जलवायु

संसद में आज: साल 2080 तक वर्षा सिंचित चावल की पैदावार में 47 फीसदी तक की कमी आने की आशंका

Madhumita Paul, Dayanidhi

फसलें जो जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित होती हैं

संसद के शीतकालीन सत्र का आज छठवां दिन है, वहीं पांचवां दिन जहां महुआ मोइत्रा की संसद सदस्यता रद्द होने को लेकर काफी गहमागहमी रही। विपक्षी दलों ने सदन में हंगामा किया। लोकसभा की कार्यवाही को 11 दिसंबर यानी आज सुबह 11 बजे तक के लिए स्थगित कर कर दिया गया था। सदन में पूछे गए एक सवाल के लिखित जवाब में आज, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने लोकसभा में बताया भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार ने नेशनल इनोवेशन इन क्लाइमेट रेजिलिएंट एग्रीकल्चर (एनआईसीआरए) परियोजना के तहत बदलते मॉनसून पैटर्न और कृषि क्षेत्र पर इसके प्रभाव सहित जलवायु परिवर्तन प्रभाव का विश्लेषण किया है।

जलवायु परिवर्तन का असर चावल, गेहूं और मक्का जैसी फसलों पर पड़ता है। अनुकूलन उपायों को अपनाने के अभाव में, जलवायु परिवर्तन के अनुमानों के मुताबिक, 2050 में वर्षा आधारित चावल की पैदावार दो से 20 फीसदी और 2080 में 10 से 47 फीसदी तक कम होने की आशंका है।

जबकि, सिंचित चावल की पैदावार 2050 में दो से 3.5 फीसदी और 2080 के परिदृश्यों में दो से पांच फीसदी, गेहूं की उपज में 2050 तक 8.4 से 19.3 फीसदी और 2080 के परिदृश्यों में 18.9 से 41 फीसदी और 2050 में खरीफ मक्का की पैदावार 10 से 19 फीसदी और 2080 के परिदृश्यों तक इसके 20 फीसदी तक कम होने की आशंका जताई गई है।

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

वहीं, सदन में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को लेकर पूछे गए एक अन्य प्रश्न के लिखित उत्तर में, राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय का हवाला देते हुए बताया कि देश के विभिन्न हिस्सों में ग्लोबल वार्मिंग के कारण चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि देखी गई है। गर्म होते पर्यावरण और क्षेत्रीय मानवजनित प्रभावों के बीच पृथ्वी प्रणाली के घटकों से जुड़ी क्रियाओं के कारण स्थानीय स्तर पर भारी बारिश की घटनाएं, सूखे और बाढ़ की घटनाएं, उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की तीव्रता में वृद्धि हुई है।

चौबे ने कहा, अध्ययनों ने बढ़ती प्रवृत्तियों की जानकारी दी है, तमिलनाडु सहित पूरे भारत में अत्यधिक बारिश की आवृत्ति देखी गई है। बदलते मॉनसून पैटर्न और चरम स्थितियों ने देश के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित किया है। बदलती जलवायु में जिन क्षेत्रों में ऐसी घटनाओं का खतरा अधिक है उनमें मध्य भारत, उत्तर भारतीय क्षेत्र और पश्चिमी हिमालयी इलाकों में अत्यधिक बारिश की घटनाएं, उत्तर, उत्तर-पश्चिम भारत और निकटवर्ती मध्य भारत में मध्यम सूखा और अर्धशुष्क क्षेत्रों में विस्तार तथा तटीय राज्यों में चक्रवात और लू की  घटनाएं शामिल हैं।

रासायनिक अपशिष्टों को नदियों में डालना

सदन में सवालों का सिलसिला जारी रहा, इसी बीच एक और सवाल का लिखित जवाब देते हुए, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने बताया सरकार ने नदियों के पास स्थित उद्योगों और रंगाई इकाइयों द्वारा देश की प्रमुख नदियों में डाले जाने वाले रासायनिक कचरे को कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (एसपीसीबी) तथा प्रदूषण नियंत्रण समितियों के सहयोग से राष्ट्रीय जल गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (एनडब्ल्यूएमपी) के तहत नदियों पर 2155 निगरानी स्थानों सहित 4703 स्थानों पर जलीय संसाधनों की जल गुणवत्ता की निगरानी की जा रही है।

सड़कों में स्टील प्लांट का कचरा

सदन के पटल पर आज, स्टील प्लांट के कचरे को लेकर पूछे गए के प्रश्न के उत्तर में, इस्पात मंत्रालय में राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने राज्यसभा में बताया स्टील उत्पादन के दौरान स्टील स्लैग ठोस अपशिष्ट के रूप में उत्पन्न होता है। एकीकृत इस्पात संयंत्रों में प्रत्येक टन स्टील उत्पादन के लिए लगभग 180 सी 200 किलोग्राम स्टील स्लैग उत्पन्न होता है, जो सालाना लगभग 1.5 करोड़ टन स्टील स्लैग उत्पादन के बराबर होता है।

जैव-ईंधन का सम्मिश्रण

वहीं, सदन में पूछे गए एक सवाल के जवाब में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय में राज्य मंत्री रामेश्वर तेली ने राज्यसभा में बताया, भारत में  एथेनॉल सम्मिश्रण के लिए रोडमैप 2020 से 25 के अनुसार, एथेनॉल आपूर्ति वर्ष 2025 से 26 में 20 फीसदी इथेनॉल मिश्रण की अनुमानित जरूरत के लिए लगभग 1016 करोड़ लीटर है और पेट्रोल की इस मात्रा को एथेनॉल द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा। रोडमैप के अनुसार, एक सफल ई 20 कार्यक्रम से देश में हर साल लगभग चार  बिलियन अमेरिकी डॉलर बचाए जा सकते हैं।

शहरी नियोजन

शहरी नियोजन को लेकर सदन में पूछे गए एक सवाल के लिखित जवाब में, आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय में राज्य मंत्री कौशल किशोर ने राज्यसभा में बताया, अमृत के तहत 500 अमृत शहरों के लिए जीआईएस आधारित मास्टर प्लान का निर्माण पर उप-योजना, 443 शहरों के लिए अंतिम जीआईएस डेटाबेस बनाया गया है, 330 शहरों के लिए जीआईएस आधारित मास्टर प्लान का मसौदा तैयार किया गया है और 180 शहरों के लिए अंतिम जीआईएस आधारित मास्टर प्लान अधिसूचित किया गया है।

वहीं, अमृत 2.0, 50,000 से 99,999' की आबादी वाले क्लास-2 शहरों के जीआईएस आधारित मास्टर प्लान तैयार करने की योजना है, 631.13 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय के साथ 675 शहरों के लिए अनुमोदित की गई है। यह उपयोजना कार्यान्वयन के शुरुआती चरण में है।