जलवायु

बढ़ते तापमान से बिगड़ता कॉफी का जायका, घटती पैदावार के बीच बढ़ी कीमतें

दुनिया में कॉफी की खेती कर रहे 2.5 करोड़ किसानों में से 80 से 90 फीसदी छोटे और सीमान्त किसान हैं, जो जलवायु में आते इन बदलावों के लिए तैयार नहीं हैं

Lalit Maurya

कॉफी की खेती करने वाले किसानों और इसके शौकीनों के लिए खबर अच्छी नहीं है। पता चला है कि बढ़ते तापमान से जहां भारत सहित कई देशों में इसकी पैदावार घट रही है, वहीं इसका असर कीमतों पर भी पड़ रहा है, जिसका खामियाजा इसके शौकीनों को भी उठाना पड़ रहा है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि दुनिया में लोगों को कॉफी इतनी पसंद है कि हर दिन 225 करोड़ कप से भी ज्यादा कॉफी का सेवन किया जाता है।

नई रिसर्च से पता चला है कि पिछले चार दशकों के दौरान कॉफी उत्पादक क्षेत्रों की जलवायु में इस तरह बदलाव आ रहे हैं जो इसकी पैदावार को प्रभावित कर सकते हैं। यह कहीं न कहीं बढ़ते तापमान का नतीजा हैं। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल प्लोस में प्रकाशित हुए हैं।

अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने 1980 से 2020 के बीच दुनिया के 12 प्रमुख कॉफी उत्पादक देशों में तापमान, बारिश और आर्द्रता जैसे जलवायु कारकों के प्रभावों का विश्लेषण किया है। इन देशों में भारत, ब्राजील, कोलंबिया, इथियोपिया, होंडुरास, पेरू, ग्वाटेमाला, मेक्सिको, निकारागुआ, वियतनाम, इंडोनेशिया और यूगांडा शामिल हैं। यह क्षेत्र दुनिया की करीब 90 फीसदी कॉफी पैदा करते हैं।

देखा जाए तो कॉफी का उत्पादन भारत, ब्राजील जैसे विकासशील देशों में लाखों किसानों की जीविका का साधन है। कॉफी इन देशों की अर्थव्यवस्था के लिए कितनी महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2018 में वार्षिक कॉफी निर्यात करीब 291,965 लाख करोड़ रुपए (3,560 करोड़ डॉलर) का था, जोकि 1991 की तुलना में चार गुणा ज्यादा है।

रिसर्च से पता चला है कि कॉफी पर मंडराते जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरे पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा हावी हो गए हैं। बढ़ता तापमान इनकी पैदावार के लिए अनुकूल स्थिति को प्रभावित कर रहा है। अध्ययन के दौरान हर क्षेत्र में इस तरह के जलवायु से जुड़े खतरे बढे हैं। इतना ही नहीं कॉफी उत्पादन को प्रभावित करने वाले छह सबसे मुश्किल वर्ष 2010 से 2020 के बीच दर्ज किए गए हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार अल नीनो सदर्न ऑसिलेशन (ईएनएसओ) जैसी जलवायु घटनाएं कई देशों में बड़े पैमाने पर कॉफी की फसल की विफलता का कारण बन सकते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक कॉफी का पौधा विशेष रूप से अरेबिका का जलवायु में आते बदलावों के लिए काफी संवेदनशील होता है। यदि तापमान की बात करें तो जहां कॉफी की दो प्रमुख किस्मों में से एक अरेबिका के लिए 18 से 22 डिग्री सेल्सियस जबकि रोबस्टा के लिए 22 से 28 डिग्री सेल्सियस का तापमान बेहतर रहता है।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उन 12 प्रमुख खतरों की पहचान की है जो इन कॉफी उत्पादक क्षेत्रों में पैदावार को प्रभावित कर सकता है। उदाहरण के लिए दैनिक अधिकतम तापमान उस सीमा से ज्यादा बढ़ रहा है जो कॉफी का पौधा सहन कर सकता है।

वहीं इसके उलट कई जगह तापमान बहुत ज्यादा गिर गया है जो इसकी पैदावार के लिए अच्छा नहीं है। इसी तरह शोधकर्ताओं ने पाया कि 1980 से 2020 के बीच करीब-करीब सभी कॉफी उत्पादक क्षेत्रों में जलवायु खतरों और मिश्रित घटनाओं की संख्या में वृद्धि देखी गई है।

आशंका है 2050 तक आधा रह जाएगा कॉफी उत्पादक क्षेत्र

वैश्विक स्तर पर बढ़ता तापमान भी इस और इशारा करता है कि जलवायु में आते बदलावों के चलते उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के तापमान में निरंतर वृद्धि होने की आशंका है। साथ ही स्थानिक रूप से जलवायु से जुड़े जटिल खतरे भी कॉफी की पैदावार को प्रभावित कर सकते हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि ठंडी और नम जलवायु से गर्म और शुष्क होती परिस्थितियों निश्चित ही जलवायु में आते बदलावों का परिणाम हैं।

इससे पहले प्रकाशित रिपोर्ट भी इस बात की पुष्टि करती है कि जलवायु में आते बदलाव कॉफी की पैदावार को प्रभावित कर सकते हैं। अनुमान है कि जलवायु में आते बदलावों के चलते 2050 तक कॉफी की पैदावार के लिए उपयुक्त क्षेत्र घटकर केवल आधा रह जाएगा।

देखा जाए तो दुनिया में कॉफी की खेती कर रहे 2.5 करोड़ किसानों में से 80 से 90 फीसदी छोटे और सीमान्त किसान हैं। पता चला है कि कॉफी के 95 फीसदी खेतों का आकार पांच हेक्टेयर से छोटा है, जबकि 84 फीसदी का आकार दो हेक्टेयर से भी कम है। मतलब साफ है कि यह जलवायु में आते इन बदलावों का सामना करने के लिए तैयार नहीं हैं। इससे पहले किए एक शोध से पता चला है कि तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ अरेबिका के 90 फीसदी कॉफी प्लांटेशन 2050 तक खतरे में पड़ जाएंगें।

यदि भारत की बात करें तो जलवायु में आता यह बदलाव भारत में भी कॉफी उत्पादन पर व्यापक असर डालेगा। गौरतलब है कि अगस्त 2018 में केरल और कर्नाटक के कॉफी उत्पादक क्षेत्रों में मौसम की चरम घटनाओं के चलते कुल कॉफी उत्पादन में करीब 20 फीसदी की गिरावट आ गई थी। गौरतलब है कि अगस्त 2018 में केरल और कर्नाटक के कॉफी उत्पादक क्षेत्रों में भारी वर्षा के चलते भीषण बाढ़ और बड़े पैमाने पर भूस्खलन हुआ था, जिसने कॉफी की पैदावार पर भारी असर डाला था।

उस समय नाम न छापने की शर्त पर कॉफी बोर्ड ऑफ इंडिया के एक वरिष्ठ अधिकारी ने डाउन टू अर्थ को जानकारी दी थी कि, "2018-19 में करीब 63,000 टन कम कॉफी की पैदावार हो सकती है।"

भारत पर भी पड़ता असर

आंकड़ों के अनुसार जहां 2015-16 में देश में 348,000 टन कॉफी का उत्पादन हुआ था। वो 2017-18 में बढ़ने की जगह घटकर केवल 316,000 टन रह गया था। वहीं विशेषज्ञों का अनुमान है कि बाढ़ की बढ़ती घटनाओं और भूस्खलन के चलते उत्पादन में 253,000 टन तक की गिरावट आने की आशंका है।

इसमें कोई शक नहीं कि कॉफी एक ऐसा पेय है, जो सारी दुनिया में पसंद किया जाता है। यही वजह है कि हर दिन 225 करोड़ से भी ज्यादा कप कॉफी की खपत होती है। लेकिन अपने बेहतरीन स्वाद, महक और गुणों के लिए जाने जानी वाली कॉफी भी अपना जायका खो रही है।

पता चला है कि कॉफी की चमक और महक गायब हो रही है। इसके लिए लोग कॉफी तैयार करने के तरीकों को वजह मानते हैं। लेकिन एक रिसर्च से पता चला है कि जलवायु और मौसम में आते बदलाव भी कॉफी की महक और जायके में आते बदलावों के लिए जिम्मेवार हैं।

देखा जाए तो जलवायु में आते इन बदलावों का खामियाजा न केवल इसके उपभोक्ताओं बल्कि उन लाखों किसानों पर भी पड़ रहा है जो दिन रात इसके लिए मेहनत करते हैं। ऐसे में इन बदलावों की बेहतर समझ किसानों को सभावित नुकसान से बचा सकती है। साथ ही किसानों को इसके लिए तैयार करने की जरूरत है जिससे वो बदलती जलवायु में भी इसकी खेती जारी रख सकें। हमें समझना होगा कि यह मुद्दा केवल स्वाद का ही नहीं बल्कि लाखों किसानों के आय, पोषण और स्वास्थ्य से भी जुड़ा है।