त्रिपुरा में बाढ़ से लगभग 46,271 परिवार विस्थापित हुए हैं, तथा 17 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं। फोटो: मनोज गोगोई 
जलवायु

जलवायु परिवर्तन का जीता जागता उदाहरण है त्रिपुरा की बाढ़, विशेषज्ञों ने जताई चिंता

त्रिपुरा में वनों की कटाई, भूमि उपयोग में बदलाव, प्राकृतिक जल निकासी पर अतिक्रमण, बाढ़ से निपटने के लिए बुनियादी ढांचे के रखरखाव की कमी और ऊबड़-खाबड़ भूभाग के कारण बाढ़ अधिक घातक बनाया

Monoj Gogoi, Thomas Malsom

विशेषज्ञों ने त्रिपुरा में आई बाढ़ के लिए मानवजनित जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया है, जिसमें अब तक 31 लोगों की जान जा चुकी है।

त्रिपुरा अपनी भौगोलिक स्थिति और स्थलाकृति के कारण बाढ़ की चपेट में रहता है। हालांकि, इस बार भारी मॉनसूनी बारिश ने जो संकट पैदा किया है, वह बहुआयामी है। इसकी वजह से नदियां उफान पर हैं, भूस्खलन हुआ है और दर्जनों गांवों में अभूतपूर्व बाढ़ आई है।

राज्य में 20 अगस्त को एक दिन में रिकॉर्ड तोड़ 288.8 मिमी बारिश भी हुई।

भारी बारिश ने दक्षिण त्रिपुरा, खोवाई त्रिपुरा, पश्चिम त्रिपुरा और गोमती जिलों को प्रभावित किया। बाढ़ के कारण दक्षिण त्रिपुरा जिला सबसे ज्यादा प्रभावित है।

राज्य के राजस्व विभाग के अनुसार, सबसे गंभीर रूप से प्रभावित क्षेत्र दक्षिण त्रिपुरा में बागाफा (375.8 मिमी) और बेलोनिया (324.4 मिमी) और गोमती जिले में अमरपुर (307.1 मिमी) बारिश हुई है।

भारी बारिश के कारण हावड़ा, धलाई, मुहुरी, मनु और खोवाई जैसी प्रमुख नदियां खतरे के स्तर को पार कर गई हैं, जिससे निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा और बढ़ गया है।

उदाहरण के लिए, कैलाशहर में मनु नदी 20 अगस्त को सुबह 8 बजे 23.05 मीटर के महत्वपूर्ण स्तर को पार कर गई। बारिश के कारण हुए भूस्खलन में सात लोगों की जान चली गई, जबकि दो लोग अभी भी लापता हैं। नतीजतन, मरने वालों की संख्या बढ़ने की संभावना है।

बाढ़ ने आजीविका को भी नुकसान पहुंचाया है, जिससे कई लोगों को अपने घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है। 46,271 परिवार विस्थापित हुए हैं, 17 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं। कई विस्थापित परिवारों को सरकार और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा स्थापित राहत शिविरों में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।

टोकबुलु देबबर्मा ने डाउन टू अर्थ (डीटीई) को बताया, " “हमने पहले ऐसी स्थिति नहीं देखी है। हमने न केवल अपने घर खो दिए हैं, बल्कि हमारे मवेशी भी चले गए हैं।"

मवेशियों के नुकसान से किसानों को लंबे समय से वित्तीय संकट का सामना करना पड़ सकता है।

ओवरफ्लो हुआ डंबूर बांध

भारी बारिश के कारण त्रिपुरा के गंडाटविसा उप-मंडल और धलाई जिले में स्थित डंबूर बांध ओवरफ्लो हो रहा है और आस-पास के इलाकों में तबाही मचा रहा है। पड़ोसी बांग्लादेश, जो पहले से ही राजनीतिक संकट में उलझा हुआ है, भी पानी छोड़े जाने की शिकायत कर रहा है, जिसका दावा है कि उसके कई गांव और फेनी शहर बाढ़ की चपेट में आ गए हैं।

डंबूर बांध 1974 में बनाया गया था और हाल के दशकों में बारिश में वृद्धि ने अक्सर इसकी क्षमता को बढ़ा दिया है। तीन दशकों के बाद इस बार, अधिकारियों के पास जलाशय से अतिरिक्त पानी छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।

पिछली बार बांध से पानी 1993 में छोड़ा गया था। चूंकि बांध अब बिजली उत्पन्न नहीं करता है, इसलिए यह अनुमान लगाया जाता है कि इस पर लंबे समय से ध्यान नहीं दिया गया है या इसकी मरम्मत नहीं की गई है। गुमटी हाइडल प्रोजेक्ट के उप महाप्रबंधक ने डीटीई को बताया कि पानी छोड़ना मजबूरी था, क्योंकि जल स्तर 93.85 मीटर तक बढ़ गया था, जबकि खतरे का स्तर 94 मीटर है।

गोमती जिले के जिला मजिस्ट्रेट तारित कांति चकमा ने एक सलाह जारी की है, जिसमें गोमती नदी के किनारे रहने वाले लोगों से उचित एहतियाती उपाय करने का आग्रह किया गया है। लेकिन नदी के निचले इलाकों में रहने वाले ग्रामीण वस्तुतः अपने दम पर हैं।

ऐसे ही एक गांव में रह रहे 30 वर्षीय निवासी सौरव देबनाथ ने डीटीई को बताया, “हमने ऐसी बाढ़ कभी नहीं देखी थी। जब हम संकट से निपटने में लगे थे, तभी बांध से अचानक अतिरिक्त पानी आ गया। हमारा घर एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है और हमें अपनी सुरक्षा का भरोसा था। लेकिन जैसे ही बांध टूटा, पानी हमारे घर के पिछले हिस्से में आ गया और लोग घबराकर इधर-उधर भागने लगे।”

उन्होंने आगे कहा, “हम असहाय होकर देखते रहे, यह सोचते हुए कि शायद हमारा घर भी अगला संकट बन सकता है। आधी रात 12 बजे तक पानी बढ़ता रहा। मैं पूरी रात सो नहीं पाया।”

देबनाथ के अनुसार, पानी को 18 इंच नीचे जाने में 10 घंटे लगे। वर्तमान में, पानी लगभग पूरी तरह से कम हो चुका है।

उन्होंने बताया कि पूरे गांव में हम केवल टूटे हुए घर, तबाह हो चुके जंगल, रबड़ के बागान, कीचड़ से सने धान के खेत और भटकते, रोते, भोजन और पीने के पानी की तलाश करते हुए लोग देख सकते हैं।

गुमटी जिले के किला गांव की 55 वर्षीय शांति जमातिया ने तनाव और चिंता से भरी नजरों से डीटीई को बताया, “भारी बारिश के कारण हमारा तालाब और कृषि भूमि नष्ट हो गई। हमारे रबड़ के पेड़ भी क्षतिग्रस्त हो गए हैं। अब हमारे नुकसान की भरपाई कौन करेगा?”

स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं बढ़ीं

बाढ़ के पानी ने पीने के पानी के स्रोतों को भी दूषित कर दिया है, जिससे हैजा, दस्त और टाइफाइड जैसी जलजनित बीमारियों की चिंता बढ़ गई है।

लोगों के विस्थापन ने स्वच्छता और चिकित्सा सुविधाओं तक पहुंच के मामले में भी चुनौतियां पेश की हैं। राहत कार्यों में स्वेच्छा से शामिल 26 वर्षीय अंतरलीना भट्टाचार्जी ने डीटीई को बताया, “जब हम गांव में पहुंचे तो वहां लोग राहत सामग्री के लिए एक-दूसरे से होड़ कर रहे थे और हाथापाई भी हुई। यह एक निराशाजनक स्थिति थी। हमारे राहत पैकेज उन्हें संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त नहीं थे। और सबसे बुरी बात यह है कि अब उनके पास पीने के लिए साफ पानी नहीं है और उनमें से कई में पहले से ही जल जनित बीमारी के लक्षण दिखाई दे रहे हैं। जल स्तर बढ़ने के कारण, सांप बाहर निकल रहे हैं और सांप के काटने से भी खतरा बढ़ गया है।”

आपदा का विश्लेषण

त्रिपुरा में भारी बारिश और अभूतपूर्व बाढ़ जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों की एक दुखद याद दिलाती है। त्रिपुरा का ऊबड़-खाबड़ इलाका, पहाड़ियां और घाटियां, असमान स्थलाकृति और राज्य की अपर्याप्त जल निकासी प्रणाली की वजह से बाढ़ और भूस्खलन का खतरा ज्यादा दिखता है। अगरतला जैसे शहरी केंद्रों में स्थिति थोड़ी बेहतर है, जो जलभराव और परिवहन में कठिनाई से जूझ रहे हैं। वनों की कटाई और सुपारी जैसे नए मोनोकल्चर बागानों के साथ भूमि उपयोग पैटर्न में बदलाव के कारण पूर्वोत्तर राज्य में समस्याएं ज्यादा बढ़ गई हैं।