लाइमेट कंडीशन का भी असर होता है”।  

“केदारनाथ क्षेत्र में पर्यटन बढ़ने, गाड़ियों की संख्या बढ़ने और मानवीय गतिविधियां बढ़ने से स्थानीय तौर पर बढ़े तापमान की भी अनदेखी नहीं की जा सकती”, कुनियाल आगे कहते हैं।

बुधवार की बारिश से केदारनाथ में हुए नुकसान ने वर्ष 2013 की आपदा की याद दिला दी। केदारनाथ समुद्र तल से 3,583 मीटर ऊंचाई पर है। जबकि केदारनाथ से 16 किलोमीटर पहले गौरीकुंड 1,982 मीटर ऊंचाई पर है। ग्लेशियर वैज्ञानिक और वाडिया भूविज्ञान संस्थान से सेवानिवृत्त डॉ डीपी डोभाल कहते हैं केदारनाथ की ऊंचाई पर बादल फटने की आशंका न के बराबर होती है। वर्ष 2013 की आपदा में भी बादल नहीं फटा था। तब भी लगातार और भारी बारिश से हिमनद के साथ गाद-गदेरों का जलस्तर बढ़ा दिया था।

सर्दियों का मौसम सिकुड़ने और गर्मी का समय बढ़ने के साथ बारिश का दायरा और तीव्रता दोनों बढ़ गई है। पहले जिन हिस्सों में बर्फ़ गिरा करती थी, वहां भी अब बारिश हो रही है। डॉ डोभाल कहते हैं “केदारनाथ के आसपास पहले बहुत बारीक बारिश होती थी। लेकिन अब इस क्षेत्र की संवेदनशील भू-परिस्थितियां भारी बारिश की मार झेल रही हैं”।

पहाड़ों में भारी बारिश अपने साथ जानमाल के नुकसान के खतरे को भी बढ़ा रही है। वाडिया भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ मनीष मेहता मौसमी बदलावों का ग्लेशियर पर पड़ने वाले असर के अध्ययन के लिए लद्दाख जाने की तैयारी कर रहे हैं। वह कहते हैं “युवा हिमालयी पर्वत श्रृंखलाएं भारी बारिश के लिए नहीं बनी हैं। वहां रिमझिम बारिश होनी चाहिए। इसे हम जलवायु परिवर्तन का असर कह सकते हैं कि पहाड़ों में गर्मी और बारिश दोनों की तीव्रता बढ़ रही है”।

31 जुलाई को उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के कई क्षेत्रों में बादल फटने जैसी सूचनाएं आईं। कल देर रात टिहरी के घनसाली ब्लॉक के जखन्याली के पास बादल फटने से एक होटल बह गया। जिसमें तीन लोग मारे गए। इसके साथ ही पशुहानि, एक पुलिया समेत सड़क समेत अन्य संपत्ति को भी काफी नुकसान पहुंचा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने आज आपदाग्रस्त इलाके का दौरा भी किया।

पौड़ी के थलीसैंण में भारी बारिश के बाद खेतों में आया मलबा

पौड़ी के थलीसैंण विकासखंड में भी स्थानीय लोगों ने बादल फटने जैसी स्थिति की सूचना दी है। इससे खेत, सड़क, बिजली के खंभों को नुकसान पहुंचा।

उत्तराखंड में इस वर्ष जून में सामान्य से कम बारिश दर्ज हुई। लेकिन जुलाई की बारिश मिलाकर एक जून से एक अगस्त के बीच बारिश सामान्य रिकॉर्ड हुई है। मौसम विभाग ने अगस्त और सितंबर में सामान्य से अधिक बारिश का अनुमान जताया है।

बीते 24 घंटों (31 जुलाई-1 अगस्त) के बीच हरिद्वार में 4, टिहरी में 3 और देहरादून में 2 लोगों की मृत्यु हुई। राज्य में इस साल 15 जून से 1 अगस्त तक बारिश के चलते 38 मौतें हो चुकी हैं। जबकि सड़क हादसों में 40 लोग जान गंवा चुके हैं।