जलवायु में जिस तरह से बदलाव आ रहे हैं, उसे देखते हुए विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्लूएमओ) ने इस दिशा में तत्काल कठोर कार्यवाही की बात कही है। नई जारी रिपोर्ट स्टेट ऑफ ग्लोबल क्लाइमेट 2020 से पता चला है कि पिछले वर्षों की तरह ही 2020 में भी तापमान में हो रही वृद्धि जारी रही थी। रिकॉर्ड के अनुसार ला नीना के बावजूद भी 2020 अब तक का सबसे गर्म वर्ष था, जब तापमान में हो रही औसत वृद्धि 2016 और 2019 के बराबर रही थी। यदि 2020 के दौरान तापमान में हुई औसत वृद्धि को देखें तो वो पूर्व औद्योगिक काल से 1.28 डिग्री सेल्सियस ज्यादा थी। यही नहीं पिछला दशक (2011 से 20) इतिहास का अब तक का सबसे गर्म दशक था।
हालांकि पिछला वर्ष एक बुरे सपने के जैसा था। आज भी दुनिया के करोड़ों लोग कोरोना महामारी का असर झेल रहे हैं। वैक्सीन के बावजूद लगातार खतरा बढ़ रहा है। कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन ने उत्सर्जन पर भी असर डाला था पर वो इतना ज्यादा नहीं था कि तापमान में हो रही वृद्धि को रोकने में मदद कर सके। यही वजह थी कि 2020 में भी लॉकडाउन के बावजूद तापमान में हो रही वृद्धि जारी रही थी। रिपोर्ट के अनुसार 2020 में भी प्रमुख ग्रीनहाउस गैसों कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि दर्ज की गई है। वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा पहले ही 410 पीपीएम को पार कर चुकी है। मार्च 2021 में इसका औसत स्तर 417.64 पार्टस प्रति मिलियन (पीपीएम) रिकॉर्ड किया गया था जोकि अब तक का सबसे ज्यादा है।
आपदाओं का भी वर्ष रहा 2020
रिपोर्ट के अनुसार पिछले वर्ष दुनिया भर ने मौसम की चरम घटनाओं जैसे बाढ़, सूखा, तूफान, चक्रवात आदि का प्रकोप झेला था। जिसमें अमेरिका में आया हरिकेन, भारत में आए चक्रवात, ऑस्ट्रेलिया और आर्कटिक में हीटवेव, अफ्रीका और एशिया के बड़े हिस्सों में आई बाढ़ और अमेरिका के जंगलों में लगी आग प्रमुख घटनाएं थी।
2020 के दौरान अकेले उत्तरी अटलांटिक में 30 से ज्यादा तूफान रिकॉर्ड किए गए थे, जोकि औसत के दोगुने से भी ज्यादा थे। इन तूफानों में 400 से भी ज्यादा लोगों की जान गई थी और 3 लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा का नुकसान हुआ था। इस वर्ष सूडान और केन्या बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हुए थे। जहां केन्या में 285 और सूडान में 155 लोगों के मरने और 8 लाख से ज्यादा लोगों के प्रभावित होने की जानकारी मिली थी। भारत में भी 2020 में मानसून के दौरान औसत से 9 फीसदी ज्यादा बारिश रिकॉर्ड की गई थी। जिसके चलते बाढ़, भूस्खलन आदि घटनाएं सामने आई थी। मानसून के दौरान आई बाढ़ में भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और म्यांमार में 2000 से ज्यादा लोगों की जान गई थी।
भारत के लिए भी कोई खास अच्छा नहीं रहा 2020
रिपोर्ट ने 20 मई 2020 को बंगाल की खाड़ी में आए चक्रवात 'अम्फान' को रिकॉर्ड का सबसे महंगा उष्णकटिबंधीय चक्रवात माना था। जिसने भारत और बांग्लादेश पर बड़े पैमाने पर असर डाला था। इस तूफान में 129 लोगों की जान गई थी जबकि इसके चलते भारत को एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का आर्थिक नुकसान हुआ था। इसके कारण भारत में लगभग 24 लाख और बांग्लादेश में 25 लाख लोग विस्थापित हुए थे।
अफगानिस्तान में अगस्त के अंत में आई आकस्मिक बाढ़ ने 145 और म्यांमार में बारिश के चलते भूस्खलन के कारण खान ढहने के कारण 166 लोगों की मौत हुई थी। इसी तरह दक्षिण अमेरिका में उत्तरी अर्जेंटीना, उरुग्वे, पैराग्वे और पश्चिमी ब्राजील के सीमावर्ती क्षेत्रों में गंभीर सूखे की स्थिति देखी गई थी। उत्तरी अर्जेंटीना के हिस्सों के लिए यह पांच सबसे शुष्क वर्षों में से एक था जबकि ब्यूनस आयर्स के लिए यह दूसरा ऐसा वर्ष था जब सूखे की स्थिति इतनी गंभीर थी। इसके चलते अकेले ब्राजील में 22,420 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। रिपोर्ट के अनुसार भारी बारिश, बाढ़, तूफान और चक्रवात जैसी आपदाओं के चलते 2020 की पहली छमाही में 98 लाख लोग विस्थापित हुए थे।
डब्लूएमओ द्वारा जारी यह रिपोर्ट ऐसे समय में सामने आई है जब कुछ दिनों बाद ही अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन द्वारा आयोजित वैश्विक नेताओं की शिखर बैठक होनी है। इसके साथ ही यूके को नवम्बर 2021 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन (कोप-26) की मेजबानी करनी है। इन सभी बैठकों का मुख्य लक्ष्य पैरिस समझोते के लक्ष्यों को हासिल करना है और वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना है। हालांकि तापमान में हो रही वृद्धि पहले ही 1.2 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो चुकी है।
इससे पहले यूएन द्वारा प्रकाशित "एमिशन गैप रिपोर्ट 2020" से पता चला है कि यदि तापमान में हो रही वृद्धि इसी तरह जारी रहती है, तो सदी के अंत तक यह वृद्धि 3.2 डिग्री सेल्सियस के पार चली जाएगी। जिसके विनाशकारी परिणाम झेलने होंगे।
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने 2021 को कार्रवाई का वर्ष बताया है। उनके अनुसार जलवायु बदल रही है और इसकी बहुत ज्यादा कीमत धरती और यहां रहने वाले लोगों को चुकानी पड़ रही है। ऐसे में जरुरी है कि 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन में 45 फीसदी कमी लाने के लिए देश अपनी महत्वाकांक्षी योजनाएं कोप-26 से पहले जमा कर दें।
हाल ही में काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीइइडब्लू) द्वारा किए शोध से पता चला है कि भारत में 75 फीसदी से ज्यादा जिलों पर जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडरा रहा है। इन जिलों में देश के करीब 63.8 करोड़ लोग बसते हैं। ऐसे में भारत को भी बढ़ते खतरे से निपटने के लिए तैयार रहना होगा।