जलवायु

आर्कटिक में दोगुने से ज्यादा हो सकती हैं बिजली गिरने की घटनाएं

वैज्ञानिकों ने विश्लेषण के आधर पर बताया कि आर्कटिक का तापमान बढ़ने से बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ रही हैं।

Dayanidhi

आर्कटिका के इलाके के ऊपर बिजली गिरने की घटनाएं लगभग न के बराबर सुनाई देती हैं। लेकिन अब कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की अगुवाई में एक शोध किया गया है। शोध में बताया गया है कि आर्कटिक में बिजली गिरने की घटनाओं में लगभग 100 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी होना तब से शुरू हुई, जब से जलवायु गर्म होने लगी थी।

वैज्ञानिक यांग चेन ने कहा हमने अनुमान लगाया कि उत्तरी अमेरिका और यूरेशिया में उच्च-अक्षांश के बोरियल जंगलों और आर्कटिक टुंड्रा क्षेत्रों में बिजली गिरने की घटनाएं बदल जाएंगी। बिजली के आकार प्रतिक्रिया ने हमें चौंका दिया क्योंकि मध्य अक्षांशों पर बदलाव बहुत कम हुए हैं।

खोज उन बदलावों की एक झलक दिखाती है जो यह बताता है कि आर्कटिक लगातार गर्म हो रहा है। गर्मियों के दौरान आर्कटिक के मौसम की रिपोर्ट उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो दक्षिण में दूर के इलाकों में रहते हैं, जहां बिजली गिरने की घटनाएं आम हैं।

यूसीआई के पृथ्वी प्रणाली विज्ञान विभाग में प्रोफेसर जेम्स रैंडरसन ने नासा के नेतृत्व वाले अभियान में हिस्सा लिया था। इस अभियान में 2015 के दौरान अलास्का के जंगल में लगी आग की घटना का अध्ययन किया था, जो वन्यजीवों के लिए एक बेहद खराब साल था। रैंडर्सन ने कहा 2015 एक असाधारण वर्ष था जब भयंकर आग लगी थी यहीं से आग लगने की रिकॉर्ड संख्या शुरू हुई थी। एक बात जिसके बारे में हमने पता लगाया, वह यह थी कि रिकॉर्ड आग लगने की घटनाओं के लिए कई बार बिजली गिरने की घटनाएं जिम्मेदार हैं।  

इसके कारण चेन ने उत्तरी क्षेत्रों में बिजली गिरने की घटनाओं पर नासा उपग्रह के बीस साल के आंकड़ों का विश्लेषण किया, तब उन्होंने बिजली गिरने की दर और जलवायु कारकों के बीच संबंध स्थापित किया। संयुक्त  राष्ट्र द्वारा उपयोग किए गए कई मॉडलों से भविष्य के जलवायु अनुमानों का उपयोग करके, टीम ने वायुमंडलीय संवहन, तापमान में वृद्धि और अधिक तीव्र गड़गड़ाहट के परिणामस्वरूप बिजली गिरने की घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि का अनुमान लगाया।

बिजली गिरने की घटनाओं ने घास, काई और झाड़ियां जला दी थी जो आर्कटिक टुंड्रा इकोसिस्टम के लिए महत्वपूर्ण घटक हैं। इस तरह के पौधे बहुत अधिक क्षेत्र में फैले होते हैं और बिजली गिरने की घटनाएं पेड़ों से बीजों, मिट्टी से जड़ को उखाड़ कर रख देती हैं। आग लगने के बाद छोटे स्तर के पौधे जल जाते हैं, हालांकि, पेड़ों से बीज मिट्टी पर आसानी से बढ़ सकते हैं, जिससे जंगलों का विस्तार उत्तर की ओर हो सकता है।

जर्नल नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित शोध में बताया गया है कि, आग की अधिक घटनाओं का मतलब है पर्माफ़्रोस्ट जो एक जमी हुई मिट्टी है जो आर्कटिक क्षेत्र के बहुत बड़े हिस्से में फैली है। आग की घटनाओं के कारण पर्माफ़्रोस्ट पिघल जाएगा मॉस और मृत कार्बनिक पदार्थों की सुरक्षात्मक इन्सुलेट परतें भी हट जाएंगी जो मिट्टी को ठंडा रखती हैं।

पर्माफ़्रोस्ट बहुत सारे ऑर्गेनिक कार्बन को एकत्र करता है, बर्फ के पिघलने से ग्रीनहाउस गैसें कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन में बदल जाएंगी और इनके वातावरण में फैल जाने से तापमान और अधिक बढ़ जाएगा।

बिजली गिरने की घटनाओं की जांच से पता चलता है कि आर्कटिक का तापमान कैसे बढ़ा और ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर पिघलने से आसपास के महासागरों के किनारे खरपतवार उग जाते है। चेन और रैंडर्सन कहते हैं कि वैज्ञानिकों  को आर्कटिक में बिजली गिरने की बढ़ती घटनाओं पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि वे यह अनुमान लगा सकें कि आने वाले दशकों में यह किस तरह बदलेगा।  

रैंडर्सन ने कहा यह घटना बहुत छिटपुट है और लंबे समय तक इसे सटीक रूप से मापना बहुत मुश्किल है। आर्कटिक क्षेत्र के ऊपर बिजली का गिरना बहुत दुर्लभ है। बिजली की घटनाओं से आग लगने से आर्कटिक और बोरियल अक्षांशों की निगरानी की जा सकती है। आने वाली सदी में ध्रुव में बिजली गिरने की बढ़ती घटनाएं सुर्खियां बन सकती हैं।