जलवायु

जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने के लिए बढ़ते मीथेन उत्सर्जन में तत्काल कटौती की है दरकार

नई रिसर्च से पता चला है कि मीथेन शमन में हर दशक की देरी, बढ़ते तापमान में करीब 0.1 डिग्री सेल्सियस की अतिरिक्त वृद्धि करेगी

Lalit Maurya

वैज्ञानिकों के अनुसार यदि पेरिस समझौते के तहत तय जलवायु लक्ष्यों को हासिल करना है, तो इसके लिए बढ़ते मीथेन उत्सर्जन में तत्काल कटौती की जरूरत है। इस बारे में साइमन फ्रेजर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किए नए अध्ययन से पता चला है कि मीथेन मिटिगेशन (शमन) में हर दशक की देरी बढ़ते तापमान में करीब 0.1 डिग्री सेल्सियस की अतिरिक्त वृद्धि करेगी।

अध्ययन के नतीजे जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुए हैं। गौरतलब है कि वैश्विक स्तर पर बढ़ता मीथेन पहले ही सुरक्षित सीमा को पार कर गया है। नेशनल ओसेनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) की ग्लोबल मॉनिटरिंग लेबोरेटरी द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक मार्च 2023 में मीथेन का स्तर बढ़कर 1920.74 पार्ट्स प्रति बिलियन (पीपीबी) पर पहुंच गया है।

वहीं वातावरण में मौजूद मीथेन का स्तर 2021 में बढ़कर 1,895.7 पीपीबी पर पहुंच गया था, जोकि औद्योगिक काल से पहले की तुलना में करीब 162 फीसदी ज्यादा है। इतना तेजी से बढ़ता मीथेन जलवायु को भी बुरी तरह प्रभावित कर रहा है।

जलवायु के दृष्टिकोण से यह गैस कितनी अहम् है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ग्लोबल वार्मिंग के मामले में यह कार्बन डाइऑक्साइड से करीब 28 गुना अधिक शक्तिशाली है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की मानें तो औद्योगिक क्रांति के बाद से वैश्विक तापमान में जितनी वृद्धि हुई है उसमें मीथेन का योगदान कम से कम तीस फीसदी है।

जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने में मीथेन है अहम

अध्ययन के अनुसार यदि पेरिस समझौते के तहत 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को हासिल करना है तो 2050 या उसके आसपास कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को शून्य करने और मीथेन के साथ अन्य गैसों के होते उत्सर्जन में भारी कटौती की जरूरत है। निष्कर्ष दर्शाते हैं कि यदि 2030 से पहले वैश्विक स्तर पर मीथेन के शमन से जुड़े प्रयास शुरू कर दिए जाते हैं, तो बढ़ते तापमान को दो डिग्री सेल्सियस पर पहुंचने से रोका जा सकता है।

शोध में यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि यदि मीथेन शमन से जुड़े प्रयासों को 2040 या उसके बाद के लिए स्थगित कर देते हैं, तो इस बात की कहीं ज्यादा आशंका है कि बढ़ता तापमान दो डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाएगा। भले ही हम शुद्ध-शून्य कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल कर लें।

जर्नल एनवायर्नमेंटल रिसर्च कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित एक शोध के हवाले से पता चला है कि यदि मीथेन को नियंत्रित करने के प्रयास न किए गए तो 2050 तक इसके वैश्विक उत्सर्जन में 30 फीसदी की वृद्धि हो सकती है।

यदि पिछले 200 वर्षों के आंकड़ों को देखें तो कार्बन डाइऑक्साइड के बाद मीथेन दूसरी ऐसी गैस है जो बढ़ते तापमान के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेवार है। रिसर्च के मुताबिक पिछले चार दशकों में, वैश्विक स्तर पर हुए कुल मीथेन उत्सर्जन के 60 फीसदी से अधिक के लिए जीवाश्म ईंधन का बढ़ता उपयोग, मवेशी, कृषि और बढ़ता कचरा जैसी मानवीय गतिविधियां जिम्मेवार थी।

40 फीसदी उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार है कृषि

आंकड़ों के अनुसार इन्सानो द्वारा जो मीथेन उत्सर्जित हो रही है उसमें कृषि का योगदान करीब 40 फीसदी है। इसके बाद जीवाश्म ईंधन 35 फीसदी और कचरा 20 फीसदी उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार है।

मीथेन के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि यह गैस कार्बन डाइऑक्साइड की तरह लम्बे समय तक वातावरण में नहीं रहती और बहुत जल्द खत्म हो जाती है। गौरतलब है कि जहां सीओ2 को वातावरण से अपने आप खत्म होने में कई सदियां लग जाती हैं, वहीं मीथेन केवल दस वर्षों में ही खत्म होने लगती है।

इसका मतलब कि यदि मीथेन उत्सर्जन में कटौती की जाए तो इसकी मदद से बहुत जल्द तापमान में हो रही वृद्धि की दर को कम किया जा सकता है। हालांकि कॉर्बन डाइऑक्साइड की तुलना में मीथेन, 84 गुना ज्यादा गर्मी पैदा करती है, जिस कारण यह वातावरण को गर्म करने वाली सबसे महत्वूपर्ण गैस बन जाती है। इतना ही नहीं मीथेन का ऑक्सीकरण, जमीनी स्तर पर ओजोन (धुंध) के लिए जिम्मेवार है, जोकि एक हानिकारक वायु प्रदूषक है।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि इस दशक में मानव द्वारा उत्सर्जित मीथेन को 45 फीसदी तक कम किया जा सकता है। यह कटौती 2045 तक तापमान में होने वाली वृद्धि को 0.3 डिग्री सेल्सियस तक कम कर सकती है। देखा जाए तो इसकी मदद से पैरिस समझौते के 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को हासिल करने में काफी मदद मिलेगी।

लाखों लोगों की जिंदगियां बचा सकती है उत्सर्जन में कटौती

इतना ही नहीं यह कटौती हर साल करीब 2.6 लाख लोगों की जान बचा सकती है। इसकी मदद से जहां अस्थमा के मामलों में करीब 7.8 लाख की कमी आएगी। इस कटौती से जहां हर साल 2.5 करोड़ टन कृषि उत्पादन के नुकसान को टाला जा साथ है। साथ ही इसके कारण भीषण गर्मी के कारण बर्बाद होने वाले मानव श्रम के 7,300 करोड़ घंटों को भी बचाया जा सकता है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन का कहना है कि, "अगले 25 वर्षों में जलवायु परिवर्तन को धीमा करने का सबसे अच्छा तरीका मीथेन उत्सर्जन में कटौती करना है।"

गौरतलब है कि बढ़ते तापमान में मीथेन की भूमिका को देखते हुए दो नवंबर 2021 को पहली बार कॉप-26 सम्मलेन में इसकी भूमिका को रेखांकित किया गया था, इससे पहले जलवायु परिवर्तन को लेकर होने वाले इस अंतराष्ट्रीय सम्मलेन में सारा जोर केवल  कॉर्बन उत्सर्जन में कटौती करने पर रहता था।

इस दौरान 105 देशों ने इसका उत्सर्जन कम करने के लिए संकल्प-पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। उन्होंने वादा किया कि वे 2030 तक मीथेन उत्सर्जन में 30 फीसदी की कमी करेंगे। हालांकि तीन बड़े उत्सर्जकों चीन, रूस और भारत ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किए थे।

अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता और साइमन फ्रेजर यूनिवर्सिटी में क्लाइमेट रिसर्च लैब के निदेशक कर्स्टन जिकफेल्ड का कहना है कि “ग्लोबल मीथेन प्रतिज्ञा से जुड़ी कार्रवाइयों में देरी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि हर साल मीथेन शमन में होती देरी से बढ़ते तापमान में और बढ़ोतरी हो रही है।“

जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने भी अपनी ताजा रिपोर्ट में पहली बार अल्प-कालिक प्रदूषक के तौर पर मीथेन का उल्लेख किया है, जिसे बढ़ते तापमान को सीमित करने के लिए लक्षित किया जाना चाहिए। इसमें कहा गया है कि अगले बीस वर्षों में धरती को गरम होने से रोकने में मीथेन उत्सर्जन को कम करना काफी महत्वूपर्ण हो सकता है।