नए शोध से पता चला है कि अंटार्कटिका के बर्फ वाले हिस्से (आइस शेल्फ) का एक तिहाई से अधिक के समुद्र में गिरने का खतरा बढ़ गया है। अगर दुनिया भर में तापमान इसी तरह बढ़ता रहा और पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 4 डिग्री सेल्सियस ऊपर पहुंच जाए तो जल्द ही यह हिमखंड ढह कर समुद्र में मिल जाएगा।
रीडिंग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन की अगुवाई की है, इसमें उन्होंने विस्तृत रूप पूर्वानुमान लगाया है कि अंटार्कटिका के आसपास बर्फ के विशाल तैरते खंड किस तरह पिघल कर बह जाएंगे। इसके लिए उन्होंने जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ते तापमान को जिम्मेवार माना है।
अध्ययन में पाया गया कि अंटार्कटिक के बर्फ वाले क्षेत्रों का 34 फीसदी लगभग 5 लाख वर्ग किलोमीटर और अंटार्कटिक प्रायद्वीप पर 67 फीसदी बर्फ के हिस्से सहित सभी को 4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ते तापमान से खतरा होगा। यदि तापमान 4 डिग्री सेल्सियस के बजाय 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रहता है तो इस क्षेत्र में खतरे को रोका जा सकता है और समुद्र के जल स्तर में होने वाली वृद्धि से बचा जा सकता है।
शोधकर्ताओं ने लार्सन सी की भी पहचान की, प्रायद्वीप पर शेष बर्फ का सबसे बड़ा हिस्सा है, जो 2017 में विशाल ए68 हिमखंड के रूप में विभाजित हुआ था और चार अलग-अलग बर्फ के हिस्सों में से यह एक है, इसे भी गर्म होती जलवायु से खतरा है।
यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के मौसम विज्ञान विभाग के शोध वैज्ञानिक डॉ. एला गिल्बर्ट ने कहा कि बर्फ के खंड महत्वपूर्ण हैं जो ग्लेशियरों को जमीन से समुद्र में बहने से रोकते हैं ये ग्लेशियर समुद्र के जल स्तर को बढ़ाने में अहम योगदान देते हैं। जब वे ढहते हैं, तो यह एक विशालकाय की तरह होते हैं, जिससे ग्लेशियरों से पानी की इतनी मात्रा समुद्र में जा सकती है जिसकी हमने कभी कल्पना भी न की हो।
जब बर्फ की सतह पर बर्फ पिघलती है, तो यह उन्हें नुकसान पहुंचा सकती है, ढहा सकती है। पिछले शोध ने हमें अंटार्कटिक बर्फ के हिस्सों की गिरावट का पूर्वानुमान लगाने के संदर्भ में एक बड़ी तस्वीर को सामने रख दिया है, लेकिन हमारे इस नए अध्ययन में अधिक सटीक अनुमान लगाने के लिए नवीनतम मॉडलिंग तकनीकों का उपयोग किया है।
निष्कर्ष पेरिस समझौते में निर्धारित वैश्विक तापमान को सीमित करने के महत्व को रेखांकित करते हैं। यदि हम जलवायु परिवर्तन के सबसे खराब परिणामों से बचना चाहते हैं, जिसमें समुद्र के जल स्तर में वृद्धि भी शामिल है, तो तापमान को सीमित करना ही होगा।
इस नए अध्ययन में बर्फ की स्थिरता, इसके पिघलने और पानी बहने के प्रभाव का अधिक सटीकता से अनुमान लगाने के लिए अत्याधुनिक, उच्च-रिज़ॉल्यूशन क्षेत्रीय जलवायु मॉडलिंग का उपयोग किया गया है।
बर्फ के टूटने की प्रक्रिया से बर्फ के खण्डों (शेल्फ) को काफी खतरा है, 1.5 डिग्री सेल्सियस, 2 डिग्री सेल्सियस और 4 डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वार्मिंग परिदृश्यों के तहत पूर्वानुमानित की गई थी, इस सदी में उपरोक्त सभी का होना संभव हैं।
बर्फ के खंड, समुद्र तट के क्षेत्रों से जुड़ी हुई बर्फ के स्थायी तैरने वाले स्थान हैं और ये वहां बनते हैं जहां जमीन से बहने वाले ग्लेशियर समुद्र से मिलते हैं। यह अध्ययन जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
हर साल गर्मियों में बर्फ के खंड (शेल्फ) की सतह पर बर्फ पिघल जाती है और नीचे की बर्फ की परत में छोटे-छोटे छेद हो जाते है जहां हवा घुस जाती है, जहां यह फिर से जम जाती है। हालांकि, ऐसे वर्षों में जब बर्फ बहुत अधिक पिघलती है लेकिन बर्फबारी कम होती है, सतह पर पानी के छोटे तालाब या दरारें बन जाती है, जहां से पानी बहने लगता है, यह उन्हें और गहरा और चौड़ा कर देता है, यह तब तक जारी रहता है जब तक कि बर्फ का खडं (शेल्फ) पूरी तरह ढह नहीं जाता। यदि बर्फ के खडं की सतह पर पानी इकट्ठा होता है, तो वह ढह सकता है।
यह 2002 में लार्सन बी बर्फ के खंड (शेल्फ) के साथ हुआ था, जो कई वर्षों के गर्म तापमान के बाद ढह गया था। इसके ढहने के कारण ग्लेशियरों के पिघलने की गति बढ़ गई थी, जिससे अरबों टन बर्फ समुद्र में चली गई थी।
शोधकर्ताओं ने कहा कि लार्सन सी, शेकलटन, पाइन द्वीप और विल्किंस हिमखंडों को सबसे अधिक खतरा तब होगा जब तापमान 4 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा।
डॉ गिल्बर्ट ने कहा कि यदि तापमान मौजूदा दरों से बढ़ता रहा, तो आने वाले दशकों में अंटार्कटिक के बहुत से हिमखंड गायब हो जाएंगे। केवल तापमान को सीमित करने से अंटार्कटिका का भला नहीं होने वाला, हिमखंडों को संरक्षित करने का मतलब है वैश्विक समुद्र के जल स्तर कम होना, और यह हम सभी के लिए अच्छा है।