योगेन्द्र आनंद / सीएसई
जलवायु

प्रकृति को नष्ट कर देगी ट्रंप की जलवायु नीति

ट्रंप जलवायु परिवर्तन के विचार की “सटीकता” को ही नष्ट करने की एक सोची-समझी रणनीति के तहत काम कर रहे हैं

Sunita Narain

डोनाल्ड ट्रंप ने वैश्विक मंच संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की 80वीं वर्षगांठ के अवसर पर दिए अपने भाषण में जलवायु परिवर्तन को एक “बड़ा धोखा” कहा है और साथ ही तत्काल कार्रवाई की वकालत करने वाले हम सब लोगों को धोखेबाज कहा है।

अपने भाषण में उन्होंने यूरोप की हरित ऊर्जा संक्रमण (ट्रांजिशन) की आलोचना करते हुए कहा कि इससे लागत बढ़ जाती है जो विकास की राह में रोड़ा बनेगी। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के विज्ञान को खारिज करते हुए कोयले को स्वच्छ घोषित किया। लेकिन मैं यह आपकी समझ को कम नहीं आंक रही और मेरे इस लेख का उद्देश्य आपको यह समझाना नहीं है कि ट्रंप गलत क्यों हैं।

हम जलवायु परिवर्तन की वास्तविकता जानते हैं क्योंकि चरम मौसम की घटनाएं हमारी दुनिया को तबाह कर रही हैं और अपने साथ आर्थिक तबाही और मानवीय त्रासदी ला रही हैं।

सवाल यह है कि जब ट्रंप संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपना वक्तव्य दे रहे थे तो असल में वह किसको संबोधित कर रहे थे? मेरे अनुसार चर्चा का विषय यही होना चाहिए। वह उस भव्य कक्ष में बैठे नेताओं से बात नहीं कर रहे थे, वे आप या मेरे जैसे लोगों से भी मुखातिब नहीं थे।

वह सीधे तौर पर बड़ी संख्या में आम मध्यम और मजदूर वर्ग के लोगों से बात कर रहे थे। ये लोग अमीर दुनिया और अमीर बनने की चाहत रखने वाली दुनिया, दोनों के निवासी हैं। ये जो मानते हैं कि वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था में उनके साथ धोखा हुआ है और उन्हें वंचित किया गया है।

उनके मन में (ट्रंप यह सुनिश्चित करना चाहेंगे कि यह संदेश उन तक पहुंचे) असल समस्या अप्रवासियों के “आक्रमण” की है, जिन्हें वे अपनी आजीविका छीनने के लिए जिम्मेदार मानते हैं। यह उन सरकारों के बारे में है जो कमजोर हैं और इसे बिना किसी विरोध के ऐसा होने दे रही हैं।

फिर इसे जीवनयापन की बढ़ती लागत व घटती वास्तविक मजदूरी और हरित परिवर्तन की लागत से जोड़ा जाता है। इसके बारे में ट्रंप का मत है कि यह पश्चिमी सभ्यता के पतन का कारण बनेगा। पारंपरिक प्रणालियों की तुलना में कम लागत पर और स्वच्छ ऊर्जा उत्पन्न करने वाली पवन चक्कियां जीवन स्तर को गिराने के लिए दोषी ठहराई जाती हैं।

वह चाहते हैं कि यह संदेश पूरी दुनिया में, विशेषकर पश्चिमी दुनिया में फैले ताकि लोग “वामपंथियों” (उनके शब्द हैं, मेरे नहीं) के खिलाफ हो जाएं। हमें संयुक्त राष्ट्र में उनके संदेश को लोगों को “दक्षिणपंथ” की ओर मोड़ने और सामाजिक न्याय तथा जलवायु कार्रवाई में विश्वास रखने वाली सरकारों से दूर करने के एक राजनीतिक प्रयास के रूप में देखना चाहिए।

मैं यह भी स्पष्ट कर दूं कि आर्थिक विकास को गति देने वालीवाली और मुक्त-व्यापार वैश्वीकरण व्यवस्था का निर्माता रही पश्चिमी दुनिया में अब गहरा आक्रोश है। ट्रंप इस आग में घी डाल रहे हैं ताकि वे पश्चिमी दुनिया की राजनीति में बदलाव ला सकें। कम से कम दुनिया के उन चंद हिस्सों में जो अभी भी उस बदलाव के लिए प्रतिबद्ध हैं जिसकी दुनिया को सख्त जरूरत है।

वह चाहते हैं कि ये सरकारें विफल हों ताकि बहुपक्षवाद, वैश्विक एकजुटता और जलवायु कार्रवाई के खिलाफ खड़ी पार्टियां जीत सकें। यह अभूतपूर्व पैमाने पर शासन परिवर्तन है। और ऐसा हो भी रहा है। यूरोप की महत्वाकांक्षी जलवायु नीति को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। यूरोपीय आयोग उत्सर्जन में कमी के अगले दौर के लक्ष्यों पर सहमति बनाने में विफल रहा है।

अब इन नीतियों का विरोध बढ़ रहा है और इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि ट्रंप की तरह ही जलवायु परिवर्तन से दूर रहने वाले दलों की ओर भी रुझान बढ़ रहा है। ट्रंप इस आंदोलन को तेज करना चाहते हैं ताकि दुनिया उनके साथ खड़ी हो। जलवायु परिवर्तन इस राजनीतिक खेल का एक ऐसा मोहरा बन गया है जो ऊर्जा और अन्य क्षेत्रों में कट्टर आर्थिक हितों से प्रेरित है।

ट्रंप के जलवायु एजेंडे को “कट्टरपंथी वामपंथी पागलों” का काम बताकर खारिज कर देना चाहिए। इसका मतलब यह है कि जो कोई भी जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न अस्तित्वगत संकट में या ऊर्जा प्रणालियों से उत्सर्जित प्रदूषण को साफ करने की आवश्यकता में विश्वास करता है, वह इस “जागृत” ब्रिगेड का हिस्सा है।

यह बाकी समाज को एक पक्ष लेने के लिए मजबूर करता है और कोविड-19 महामारी के दौरान या यहां तक कि जब ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ छोड़ने पर मतदान किया, तब भी यही हुआ। इससे मुद्दे को लेकर चल रही बहस विषाक्त हो जाती है और यह अभिजात वर्ग बनाम बाकी लोगों का मामला बनकर रह जाता है। इससे भी बदतर, यह विज्ञान और विशेषज्ञों को बदनाम करता है और ऐसा दिखता है मानों वे आम लोगों की दर्दनाक सच्चाइयों से पूर्णतया बेखबर हैं।

हमें इस ब्रांडिंग (प्रस्तुतिकरण) का विरोध करना होगा क्योंकि यह ट्रंप के अपमानजनक शब्दों से कहीं ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। उदाहरण के लिए पर्यावरणविदों के तौर पर हम जानते हैं कि भारत जैसे देशों में इस तरह की लेबलिंग हमारे संदेश और काम को कैसे कमजोर कर सकती है। जब हमें विकास-विरोधी कहा जाता है तो यह इस तथ्य को कमजोर करता है कि पर्यावरण और विकास एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

यही कारण है कि हमने सावधानीपूर्वक और जानबूझकर यह सुनिश्चित करने के लिए काम किया है कि जलवायु परिवर्तन नीतियां हमारे देशों की विकास रणनीतियों का हिस्सा हों। हमारे लिए प्रदूषण रहित आर्थिक विकास के रास्ते खोजना समझदारी का काम होगा।

हम यह जानते हैं और हम यह भी समझते हैं कि हमारी विभाजित और असमान दुनिया में जिसकी लाठी उसकी भैंस होती है। यह हमारे साझा घर यानी हमारे पृथ्वी ग्रह को नष्ट कर सकता है। इसलिए आइए दुनिया को संबोधित इस भाषण को सिर्फ ट्रंप का एक बड़बोलापन न समझें।

यह जलवायु परिवर्तन के विचार की “सटीकता” को ही नष्ट करने की एक सोची-समझी रणनीति है। डोनाल्ड ट्रंप का यूएन में संबोधन जलवायु परिवर्तन के विचार की “सही” प्रकृति को नष्ट करने के लिए एक सावधानीपूर्वक तैयार की गई रणनीति है।