जलवायु

खेती से होने वाले अमोनिया उत्सर्जन को 38 फीसदी तक कम कर सकता है एआई मॉडल

Dayanidhi

अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की एक टीम ने अमोनिया (एनएच 3) उत्सर्जन को लेकर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) मॉडल विकसित करके एक अहम सफलता हासिल की है। यह मॉडल कृषि से दुनिया भर में होने वाले अमोनिया उत्सर्जन को कम करने में मदद कर सकता है। यह कारनामा हांगकांग यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (एचकेयूएसटी) के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की एक टीम ने किया है।

नेचर में प्रकाशित इस अध्ययन की मदद से दुनिया भर में खेती से होने वाले अमोनिया उत्सर्जन पहले से कम किया जा सकता है। साथ ही यह उर्वरक प्रबंधन को अनुकूलित करके नाइट्रोजन उर्वरकों के उपयोग से समझौता किए बिना उत्सर्जन को लगभग 38 फीसदी तक कम किया जा सकता है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक यह एआई मॉडल दुनिया भर के नीति निर्माताओं को गरीबी उन्मूलन, खाद्य सुरक्षा और टिकाऊ कृषि से संबंधित संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों को हल करने के लिए अहम जानकारी प्रदान करता है।

अलग-अलग कृषि और औद्योगिक प्रक्रियाओं से अमोनिया के निकलने से वायु और जल प्रदूषण व पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान हो सकता है तथा लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा हो सकता है। जबकि अमोनिया स्वयं एक ग्रीनहाउस गैस नहीं है, यह मिट्टी और वायुमंडल में प्रतिक्रिया कर सकती है, जिससे नाइट्रस ऑक्साइड जैसे यौगिक बन सकते हैं, जो एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है जो जलवायु परिवर्तन को बढ़ाने के लिए जिम्मेवार है

विशेष रूप से तीन प्रमुख फसलें - चावल, गेहूं और मक्का का उत्पादन दुनिया भर में खेती से होने वाले अमोनिया उत्सर्जन के आधे से अधिक के लिए जिम्मेदार हैं।

जैसे-जैसे दुनिया भर में जनसंख्या वृद्धि हो रही है और भोजन की मांग बढ़ रही है, सतत विकास के लिए इस उत्सर्जन को कम करने के तरीकों की खोज करना जरूरी हो गया है। हालांकि, वैश्विक स्तर पर सटीक जानकारी की कमी देशों के लिए उनकी विशिष्ट परिस्थितियों के अनुरूप प्रभावी उत्सर्जन कटौती रणनीतियों को लागू करना चुनौतीपूर्ण बना देती है।

अध्ययन में कहा गया है कि इस चुनौती के समाधान के लिए, शोधकर्ताओं की एक टीम ने 1985 से 2022 के बीच फैले अमोनिया उत्सर्जन दरों के क्षेत्रीय अवलोकन के आंकड़ों के आधार पर एक डेटासेट एकत्र और संकलित किया।

बाद में शोधकर्ताओं ने जलवायु, मिट्टी की विशेषताओं, फसल के प्रकार, सिंचाई के पानी, उर्वरक और जुताई विधियों जैसे विभिन्न भौगोलिक कारणों पर विचार करते हुए डेटासेट का उपयोग करके, दुनिया भर में अमोनिया उत्सर्जन का अनुमान लगाने के लिए एक एआई-संचालित कंप्यूटर मॉडल को प्रशिक्षित किया।

शोधकर्ताओं ने बताया कि यह मॉडल विभिन्न क्षेत्रों के लिए अनुकूलित उर्वरक प्रबंधन योजनाएं तैयार करने में सक्षम है। उदाहरण के लिए, एशिया में, लगभग 76 फीसदी गेहूं की खेती ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव के कारण अमोनिया उत्सर्जन को कम करने के लिए बढ़ी हुई दक्षता वाले उर्वरकों (ईईएफ) का उपयोग करने के लिए उपयुक्त है, क्योंकि तापमान एशिया में गेहूं की भूमि से अमोनिया उत्सर्जन में अहम भूमिका निभाता है।

एआई मॉडल ने पाया कि उर्वरक प्रबंधन को अनुकूलित करके, जिसमें बुवाई के समय को समायोजित करना, पोषक तत्वों के एक विशिष्ट मिश्रण का उपयोग करना और उपयुक्त रोपण और जुताई प्रथाओं को लागू करना शामिल है। तीन फसलों से दुनिया भर में अमोनिया उत्सर्जन को 38 फीसदी तक कम करना संभव है। एशिया में अमोनिया की कटौती की क्षमता सबसे अधिक है, इसके बाद उत्तरी अमेरिका और यूरोप हैं।

यह खोज इसलिए विशेष महत्व रखती है क्योंकि इस कार्य में 2060 तक 30 साल की अवधि में खेती से दुनिया भर में होने वाले अमोनिया उत्सर्जन में चार से 5.5 फीसदी की वृद्धि का अनुमान लगाया गया है। इसलिए, इस संभावित कमी का एक अंश हासिल करना भी अनुमानित वृद्धि की भरपाई के लिए काफी होगा।

शोध के हवाले से प्रोफेसर जिमी फंग ने कहा, उत्सर्जन को कम करने के वैश्विक प्रयासों को वर्तमान में महत्वपूर्ण बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है, जैसे भारी लागत और खेत के छोटे आकार। अध्ययन के निष्कर्ष दुनिया भर में अमोनिया उत्सर्जन पर नवीनतम आंकड़ों के साथ एक वैश्विक मानचित्र का वर्णन करते हैं, जो नीति निर्धारण और प्रबंधन की जानकारी दे सकता है।

इन विधियों का उद्देश्य उत्सर्जन को कम करना और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है। यह सतत विकास को बढ़ावा देने में बड़े आंकड़ों और एआई के उपयोग की जबरदस्त क्षमता को उजागर करता है।