जलवायु

दुनिया भर में ताजे पानी के चक्र में आया भारी बदलाव, मानवजनित गतिविधियां जिम्मेवार

जल चक्र में हुए बदलाव के कारण दुनिया भर में इससे प्रभावित भूमि क्षेत्र पूर्व-औद्योगिक स्थितियों की तुलना में दोगुना हो गया है

Dayanidhi

इंसानी गतिविधियों के कारण दुनिया भर में मीठे या ताजे पानी के संसाधन खतरे में पड़ते जा रहे हैं। जमीन से पानी निकालने, भूमि उपयोग व आवरण में बदलाव और जलवायु परिवर्तन की वजह से मीठे पानी के प्रवाह की मात्रा बदल रही है। इसके चलते  पृथ्वी की जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ सकता है।

एक नए विश्लेषण से पता चला है कि मीठे पानी के चक्र में बदलाव आ गया है। यह पहली बार है कि जब वैश्विक जल चक्र में आए बदलाव के सटीक आधार रेखा के साथ इतने लंबे समय तक मूल्यांकन किया गया है।

नेचर वॉटर में प्रकाशित निष्कर्ष बताते हैं कि बांध निर्माण, बड़े पैमाने पर सिंचाई और ग्लोबल वार्मिंग जैसी इंसानी गतिविधियों की वजह से यह हालात बने हैं। अंतर्राष्ट्रीय शोध टीम ने हाइड्रोलॉजिकल मॉडल के आंकड़ों का उपयोग करके लगभग 50 x 50 किलोमीटर के स्थानिक रिजॉल्यूशन पर मासिक धारा प्रवाह और मिट्टी की नमी की गणना की, जो मीठे पानी के चक्र पर सभी प्रमुख मानव प्रभावों को जोड़ती है।

आधार रेखा के रूप में उन्होंने पूर्व-औद्योगिक काल (1661-1860) के दौरान स्थितियों को लिया। फिर उन्होंने इस आधार रेखा के विरुद्ध औद्योगिक अवधि (1861-2005) की तुलना की।

उनके विश्लेषण से असाधारण शुष्क या नमी वाली स्थितियों में वृद्धि का पता चला, खासकर धारा प्रवाह और मिट्टी की नमी में बदलाव के कारण। पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में 20वीं शताब्दी की शुरुआत से सूखे और नमी में बदलाव लगातार बड़े क्षेत्रों में हुए। कुल मिलाकर, बदलाव का अनुभव करने वाला वैश्विक भूमि क्षेत्र पूर्व-औद्योगिक स्थितियों की तुलना में लगभग दोगुना हो गया है।

आल्टो विश्वविद्यालय के शोधकर्ता और प्रमुख-अध्ययनकर्ता विली विर्की कहते हैं, हमने पाया कि असाधारण स्थितियां अब पहले की तुलना में बहुत अधिक बार और बड़ी होने लगी हैं, जो स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं कि कैसे मानवजनित गतिविधियों ने दुनिया भर में मीठे पानी के चक्र को बदल दिया है

क्योंकि विश्लेषण स्थानीय और कुछ समय पहले किया गया था, शोधकर्ता बदलाव में भौगोलिक अंतर का पता लगा सकते थे। कई उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय इलाकों में असाधारण रूप से शुष्क धाराप्रवाह और मिट्टी की नमी की स्थिति अधिक बार देखी गई, जबकि कई बोरियल और समशीतोष्ण क्षेत्रों में असाधारण रूप से नमी वाली स्थितियों में वृद्धि देखी गई, खासकर मिट्टी की नमी के मामले में। ये पैटर्न जलवायु परिवर्तन के कारण पानी की उपलब्धता में देखे गए बदलावों से मेल खाते हैं।

लोगों के द्वारा भूमि उपयोग और कृषि के लंबे इतिहास वाले कई इलाकों में अधिक जटिल पैटर्न पाए गए। उदाहरण के लिए, नील, सिंधु और मिसिसिपी नदी घाटियों में असाधारण रूप से शुष्क धारा प्रवाह और नमी वाली मिट्टी पाई गई, जो सिंचाई के द्वारा हुए बदलावों की ओर इशारा करती है।

अध्ययनकर्ता बताते है, एक ऐसी विधि का उपयोग करना जो हाइड्रोलॉजिकल बदलावों और भौगोलिक पैमानों में सही से काम करे और तुलना करने योग्य हो, उन जैव-भौतिकीय प्रक्रियाओं और मानवीय क्रियाओं को समझने के लिए महत्वपूर्ण है, मीठे पानी में जो बदलाव दिखाई रहे हैं, उन्हें आगे बढ़ाते हैं।

धारा प्रवाह और मिट्टी की नमी में बदलाव के इस व्यापक नजरिए के साथ, शोधकर्ता मीठे पानी के चक्र में परिवर्तन के कारणों और परिणामों की जांच करने के लिए बेहतर ढंग से तैयार हैं।

आल्टो के एसोसिएट प्रोफेसर मैटी कुम्मू ने कहा, इन बदलावों को अधिक विस्तार से समझने से इनसे होने वाले नुकसान को कम करने वाले नीतियां बनाने में मदद मिल सकती है, लेकिन हमारी तत्काल प्राथमिकता मीठे पानी की प्रणालियों पर मानवजनित दबाव को कम करना होगा, जो पृथ्वी पर जीवन के लिए महत्वपूर्ण हैं।