जलवायु

अमेरिकी चुनाव 2020: जलवायु परिवर्तन को नकारने का ट्रंप ने बनाया इतिहास

Akshit Sangomla

जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हमेशा से सुर्खियों में रहे हैं। जबकि अमेरिका ग्रीनहाउस गैसों का सबसे बड़ा उत्सर्जक है, लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप हमेशा इस बात को नकारते रहे।

उदाहरण के लिए, नवंबर 2018 में जब सरकारी वैज्ञानिकों और अधिकारियों के 13 सदस्यीय एजेंसियों ने नेशनल क्लाइमेट असेसमेंट का एक पूरा वॉल्यूम जारी किया था, तब ही ट्रंप ने उसे पूरी तरह खारिज कर दिया था। इस रिपोर्ट में साफ तौर पर लिखा था, “20वीं सदी के मध्य में ग्लोबल वार्मिंग का जो सिलसिला शुरू हुआ था, इस बात के पर्याप्त प्रमाण है कि इसके लिए मानवीय गतिविधियां और ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन जिम्मेवार रहा। इसके अलावा कोई ठोस कारण नहीं दिखते हैं।”

तब ट्रंप ने एक अमेरिकी रिपोर्टर से कहा था, "मुझे विश्वास नहीं हो रहा है। नहीं, नहीं, मुझे इस पर विश्वास नहीं है। ”

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है: "1900 के बाद से वैश्विक औसत समुद्र स्तर लगभग सात-आठ इंच बढ़ चुका है, जो 1993 के बाद से लगभग तीन इंच बढ़ चुका है। इसमें मानवीय गतिविधियों के कारण हो रहे जलवायु परिवर्तन का पर्याप्त योगदान है। यह वृदि्ध पिछले 2800 सालों के मुकाबले काफी अधिक है। समुद्र के स्तर में वृद्धि की वजह से पहले ही अमेरिका काफी प्रभावित रहा है। और यहां की 25 से अधिक अटलांटिक और खाड़ी से सटे शहरों में ज्वारीय बाढ़ आदि की घटनाओं में तेजी हो रही है।”

लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कभी इस बात को गंभीरता से नहीं लिया। हालांकि उन्होंने हाल ही में एक बहस में माना कि पृथ्वी की जलवायु को बदलने में मनुष्यों की कुछ भूमिका है, लेकिन यह कहने में उन्होंने काफी देर कर दी। चार साल के उनके कार्यकाल के दौरान काफी नुकसान हो चुका है।

शुरुआत से ही, ट्रंप प्रशासन ने कई ऐसे कदम उठाए, जो जलवायु विज्ञान के अनुकूल नहीं थे। इनमें से एक बहुत चर्चित रहा, जब उन्होंने एनवायरमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी (ईपीए) के वैज्ञानिकों और कर्मचारियों के लिए आदेश जारी करते हुए उन्हें किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम में शामिल होने से रोक दिया।

तब से, कई वैज्ञानिकों ने शिकायत की कि ट्रंप प्रशासन उन्हें दरकिनार कर रहा है और यहां तक ​​कि बोलने के लिए भी उन्हें पदावनत तक किया गया। इसके बाद, ट्रंप प्रशासन ने जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को कई सरकारी वैज्ञानिक और नीति रिपोर्टों से ही हटा दिया।

ट्रंप प्रशासन के इस रवैये के लिए अमेरिका के वैज्ञानिकों ने स्वतंत्र जलवायु डेटा के प्रति प्रेरित किया, क्योंकि वैज्ञानिकों को लगता था कि ट्रंप शासन की वजह से जलवायु डेटा हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।

पिछले चार वर्षों के दौरान, जलवायु परिवर्तन पर रिसर्च करने वाले संगठनों को काफी नुकसान पहुंचा। उनमें कई कम प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों का दखल बढ़ा और वरिष्ठ वैज्ञानिकों को हटा दिया गया। इनमें से सबसे विवादास्पद एंड्रयू व्हीलर थे, जिन्हें ट्रंप ने ईपीए का प्रशासक नियुक्त किया था।

एंड्रयू ने रेग्युलेटरी साइंस में पारदर्शिता को मजबूत करने वाले नियमों को कमजोर करने का काम किया।

इसके अलावा भी कई महत्वपूर्ण वैज्ञानिक पैनल और समितियों को ट्रंप प्रशासन ने काफी नुकसान पहुंचाया।

5 अक्टूबर, 2020 को जर्नल नेचर ने एक बड़ा कदम उठाते हुए एक लेख प्रकाशित किया, जिसमें साफ तौर पर ट्रंप द्वारा विज्ञान को पहुंचाए गए नुकसान का पूरा ब्यौरा दिया गया और कहा गया कि विज्ञान को हुई इस नुकसान की भरपाई में कई दशक लग जाएंगे।

मई 2019 में, ट्रम्प ने आर्कटिक क्षेत्र में तेजी से बर्फ के पिघलने पर एक सांकेतिक हस्ताक्षर करने से तब तक इनकार कर दिया, जब तक कि जलवायु परिवर्तन के संदर्भों को इससे हटा नहीं दिया गया। इससे एक ऐसी स्थिति पैदा हुई, जहां अमेरिका वैज्ञानिक सबूतों के आधार पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की भविष्यवाणियों पर काम नहीं कर पाएगा।

अमेरिका के मैरीलैंड विश्वविद्यालय के जलवायु वैज्ञानिक रघु मुर्तुगुडे कहते हैं कि रिपब्लिकन पार्टी ने जीवाश्म ईंधन उद्योग के साथ पक्षपात किया है और मतदाताओं के बीच जलवायु कार्रवाई के व्यापक समर्थन की अनदेखी की। डोनाल्ड ट्रंप ने इस मुद्दे को व्यक्तिगत तौर पर ले ले लिया, क्योंकि इस व्यापार से उनके व्यक्तिगत रिश्ते हैं।

रघु कहते हैं कि इसी सोच के चलते ट्रंप ने जलवायु से संबंधित सभी रिसर्च और कार्ययोजनाओं को रोक दिया, बल्कि कई पर्यावरणीय नियमों को भी रद्द कर दिया है, ताकि उद्योगों के लिए काम करना आसान हो सके। बेशक कोविड-19 के प्रति उनकी प्रतिक्रिया भी विज्ञान पर बड़ा हमला ही है, लेकिन जलवायु विज्ञान को ट्रंप ने सबसे बड़ा नुकसान पहुंचाया है।

गैर-लाभकारी संस्था क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क द्वारा जारी जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (सीसीआईपी) 2020 के अनुसार, जलवायु परिवर्तन संबंधी नीतियों के मामले में संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रदर्शन सबसे खराब रहा है।

ऐसे में, यदि ट्रम्प 4 नवंबर को राष्ट्रपति चुनाव जीतते हैं, तो यह जलवायु विज्ञान अनुसंधान और मानवता के सभी के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है।