रुद्रप्रयाग में केदारनाथ मार्ग मलबा आने से बंद हो गया। फोटो: सोशल मीडिया 
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उत्तराखंड में बेमौसमी भारी बारिश: ऑल वेदर रोड पर हादसे, फसलें बर्बाद

विशेषज्ञ का कहना है कि अब पश्चिमी विक्षोभ मार्च से जून तक सक्रिय हो रहे हैं। इस दौरान बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से आने वाली हवाएं भी इस क्षेत्र में आनी शुरू हो जाती हैं। जिससे बारिश के रफ्तार ज्यादा तेज हो जाती है।

Trilochan Bhatt

उत्तराखंड एक बार फिर बेमौसमी आपदा की चपेट में है। अप्रैल में  कई जगह सामान्य से कई गुना ज्यादा बारिश की वजह से पहाड़ी नाले उफान पर हैं और दुर्घटनाओं का कारण बन रहे हैं। ऑल वेदर रोड इस बारिश में एक बार फिर से बेहद असुरक्षित हो गई। पहाड़ से पत्थर गिरने से बाइक सवार एक पुलिसकर्मी की मौत हो गई। देवप्रयाग थाना क्षेत्र के अंतर्गत अलकनंदा नदी में एक गाड़ी के गिरने की घटना को भी असुरक्षित ऑल वेदर से रोड से जोड़कर देखा जा रहा है।   

9 अप्रैल को दोपहर बाद से अचानक राज्य के कई हिस्सों में तेज बारिश का दौर शुरू हो गया। इस दिन सबसे ज्यादा 57 मिमी बारिश मनेरी में दर्ज की गई। दूसरा नंबर चौखुटिया और बेरीनाग का रहा, जहां 25 मिमी बारिश हुई। गंगोलीहाट, पंतनगर, खटीमा, बनबसा, पिथौरागढ़, पौड़ी आदि स्थानों पर भी अच्छी-खासी बारिश दर्ज की गई। यह सिलसिला 10 अप्रैल को भी जारी रहा। इस दिन उत्तराकाशी के बीफ में सबसे ज्यादा 80 मिमी बारिश दर्ज की गई। 

कपकोट, लैंसडौन, चमोली, रानीखेत, चकराता आदि जगहों पर भी तेज बारिश हुई। चमोली के थराली में 10 अप्रैल को बारिश का सबसे ज्यादा असर दिखाई दिया। थराली बाजार के पास एक पहाड़ी नाले में उफान आने से कुछ गाड़ियां दब गई। राज्य में 10 अप्रैल को सामान्य से 427 प्रतिशत और 11 अप्रैल को सामान्य से 869 प्रतिशत ज्यादा बारिश हुई। इन दोनों दिनों में टिहरी, अल्मोड़ा, बागेश्वर और चमोली जिलों में सामान्य से 1000 से 4000 प्रतिशत तक ज्यादा बारिश दर्ज की गई।

11 अप्रैल की दोपहर तक राज्य के ज्यादातर हिस्सों में मौसम साफ था। दोपहर बाद बारिश का दौर शुरू हुआ तो राज्य के लभगग सभी हिस्सों में इसका असर देखा गया। सबसे ज्यादा 49.0 मिमी बारिश टिहरी जिले के रानीचौंरी में हुई। टिहरी, मसूरी, चौखुटिया, सोमेश्वर, घनसाली आदि जगहों पर भी 11 अप्रैल दोपहर बाद से 12 अप्रैल की सुबह तक बारिश का सिलसिला जारी रहा। राज्य की राजधानी देहरादून में गरज-चमक के साथ ओले गिरे और 9.4 मिमी बारिश दर्ज की गई। 11 अप्रैल को रुद्रप्रयाग जिले के भीरी और चमोली जिले के नन्दप्रयाग में पहाड़ी नालों का रौद्र रूप देखने को मिला, जिससे कुछ जगहों पर वाहन बह गये या मलबे में गये।

उत्तराखंड की चारधाम यात्रा शुरू होने से ठीक पहले हुई यह बेमौसमी बारिश चारधाम सड़क परियोजना, जिसे ऑल वेदर रोड कहा जाता है, की परीक्षा लेने में भी सफल रही। कहना न होगा कि इस परीक्षा में चारधाम सड़क परियोजना बुरी तरह फेल हुई है। चारधाम रोड पहले आमतौर पर बरसात के मौसम में ही बंद होती थी, लेकिन जबसे पहाड़ों को काटकर इसे ऑल वेदर रोड बनाने का दावा किया गया, तब से इस रोड पर भी सूखे मौसम में भी पत्थर गिरते रहते हैं। बारिश होते ही यह सिलसिला तेज हो जाता है। 10 अप्रैल की बारिश के बाद बदरीनाथ हाईवे पर तीन धारा के पास पहाड़ से गिरे पत्थर की चपेट में आने से एक पुलिसकर्मी की मौत हो गई। 12 अप्रैल की सुबह भी देवप्रयाग के पास एक कार नदी में समां गई। हालांकि इस घटना के कारणों का अभी तक पता नहीं चला है, लेकिन इसके पीछे भी असुरक्षित ऑल वेदर रोड को प्रमुख कारण माना जा रहा है। 

आशंका है कि अचानक पत्थर गिरने से ड्राइवर ने बचाव के प्रयास किया होगा और कार सड़क से नीचे नदी में गिर गई होगी। इस घटना में दो बच्चे, दो महिलाएं और कार का ड्राइवर लापता हैं। कार सवार एक महिला को रेस्क्यू कर अस्पताल में भर्ती कर दिया गया है। 12 अप्रैल की सुबह गंगोत्री हाईवे पर भी मलबा आने से एक यात्री बस एक ट्रक फंस गये। बस में सवार लोगों को सुरक्षित निकाल दिया गया है।

बेमौसमी बारिश के कारण राज्य में गेहूं की फसल के साथ ही फलों को भारी नुकसान पहुंचा है। नैनीताल जिले के रामगढ़ में फल उत्पादन करने वाले बच्ची सिंह बिष्ट का कहना है यह मौसम फलों के पेड़ों में फूल निकलने का मौसम है। सेब प्रजाति के साथ ही इस मौसम में संतरा प्रजाति के फलों के भी फूल निकलते हैं। लेकिन तेज बारिश और ओले गिरने से भारी मात्रा में फूल गिर गये हैं। इससे फलों के उत्पादन का असर पड़ेगा। पिथौरागढ़, बेरीनाग, चकराता और जोशीमठ जैसे फल उत्पादक क्षेत्रों में भी बारिश और ओलों से पेड़ों पर लगे फूल और फल गिर गये हैं। अनुमान है कि बारिश ने शुरुआती दौर में ही फलों के उत्पादन को 30 प्रतिशत तक कम कर दिया है। फलों के साथ ही गेहूं के फसल को भी बारिश से नुकसान हुआ है।

पश्चिमी विक्षोभ में आया बदलाव

अब सवाल उठता है कि इतनी तेज बेमौसमी बारिश आने का वजह क्या है। जाने-माने पर्यावरणविद् डॉ. रवि चोपड़ा ने इस बारे में डाउन टू अर्थ के साथ विस्तार से बातचीेत की। उन्होंने कहा कि पश्चिमी विक्षोभ के कारण ठंड के मौसम में बारिश होती थी और ऊंची पहाड़ियों पर बर्फ गिरती थी। हाल के सालों में हम देख रहे हैं कि सर्दी के मौसम में बारिश आनी बहुत कम हो गई है और पश्चिमी विक्षोभ मार्च से जून तक सक्रिय हो रहे हैं। इस दौरान बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से आने वाली हवाएं भी इस क्षेत्र में आनी शुरू हो जाती हैं। इन हवाओं और पश्चिमी विक्षोभ के मिलने से बारिश के रफ्तार ज्यादा तेज हो जाती है। कुछ-कुछ जगहों पर यह बारिश इतनी तेज होती है कि बादल फटने जैसी स्थिति पैदा हो जाती है।

डॉ. रवि चोपड़ा के अनुसार उत्तराखंड में जिस तरह से अवैज्ञानिक तरीके से विकास हुआ है और विकास के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ और जंगल काटे गये हैं, उससे बारिश ज्यादा तबाही मचा रही है। पेड़ और जंगल होने से तेज बारिश के दौरान बूंदंे पेड़ों की पत्तियों और टहनियों से टकराकर जमीन पर गिरती थी। जिससे जमीन में आने तक उनकी तीव्रता खत्म हो जाती थी। लेकिन पेड़ न रहने के कारण बारिश की बूंदंे पूरी तेजी के साथ नंगी धरती पर गिरती हैं और धरती से मिट्टी उखाड़ देती हैं। यही मिट्टी पानी के साथ मिलकल जब निचले क्षेत्रों में सड़क या घाटी तक पहुंचती है तो वहां तबाही मचाती है। वे कहते हैं हाल के वर्षों में उत्तराखंड में सड़कों का जाल बिछाया गया है। पुरानी बनी सड़कों को चौड़ी करने से लेकर दुर्गम क्षेत्रों तक सड़क पहुंचाने का काम हुआ है। लेकिन, इन सड़कों को बनाने में हमेशा जल्दबाजी की जाती रही है। सड़कें काटने में जो मलबा निकलता है, उसके निस्तारण की कहीं कोई व्यवस्था नहीं है। रिटर्निंग वाल भी ठीक से नहीं बनाई गई हैं। इससे बारिश होते ही मलबा पानी के साथ नीचे की ओर बहता है और तबाही मचाता है। वे कहते हैं कि पहाड़ी नालों में पहले तेज से तेज बारिश में भी सिर्फ पानी बहता था, लेकिन अब पेड़ काट दिये जाने और नये निर्माणों के कारण इस पानी से साथ भारी मात्रा में मिट्टी भी बहने लगती है। पहाड़ी नालों की धारण क्षमता इतनी नहीं होती कि पानी के साथ इस मिट्टी को भी बहाकर ले जा सकें। ऐसे में मलबे वाला यह पानी इधर-उधर से बहने लगता है और घरों, सड़कों और खेतों को नुकसान पहुंचाता है।