फोटो: आईस्टॉक 
जलवायु

2 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान वृद्धि की ओर बढ़ रही है दुनिया, संकट में करोड़ों लोग: रिपोर्ट

कॉप 30 के प्रारंभ होने से ठीक पहले जलवायु परिवर्तन के खतरों पर स्टेट ऑफ द क्रायोस्फियर रिपोर्ट 2025 जारी की गई

DTE Staff

  • काॅप 30 से ठीक पहले स्टेट ऑफ द क्रायोस्फियर रिपोर्ट 2025 जारी की गई

  • रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि वर्तमान जलवायु वादे दुनिया को 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान वृद्धि की ओर ले जा रहे हैं।

  • इससे वैश्विक हिमखंडों के पिघलने और समुद्र-स्तर में वृद्धि के कारण करोड़ों लोग प्रभावित होंगे।

  • विशेषज्ञों का सुझाव है कि उत्सर्जन में कटौती से इन प्रभावों को रोका जा सकता है।

  • ध्रुवीय क्षेत्रों की बर्फ-चादरों की स्थिरता के लिए तापमान वृद्धि की सीमा 1 डिग्री सेल्सियस होनी चाहिए।

वर्तमान में देशों द्वारा किए गए जलवायु संबंधी वादे और प्रतिबद्धताएं दुनिया को 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान वृद्धि की ओर ले जा रही हैं। यह बढ़ोतरी करोड़ों लोगों के लिए विनाशकारी साबित होगी, विशेषकर वैश्विक हिमखंडों और बर्फ की परतों के पिघलने के कारण। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि इस नुकसान को अभी भी रोका जा सकता है।

आज जारी स्टेट ऑफ द क्रायोस्फियर रिपोर्ट 2025 में कहा गया है कि ध्रुवीय क्षेत्रों की बर्फ-चादरों की स्थिरता के लिए वैश्विक तापमान वृद्धि की सीमा लगभग 1 डिग्री सेल्सियस होनी चाहिए। कई ग्लेशियरों के लिए तो यह सीमा 1 डिग्री सेल्सियस से भी कम है।

रिपोर्ट के जारी होने का समय भी महत्वपूर्ण है। दुनिया भर के नेता इस समय ब्राजील के बेलेम शहर में आयोजित क्लाइमेट लीडर्स एक्शन समिट और संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कॉप 30) के लिए एकत्र हो रहे हैं, जहाँ देश अपनी नई जलवायु प्रतिज्ञाएं (एनडीसी) प्रस्तुत कर रहे हैं।

लेकिन कॉप 30 की मेजबानी करने वाला ब्राजील स्वयं जलवायु परिवर्तन के गंभीर जोखिमों के प्रति अत्यंत संवेदनशील है। वैज्ञानिकों के अनुसार, यदि समुद्र-स्तर में लगभग 10 मीटर की वृद्धि होती है (जो कि मौजूदा उत्सर्जन जारी रहने पर वर्ष 2300 तक संभव मानी जा रही है), तो कॉप 30 का आयोजन स्थल भावी समय में सीधे समुद्र तट में बदल सकता है।

इन खतरों को रेखांकित करने के लिए वैज्ञानिक कॉप 30 स्थल पर एक विशेष प्रदर्शन आयोजित करने की तैयारी कर रहे हैं। उनका कहना है कि यदि वैश्विक उत्सर्जन में तेजी और निरंतरता के साथ कटौती की जाए और तापमान को अत्यधिक बढ़ने से रोका जाए, तो भविष्य में होने वाले सबसे विनाशकारी प्रभावों को रोका जा सकता है। यह कदम कमजोर देशों के साथ-साथ बड़े उत्सर्जन करने वाले देशों — दोनों को — भारी सामाजिक और आर्थिक क्षति से बचा सकता है।

हालांकि, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यदि दुनिया तुरंत उत्सर्जन में तेजी से कटौती शुरू करती है, तो तापमान को 2100 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे और अगले शताब्दी तक 1 डिग्री सेल्सियस से नीचे लाया जा सकता है।

लेकिन इसके विपरीत, फिलहाल वैश्विक उत्सर्जन लगातार बढ़ रहा है। इसका परिणाम न केवल बर्फ और हिमखंडों के तेजी से पिघलने में दिख रहा है, बल्कि समुद्र का अम्लीकरण भी खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है, विशेषकर ध्रुवीय समुद्री क्षेत्रों में।

यह रिपोर्ट इंटरनेशनल क्रायोस्फियर क्लाइमेट इनिशिएटिव (आईसीसीआई ) द्वारा समन्वित की गई है, जिसमें 50 से अधिक प्रमुख वैज्ञानिकों ने 2015 में पेरिस समझौते के बाद से क्रायोस्फियर में बढ़ रही पिघलन का विश्लेषण किया है।

रिपोर्ट चेतावनी देती है कि यदि उत्सर्जन वर्तमान दर से बढ़ता रहा और तापमान में वृद्धि 3 डिग्री सेल्सियस के आसपास पहुंच गई, तो समुद्र-स्तर वृद्धि और जल संसाधनों की कमी ऐसे स्तर पर पहुंच जाएगी जहां अनुकूलन असंभव या बहुत कठिन होगा। कुछ क्षेत्रों में यह स्थिति आने वाले दशकों में नहीं, बल्कि अभी ही दिखाई देने लगी है- जैसा कि अक्टूबर के अंत में जमैका में हुई विनाशकारी स्थिति में देखा गया।

रिपोर्ट में यह भी इंगित किया गया है कि ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका की बर्फ-चादरों के पिघलने से समुद्र में जा रहा ताजा पानी और बढ़ते समुद्री तापमान, ध्रुवीय क्षेत्रों के महत्वपूर्ण महासागरीय धाराओं को धीमा कर रहे हैं। इन धाराओं के कमजोर होने से समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में बड़ा संकट पैदा होगा और उत्तरी यूरोप के कई हिस्सों में तापमान अचानक बहुत कम हो सकता है।

रिपोर्ट के अन्य प्रमुख निष्कर्ष:

  • समुद्र-स्तर वृद्धि को नियंत्रित और सुरक्षित स्तर पर रोकने के लिए दीर्घकालिक तापमान लक्ष्य 1 डिग्री सेल्सियस या इससे भी कम रखना आवश्यक है।

  • यदि वैश्विक तापमान वर्तमान स्तर (लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस) पर भी बना रहता है, तो आने वाली सदियों में समुद्र-स्तर में कई मीटर की वृद्धि होगी, जो तटीय अनुकूलन की सीमाओं से परे होगी।

  • यूरोपीय आल्प्स, स्कैंडिनेविया, उत्तरी अमेरिका की रॉकी पर्वतमाला और आइसलैंड में लगातार तापमान 1 डिग्री सेल्सियस पर रहने पर भी कम से कम आधी बर्फ गायब हो जाएगी। यदि तापमान 2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचता है, तो इन क्षेत्रों में लगभग सारी बर्फ समाप्त हो जाएगी।

  • आर्कटिक और अंटार्कटिका में समुद्री बर्फ की मात्रा पूरे वर्ष घटती जा रही है। फरवरी 2025 में दोनों ध्रुवों की कुल समुद्री बर्फ क्षेत्रफल अब तक का सबसे कम दर्ज किया गया।

  • सागर का अम्लीकरण आर्कटिक और दक्षिणी महासागर के बड़े हिस्सों में खतरनाक स्तरों से आगे बढ़ चुका है, जिससे कई क्षेत्रों में खोल (शेल) वाली समुद्री प्रजातियों के लिए जीवन असंभव होता जा रहा है।

  • पर्माफ्रॉस्ट (जमी हुई स्थायी मिट्टी) अब कार्बन का स्रोत बन चुका है। यह बढ़ते मौसम के दौरान जितना कार्बन अवशोषित करता है, उससे ज्यादा कार्बन वायुमंडल में छोड़ रहा है।

  • इनमें से अधिकांश परिवर्तन आने वाले सैकड़ों या हजारों वर्षों तक अपरिवर्तनीय रहेंगे।