"ऐसा न हो कि हिमाचल प्रदेश नक्शे से ही गायब हो जाए!" सुप्रीम कोर्ट की इस तल्ख टिप्पणी ने एक बार फिर हिमाचल प्रदेश में बढ़ती आपदाओं पर न केवल प्रशासनिक लापरवाही और अनियोजित विकास कार्यों की पोल खोली है, बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रति सरकारों की उदासीनता को भी उजागर किया है।
अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लगभग डेढ़ महीने से भारी वर्षा का दौर के चलते आपदाओं में प्रदेश में 184 लोगों की जानें जा चुकी हैं, जबकि लगभग 1,714 करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान हुआ है।
हिमाचल प्रदेश राजस्व विभाग के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 4 अगस्त तक प्रदेश के 28 स्थानों पर बादल फटने की घटनाएं, 51 फ्लैश फ्लड (अचानक आई बाढ़) की घटनाएं और 45 स्थानों पर भूस्खलन हुए, जिससे जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ।
पिछले पांच वर्षों के मानसून सीजन के दौरान प्राकृतिक आपदाओं की वजह से हुए नुकसान के आंकड़ों पर गौर करें, तो इस वर्ष प्रदेश ने दूसरी बार सबसे अधिक क्षति झेली है। हालांकि अभी चालू मानसून सीजन के दो माह और शेष हैं।
2021 के मानसून सीजन में हुई आपदाओं में 476 लोग मारे गए और 1151 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। 2022 में 276 मौतें और 939 करोड़ रुपए का नुकसान, 2023 में 441 मौतें और 12,000 करोड़ रुपए का नुकसान, 2024 में 174 मौतें और 1,613 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था।
इस मानसून में खासकर मंडी, कुल्लू और ऊना जिले सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। इनके अलावा अन्य इलाकों में भी बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं लगातार हो रही हैं, जिससे सम्पूर्ण प्रदेश में तबाही का माहौल है।
बीते सप्ताह मंडी शहर में बादल फटने की घटना की वजह से शहर के सबसे पॉश इलाकों में से एक के जेल रोड इलाके में भी भारी नुकसान हुआ और तीन लोगों की मौत हुई। कुल्लू में मलाणा पावर प्रोजेक्ट के बांध को भारी नुकसान हुआ है।
मंडी जिला मानसून के कहर का सबसे बड़ा केंद्र रहा। खासकर जंजैहली क्षेत्र में बादल फटने की कई घटनाएं हुईं, जहां 1,000 से अधिक घरों को क्षति पहुंची है। जंजैहली क्षेत्र की रोड पंचायत में प्राकृतिक आपदाओं के कहर से 25 परिवारों का आशियाना उजड़ गया है।
रोड पंचायत के हेतराम ने डाउन टू अर्थ को बताया कि उनकी उम्र 50 वर्ष है और अपनी पूरी जिंदगी में उन्होंने कभी इतने भयानक हालात नहीं देखेबु। गांव में कई लोगों के घर और पूरी जमीनें भी बेकार हो चुकी हैं। अब लोगों के सामने आजीविका का संकट उत्पन्न हो गया है।
खास बात यह है कि अगर पूरे प्रदेश में बारिश के आंकड़ों की बात करें तो बारिश सामान्य से बहुत अधिक नहीं हुई है, लेकिन कुछ जिलों में यह बारिश सामान्य से बहुत अधिक है। मौसम विज्ञान केंद्र, शिमला के आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में अब तक सामान्य से 11 प्रतिशत अधिक बारिश दर्ज की गई है। प्रदेश में कुल 439 मिमी बारिश हुई है जबकि सामान्य मात्रा 396 मिमी है।
खासकर शिमला, मंडी, कुल्लू और उना जिलों में सामान्य से अधिक बारिश हुई है। मंडी जिले में इस मानसून में 53 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है, जहां कुल 947 मिमी बारिश रिकॉर्ड की गई, जबकि सामान्य बारिश 620 मिमी होती है। शिमला में सामान्य से 62 प्रतिशत अधिक 571 मिमी, कुल्लू में 43 प्रतिशत और उना में 45 प्रतिशत अधिक बारिश मिली है।
जुलाई महीने के आंकड़ों पर नजर डालें तो मंडी में 574 मिमी (सामान्य से 49 प्रतिशत अधिक), शिमला में 357 मिमी (सामान्य से 70 प्रतिशत अधिक), उना में 369 मिमी (सामान्य से 12 प्रतिशत अधिक) और कुल्लू में 230 मिमी (सामान्य से 25 प्रतिशत अधिक) बारिश हुई है। इस अत्यधिक बाढ़ और भू-जलस्तर की वृद्धि से न केवल भूस्खलन की घटनाओं को गति मिली है, बल्कि नदियों का रुख भी उफान पर है, जिससे आपदाओं का ग्राफ बढ़ा है।
आखिर ऐसा हो क्यों रहा है? विशेषज्ञ इसका कारण क्षेत्र में बढ़ती गर्मी को बता रहे हैं। जम्मू सेंट्रल यूनिवर्सिटी के लाइफ साइंस विभाग के प्रोफेसर और डीन सुनील धर ने डाउन टू अर्थ से कहा कि बदलते बारिश के क्रम और बादल फटने की घटनाओं के पीछे सबसे बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन है।
इस बार हिमाचल में पिछले 25 वर्षों में औसत तापमान सबसे अधिक था। इस वर्ष तापमान में असाधारण वृद्धि देखी गई। जब गर्म और नम हवा तेजी से ऊपर उठती है और ठंडी ऊंचाई पर पहुंचकर संघनित हो जाती है, जिससे अचानक और भारी बारिश होती है। इसे टॉरेंशियल रेन कहते हैं। हिमालयी घाटियों में यह प्रक्रिया और तीव्र होती है, क्योंकि गर्म हवा पहाड़ों के साथ ऊपर उठती है। परिणामस्वरूप, बहुत कम समय में अत्यधिक वर्षा होती है, कभी-कभी एक घंटे में 100 मिमी तक भी।सुनील धर
ऊना जिले की जनकोर पंचायत के किसान रविंद्र शर्मा ने डाउन टू अर्थ को बताया कि दो दिन पहले हुई बारिश में उनका पूरा पॉली हाउस, खेती-बाड़ी की सभी मशीनरी और पॉलीहाउस में खड़ी खीरे की तैयार फसल पूरी तरह बह गई है। रविंद्र ने कहा कि उनकी याददाश्त के अनुसार 1988 में ऐसी भारी बारिश हुई थी और अब इतने वर्षों बाद फिर ऐसी ही स्थिति बनी है।
मंडी जिले के 70 वर्षीय नरेश ठाकुर ने कहा कि अब बरसातें हमें डराने लगी हैं। इतनी तेज बारिश होने लगी है कि इससे लोगों में डर और घबराहट होती है। पिछले कुछ वर्षों में मौसम में भारी बदलाव देखा जा रहा है और प्राकृतिक आपदाओं की संख्या साल दर साल बढ़ रही है, जिससे लोगों के बीच तनाव भी बढ़ रहा है।
राज्य में जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ती आपदाओं के चलते प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने दिल्ली जाकर केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव से मुलाकात की। उन्होंने प्रदेश में हुए नुकसान की विस्तृत जानकारी दी और भूमि विहीन हुए लोगों के पुनर्वास के लिए वन भूमि आबंटित करने की मांग की है। यह कदम प्रभावित लोगों के पुनर्वास की दिशा में अहम साबित होगा क्योंकि बड़ी संख्या में लोग अपनी जमीन और घर गंवा चुके हैं।